वेश्यावृत्ति और कानून
वेश्यावृत्ति सभी सभ्य देशों में आदिकाल से विद्यमान रही है। और ‘‘सदैव सामाजिक यथार्थ के रूप में स्वीकार की गई तथा इसका नियमन विधि एवं परंपरा द्वारा होता रहा है। आधुनिक यांत्रिक समाज में हमारी विवश्ता, मानसिक विक्षेप एवं निरंतर बढ़ती हुई आंतरिक कुंठा के क्षणिक उपचार का द्योतक है।’’1 वस्तुतः वेश्यावृत्ति विघटनशील समाज के सहज अंग के रूप में विद्यमान रही है। सामाजिक स्थिति में आरोह-अवरोह आते रहे, किंतु इसके अस्तित्व को बिलकुल भी प्रभावित नही कर सके। अगर कहा जाए तो वेश्यावृत्ति जैसी विवादास्पद, उलझी हुई और मिथकीय, अन्य कोई सामाजिक परिघटना नहीं है। वैसे ‘‘वेश्या’ शब्द को अंग्रेजी में ‘प्रोस्टीट्यूट’ कहा जाता है, जो लेटिन शब्द ‘प्रोस्टीबुला’ अथवा ‘प्रोसिडा’ से बना है।’2 भारत में इन्हें ‘गणिका’ के नाम से पुकारा जाता था एवं प्राचीन भारतीय साहित्य में इसका विस्तृत वर्णन मौजूद है।
वेश्यावृत्ति क्या है, इस संबंध में विचारों में अस्पष्टता झलकती है, इसलिए पहले वेश्यावृत्ति की परिभाषा जान लेना अति आवश्यक है कि वेश्यावृत्ति वास्तव में है क्या? वैसे ‘‘यौन संबंधी यथेच्छाचार या एकाधिक पुरूष से संबंध रखना वेश्यावृत्ति नहीं है। यदि कोई स्त्री चाहे वह सधवा हो, विधवा हो या कुमारी-किसी पुरूष से कथित रूप से असामाजिक संबंध रखती है, तो वह उतने से वेश्या नहीं कहला सकती।’’3 वेश्या कहलाने के लिए यह आवश्यक है कि इस प्रकार का संबंध हो और यह संबंध पैसा या लाभ के एवज में स्थापित किया गया हो। यदि यह अंतिम शर्त पूरी नहीं होती, तो स्त्री चाहे रोज एक नए पुरूष को रखें, वह भले ही विकृत मस्तिष्क कही जाए, परंतु वेश्या नहीं कहला सकती। इसके विपरीत यदि किसी स्त्री का संबंध दस-बीस साल तक, यहां तक कि जन्म भर एक ही पुरूष से रहता है, पर वह संबंध पैसे से जुड़ा हो तो वह एकवृत्तिवाली होते हुए भी वेश्या ही कहलाएगी।
इनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटानिका के अनुसार वेश्यावृत्ति वह है ‘जो पैसे या अन्य मूल्यवान सामग्री के तात्कालिक भुगतान के बदले, परिचित या अपरिचित किसी ऐसे व्यक्ति के साथ यौनाचार करे।’4 वेश्यावृत्ति निवारण कानून 1956 में, वेश्यावृत्ति की परिभाषा है- ‘किसी महिला द्वारा किराया लेकर, चाहे वह पैसे के रूप में लिया गया हो या मूल्यवान वस्तु के रूप में और चाहे फौरन वसूला गया हो या किसी अवधि के बाद, स्वछंद यौन-संबंध के लिए किसी पुरूष को अपना शरीर सौंपना ‘वेश्यावृत्ति’ है और ऐसा करने वाली महिला को ‘वेश्या’ कहा जाएगा।
अन्य शब्दों के माध्यम से कहा जाए तो ‘अर्थलाभ के लिए स्थापित संकर यौनसंबंध वेश्यावृत्ति कहलाता है। इसमें उस भावनात्मक तत्व का अभाव होता है जो अधिकांश यौन संबंधों का एक प्रमुख अंग है। विधान एवं परंपरा के अनुसार वेश्यावृत्ति उपस्त्री सहवास, परस्त्रीगमन एवं अन्य अनियमित वासनापूर्ण संबंधों से भिन्न होती है।’5 संस्कृत कोशों में यह वृत्ति अपनाने वाले स्त्रियों के लिए विभिन्न संज्ञाएं दी गई हैं। जैसे-वेश्या, रूपाजीवा, पण्यस्त्री, गणिका, वारवधु, लोकांगना, नर्तकी आदि।
वेश्यावृत्ति के अस्तित्व के संबंध में देखा जाए तो ‘कम-से-कम 18 हजार वर्ष पहले ही वेश्याप्रथा का अस्तित्व ज्ञात होता है, परंतु आर्थिक युग के विकास के साथ-साथ वेश्याओं की अवस्था में भी परिवर्तन हुआ है।’6 ज्यों-ज्यों नागरिक स्वतंत्रता बढ़ी है, त्यों-त्यों वेश्याओं की स्वतंत्रता भी बढ़ी है। इसके सापेक्ष समाजवादी युग का विकास हुआ और साम्राज्यवादी युग के विकास के साथ ही नारी को भोग-विलास के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा। ‘नारी को विलासिता की वस्तु मानकर और कामुकता की कठपुतली समझकर अपनी अंगुलियों से जब जैसे चाहा नचाया, रस निचोड़ा और झूठन व थुकन समझकर फेंक दिया।’7
विश्व के हर देश, हर काल में ऐसा ही होता रहा। सामाजिक क्रूरता व विषमता का ग्रास बनी नारी को सामंती लोगों ने शोषण का शिकार बनाया। ‘कमनीय नारी को समाज में भूखे सामंती, विलासी भेड़ियों से बचाने के लिये उनके माता-पिताओं ने नारी को भगवान की दासी, पुत्री, सेविका का नाम देकर भगवान के शरण में भेज दिया, जहां उसे ‘अप्सरा’, ‘परी’ नाम देकर भगवान भोग्या घोषित कर दिया, ताकि वहां उसका यौवन, रूप, लावण्य, सौंदर्य सुरक्षित रहे, उसे सम्मान मिले, किंतु वहां पर विराजमान भगवान के ठेकेदारों ने नारी को अश्लीलता व नग्नता की वस्तु बना दिया। और इसे अनुष्ठान का नाम देकर नारी की कामुकता को भोग का विषय बनाया तथा भगवान की दास बनाकर भगवान की मूर्ति के सामने नचवाया और फिर उसी पवित्रता को देह व्यापार का संयोग व संवाद बनाकर समाज के सामने पेश कर दिया।’8 ज्यों-ज्यों समाज विकास के मार्ग पर अग्रसरित हुआ त्यों-त्यों वेश्यावृत्ति में परिवर्तन होता गया। और ‘‘यह वृत्ति अन्य उद्योगों की तरह देह-व्यापार (कर्मिशियल सेक्स) भी एक उद्योग के रूप में सामने आता गया।’’9 जहां ऐसे लोगों की भरमार दिखाई देती है जो इसको खरीदने के इच्छुक होते हैं। यह बात सही है कि अन्य उद्योगों की भांति यह उद्योग कभी भी खरीददारों की कमी की शिकायत नहीं करता।
हालांकि खरीददारों की नियमित भोग और कामुकता को शांत करने के कारण यह उन समाजों में ज्यादा से ज्यादा रही जहां विकास और भूमंडलीय प्रक्रिया ने गरीबों को अपनी परिधि से बाहर कर दिया। सेक्स बेचना या सेक्स के लिए बिकना ऐसा कार्य है जिसमें गरीब तथा अनपढ़ भी आसानी से प्रवेश कर सकते हैं। किशोरावस्था तथा दैहिक आकर्षण ही इसकी एकमात्र अनिवार्य योग्यता है। ‘वेश्यावृत्ति एक ऐसा धंधा है जो लगातार सुनिश्चित करता है कि गरीब औरतें, सिर्फ कुछ सौभाग्यशालियों को छोड़कर, सदैव गरीब तथा अनपढ़ रहेंगी।’10 फिर भी जीवन निर्वाह के रक्षात्मक साधनों और अस्तित्व बनाएं रखने के लिए एशिया के अनेक भागों में वेश्यावृत्ति तेजी से पनप रही है।
एक अनुमान के अनुसार ‘‘इस वक्त बंबई महानगरी में ही लगभग 50 हजार वेश्यालय हैं, जिनमें एक लाख से ऊपर वेश्याएं धंधा कर रही हैं।’’11 वहीं मानवाधिकार आयोग के अनुसार, ‘‘भारत में लगभग 15 लाख वेश्याएं हैं। जबकि 1 लाख से अधिक वेश्याएं मुंबई, एशिया में वेश्यावृत्ति को अंजाम देती हैं।’’12 जो आज सबसे बड़ा सेक्स उद्योग बन गया है। उत्तर प्रदेश के जिलों में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है ‘‘कि 1,341 यौनकर्मी, वेश्यालय आधारित वेश्यावृत्ति के एक नमूने में 693 और परिवार आधारित वेश्यावृत्ति में 584 वेश्याएं लिप्त थी। वैसे लड़कियां मुख्य रूप में निम्न मध्यम आय वालें क्षेत्रों की होती हैं।’’13
इसके व्यापार की बात करें तो ‘‘देश में रोजाना 2000 लाख रूपए का देह व्यापर होता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 68 प्रतिशत लड़कियों को रोजगार के झांसे में फंसाकर वेश्यालयों तक पहुंचाया जाता है। 17 प्रतिशत शादी के वायदे में फंसकर आती हैं। वेश्यावृत्ति में लगी लड़कियों और महिलाओं की तादाद 30 लाख है।’’14 भारत में वेश्यावृत्ति के बाजार को देखते हुए अनेक देशों की युवतियां वेश्यावृत्ति के जरिए कमाई करने के लिए भारत की ओर रूख कर रही हैं। ऐसे भी मामले देखने में आए हैं जिसमें झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तरांचल में 12 से 15 वर्ष की कम उम्र की लड़कियों को भी वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से सटा दक्षिण 24 परगना जिले के मधुसूदन गांव में तो वेश्यावृत्ति को जिंदगी का हिस्सा माना जाता है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि वहां के लोग इसे कोई बदनामी नहीं मानते। उनके अनुसार यह सब उनकी जीवनशैली का हिस्सा है और उन्हें इस पर कोई शर्मिन्दगी नहीं है। इस पूरे गावं की अर्थव्यवस्था इसी धंधें पर टिकी है।
‘‘भारत में सेक्स वकर्स की संख्या करीब 28 लाख है। इनमें करीब 43 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं जो उस उम्र में ही इस धंधे में धकेल दी गईं जब उनकी उम्र अठारह बरस भी नहीं थी। भारत में 15 से 35 साल तक की महिलाओं की गिनती की जाए तो उनमें से 2.4 फीसदी महिलाएं सेक्स वर्कर हैं।’’15 इनमें सबसे ज्यादा महिलाएं मध्य प्रदेश और बिहार से हैं। इसके बाद राजस्थान और उत्तर प्रदेश का नंबर आता है।
वैसे वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियों में से यदि हम आज उनमें से एक-एक के जीवन का अनुशीलन करें, तो पाएंगे कि उनमें से अधिकांश के जीवन में ये सब सोपान एक के बाद एक घटित होते हैं। चकले में बैठने वाली अधिकांश स्त्रियों के जीवन के अनुशीलन से यह ज्ञात होता है कि ‘‘पहले कोई स्त्री किसी-न-किसी बुरी सोहबत में पड़कर या किसी मिथ्या प्रेमिक के जाल में फंसकर, या किसी अन्य प्रकार से वेश्यावृत्ति में कदम रखती है, तो पहले-पहल वह केवल एक यौथ स्त्री (ऐतिहासिक अर्थ में नहीं) हो जाती है, और उसकी कमाई पर उसके कथित मालिक या चकले की मालकिन का अधिकार होता है।’’16 इसके बाद जब वह कुछ समझने लगती है और या तो उसके आने-जाने वालों में उसके एकाध सहायक पैदा हो जाते हैं या मालकिन समझती है कि उसे पूर्ण रूप से दबाकर नहीं रखा जा सकता तो वह उसे कुछ हिस्सा देने लगती है। इसके बाद का सोपान वेश्या के लिए ‘पूर्ण स्वतंत्र’ रूप का सोपान है, जब वह खुद कमरा लेकर या मकान लेकर अलग ‘स्वतंत्र’ रूप से बाजार में अपना रूप-यौवन बेचने लगती हैं।
वेश्यावृत्ति को अपनाने के मूलभूत कारण सामने आएं हैं जिन कारण से ये स्त्रियां वेश्यावृत्ति का रास्त चुन लेती हैं; यथा-
आर्थिक कारण
अनेक स्त्रियां अपनी एवं आश्रितों की भूख की ज्वाला शांत करने के लिए विवश हो इस वृत्ति को अपनाती हैं। जीविकोपार्जन के अन्य साधनों के अभाव तथा अन्य कार्यों के अत्यंत श्रम साध्य एवं अल्वैतनिक होने के कारण वेश्यावृत्ति की ओर आकर्षित होती है। धनीवर्ग द्वारा प्रस्तुत विलासिता, आत्मनिरति तथा छिछोरेपन के अन्यान्य उदाहरण भी प्रोत्साहन के कारण बनते हैं। एक अध्ययन के अनुसान लगभग 65 प्रतिशत वेश्याएं आर्थिक कारणवश इस वृत्ति को अपनाती हैं।
सामाजिक कारण
समाज ने अपनी मान्यताओं, रूढ़ियों और त्रुटिपूर्ण नीतियों द्वारा इस समस्या को और जटिल बना दिया है। विवाह संस्कार के कठोर नियम, दहेज प्रथा, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, सामान्य चारित्रिक भूल के लिए सामाजिक बहिष्कार, अनमेल विवाह, तलाक प्रथा का अभाव आदि अनके कारण इस घृणित वृत्ति को अपनाने में सहायक होते हैं। इस वृत्ति को त्यागने के पश्चात् अन्य कोई विकल्प नहीं होता। ऐसी स्त्रियों के लिए समाज के द्वारा सर्वदा के लिए बंद हो जाते हैं। वेश्याओं की कन्याएं समाज द्वारा सर्वथा त्याज्य होने के कारण अपनी मां की ही वृत्ति अपनाने के लिए बाध्य होती हैं। समाज में स्त्रियों की संख्या पुरूषों की अपेक्षा अधिक होने तथा शारीरिक, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से बाधाग्रस्त होने के कारण अनेक पुरूषों के लिए विवाह संबंध स्थापित करना सभव नहीं हो पाता। इनकी कामतृप्ति का एकमात्र स्थल वेश्यालय होता है। वेश्याएं तथा स्त्री व्यापार में संलग्न अनेक व्यक्ति भोली-भाली बालिकाओं की विषय आर्थिक स्थिति का लाभ उठाकर तथा सुखमय भविष्य का प्रलोभन देकर उन्हें इस व्यवसाय में प्रविष्ट कराते हैं। चरित्रहीन माता-पिता अथवा साथियों का संपर्क, अश्लील साहित्य, वासनात्मक मनोविनोद और चलचित्रों में कामोत्तेजक प्रसंगों का बाहुल्य आदि वेश्यावृत्ति के पोषक प्रमाणित होते हैं।
मनोवैज्ञानिक कारण
वेश्यावृत्ति का एक प्रमुख आधार मनोवैज्ञानिक है। कतिपय स्त्री पुरूषों में कामकाज प्रवृत्ति इतनी प्रबल होती है कि इसकी तृप्ति, मात्र वैवाहिक संबंध द्वारा संभव नहीं होती। उनकी कामवासना की स्वतंत्र प्रवृत्ति उन्मुक्त यौन संबंध द्वारा पुष्ट होती है। विवाहित पुरूषों के वेश्यागमन तथा विवाहित स्त्रियों के विवाहेत्तर संबंध में यही प्रवृत्ति क्रियाशील रहती है।
इस सब कारणों से महिलाएं वेश्यावृत्ति को अपनाने पर मजबूर हो जाती हैं या समाज द्वारा मजबूर कर दी जाती हैं। वैसे समाज में इस वृत्ति को रोकने के लिए 1956 में वेश्यावृत्ति कानून बना। परंतु यह कानून वेश्यावृत्ति को मिटाने का प्रयास नहीं करता, बल्कि सिर्फ चकलाघर चलाने या उसके लिए घर किराए पर देने या वेश्या के लिए दलाली करने को जुर्म की संज्ञा दे देता है। फलस्वरूप, यह कानून न तो स्वेच्छा से या अकेले वेश्यावृत्ति करने पर कोई पाबंदी लगा पाता था और न ही इस व्यापार की जड़ यानी खरीददार पर। इस कानून के एवज में देखा जाए तो मुंबई ‘‘पुलिस के निगरानी प्रकोष्ठ शाखा के रिर्कार्ड के अनुसार पिछले छह वर्षों में 469 वेश्यालयों के मालिक पकड़े गए, पर उनमें से कुल दो दंडित हुए। इनमें से एक भी दलाल या गृहस्वामी नहीं था। दूसरी तरफ इसी अरसे में 4,139 वेश्याएं वेश्यावृत्ति निरोधक कानून (सीता) के खंड 8(बी) के अंतर्गत और 44,663 बंबई पुलिस कानून के खंड 110 के अंतर्गत पकड़ी गई।’’17 इनमें से हर एक को दंडित किया गया। भारत में वेश्यावृत्ति या देहव्यापार अभी भी अनैतिक देहव्यापार कानून के तहत आते हैं। हालांकि देश में समय-समय पर इस बात को लेकर उच्चस्तरीय बहसें चलती रहीं हैं कि क्यों न वेश्यावृत्ति को कानूनन वैध बना दिया जाए। यानी यह कानून व्यर्थ रहा, यह स्वीकार करने के बाद उसकी व्यर्थता के कारणों को जांचने के बजाय इस पूरे धंधे से दंड व्यवस्था अपनी जिम्मेदारी ही समेट ले? राज्य व्यवस्था स्त्रियों के हिंसक उत्पीड़न, शोषण और खरीदे बेचे जाने की पाशविक परंपरा को अपनी मूक असहाय सहमति दे दे?
वैसे इस वृत्ति के परिपे्रक्ष्य में देखा जाए तो भारत में सेक्स व्यवसाय या इससे जुड़ी प्रत्यक्ष गतिविधियां प्रतिबंधित है और इसे भारतीय कानून के तहत अपराध माना गया है। ‘‘इम्मोरल ट्रैफिक सप्रेशन एक्ट (सीटा) 1956 के तहत भारत में देह व्यापार अपराध है। सीटा कानून में 1986 में संशोधन करके इसे इम्मोरल ट्रेफिक प्रिवेंशन एक्ट (पीटा) नाम दिया गया। इसके अंतर्गत देह व्यापार का प्रचार करना भी अपराध है। किसी भी तरह की सेक्स सर्विस का विज्ञापन या फोन नंबर किसी भी माध्यम से प्रेषित करना गैरकानूनी है।’’18 इसके साथ ही साथ किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र में वेश्यालय नहीं चलाया जा सकता। इसी तरह से मसाज क्लबों या हेल्स स्पा के नाम से की जा रही अनैतिक गतिविधियां या संगठित देह व्यापार अपराध है। लेकिन इसके लिए लगाई जाने वाली कानूनी धाराओं में कई लूप होल हैं और अधिकतर धाराएं जमानती है। परंतु सामाजिक रूप से इस विषय को देखा जाए तो सभ्य समाज में अवैध व्यापार और वेश्यावृत्ति किसी प्रकार से स्वीकार्य नहीं है। पर फिर भी देश में सेक्स वर्कर और वेश्यावृत्ति का बाजार बढ़ा है। इस समस्या का कोई हल हो सकता है क्या? ‘वेश्यावृत्ति के मामले का जब कभी खुलासा होता है तो सामाजिक दबाव के चलते पारिवारिक लोग अपने बच्चे को स्वीकार नहीं करते हैं।’19 ऐसी समस्या को मात्र कानून से नहीं बल्कि सामाजिक ढाचे के अनुसार स्वीकार करना होगा।
1 comment:
वेश्यावृति सभ्य -अथवा असभ्य , शिक्षित या अनपढ़ .. पुरातन, सनातन और वर्तमान सभी काल में किसी न किसी रूप में मौजूद और स्वीकार्य रही है.
इसके अस्तित्व की नैतिकता एक हमेशा से विमर्श का पर्याय बना रहा है.
आपका लेख सर्वांगीण और कई पहलुओं पर प्रकाश डालने वाला है. संकलन योग्य लेख.
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