सरोकार की मीडिया

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Tuesday, September 27, 2011

मीडिया का दोहरा चरित्र या दोगलापन

आज मीडिया किस तर्ज पर काम कर रहा है, समझ से परे है; जिस भेड़चाल की भाषा का इस्‍तेमाल हो रहा है, वो सभी जानते हैं कि एक उच्‍चवर्ग की भाषा बोली जा रही है. कौन कह सकता है कि यह सभ्‍य मीडिया है, जो समाज में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार को मिटाने में कारगर साबित होगा, जिसका पूरा गिरेवान दागदार हो और जो खुद पूरी तरह से इस दलदल में धस चुका हो, वो क्‍या समाज का उद्धार करेगा. अगर देखा जाए तो आज तक किसी भी मीडिया संस्‍थान ने यह दिखाने की जहमत नहीं उठायी कि फलां फलां समाचार पत्र में या न्‍यूज चैनल में फलां फलां व्‍यक्ति भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त है, या अपराधी है. जिस तरह से पुलिसवाले अपने भाईयों को (सहकर्मी) जल्‍द ही नहीं पकड़ती, जब तक उसने उपर कोई दवाब न पड़े, उससे भी बुरी दशा मीडिया की है, वो तो दवाब पड़ने के बावजूद भी उनके द्वारा किये गये अपराधों को समाज के सामने नहीं लाता, और पूरा मामला गधे के सिर से सींग की तरह गायाब कर दिया जाता है. शायद मीडिया डायन के तर्ज पर काम कर रहा है क्‍योंकि डायन भी सात घर छोड़कर वार करती है; उसी प्रकार मीडिया भी अपने भाईयों को और अपने रहनूमाओं को छोड़कर बाकी सभी को खबर बनाकर पेश करता रहता है. यह एक तरह का दोगलापन है, दोहरा चरित्र है.
वैसे मीडिया में दिखाई जाने वाली तमाम खबरों को देखकर आमजन की धारणा खुद ब खुद बन जाती है कि जो दिखाया जा रहा है वो सोलहआने सत्‍य है. उसमें झूठ की कहीं कोई गुंजाइस नहीं है. पर आमजन की कसौटी पर मीडिया पूरी तरह खरी नहीं उतरती. वो एक एक खबर की धाज्जियां उड़ाते हुए उस खबर से तालुक रखने वाले व्‍यक्ति का व उसके परिवार का समाज में जीना हराम कर देते हैं. क्‍योंकि वो खबर मध्‍यमवर्ग या फिर निम्‍न वर्गीय लोगों से होती है. उच्‍चवर्गीय लोगों से ताल्‍लुक रखने वाली खबर तो बस, खिलाडि़यों की, फिल्‍मी अभिनेता व अभिनेत्रियों की, नेताओं की, पार्टी में सिरकत लोगों की अधिकांश होती है. क्‍योंकि कहीं न कहीं इन उघोगपतियों और राजनेताओं द्वारा गरीबों का खून चूस चूसकर इक्‍ठ्ठा किया जाता है और उस धन से खोल लिया जाता है एक मीडिया संस्‍थान. काली कमाई को सफेद बनाने का एक आसान जरिया, और बड़ी आसानी से बन भी जाती है,
आज तक मैंने किसी भी मीडिया में यह खबर चलते नहीं देखा कि इस मीडिया संस्‍थान में इनकम टैक्‍स का छापा पड़ा हो, उसके मालिक के घर छापा पड़ा हो, और उसका घर या फिर मीडिया चैनल को सील कर दिया हो. क्‍या मीडिया इनता पाक साफ है कि उसके द्वारा कोई भी अपराध या लेनदेन की घटनायें नहीं होती. इस परिप्रेक्ष्‍य में क्‍या कहा जा सकता है; आमजन तो गांधारी की तरह आंखों पर पट्टी  बांधकर सबकुछ सहन कर रहे है; वो सोचते है शायद हमारी यही नियती है; सदियों से झेलते आये है अब भी झेलना पड़ रहा है; जिस चौथे स्‍तंभ से न्‍याय की आस लगाये बैठे है वो ही अपराध में लिप्‍त हो चुका है, जो खुद अपराध में लिप्‍त है वो बाहुबलियों से पीडि़त व्‍यक्ति को क्‍या इंसाफ दिला पाएगा; इस न्‍याय आस में पीडि़त साल दर साल जीवित रहते है, और मर जाती हैं आस की वो सारी किरण, जो न्‍याय की दहलीज तक पहुंच सकें.

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