सरोकार की मीडिया

test scroller


Click here for Myspace Layouts

Friday, August 28, 2015

आरक्षण आखिर क्‍यों??????

आरक्षण आखिर क्‍यों??????
आरक्षण आखिर क्‍यों? सोचों, समझों और फिर चिल्‍लाओं.....मुंह फाड़-फाड़ कर चिल्‍लाओं। आग लगाओं.... लोगों को मारो.... सरकारी संपत्ति फूंकों.....आखिर तुम्‍हारे अब्‍बा जान का राज जो चल रहा है।  एक ने कहा आरक्षण हटाओं, 100 ने कहा....... आरक्षण हटाओं। अरे भई तुम सब पढ़े-लिख बुद्धजीवी व्‍यक्ति हो...कभी इतिहास के पन्‍नों को भी खंगाल कर देख लो। क्‍या दुर्दशा थी वर्तमान समय में आरक्षण पाने वालों की... जमीन, पैसा, कानून, शिक्षाउनकी बहु बेटियों और यहां तक पानी पर भी हमारा अधिकार था ... हम जो चाहते थे वैसा ही उनको करना पड़ता था। नहीं करते तो कहां जाते... जैसे तैसे आजादी के बाद उन लोगों को एक मसीहा ने स्थिति में सुधार और बाहूबलि वर्ग के समकक्ष लाने के लिए आरक्षण की मांग की....जिस पर तत्‍कालीन गांधी ने भी तरह तरह की अड़चनें पैदा की... कभी विरोध में अनशन पर बैठ गया तो कभी धरना प्रदर्शन किया। इन सबके बावजूद आखिरकार उसे उन लोगों को आरक्षण देना पड़ा।
आरक्षण मिलने के बाद उन लोगों की स्थिति में सुधार तो आया, पर कितना.....??????  आज भी क्‍या वह बाहूबलि के समकक्ष अपने आप को खड़ा पाता है... जबाव मिलेगा नहीं(कुछ एक अपवादों को छोड़कर)। क्‍योंकि आज भी बाहूबलि वर्ग नहीं चाहता कि उनके नीचे काम करना वो वर्ग उनके साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर काम करें। शिक्षा के क्षेत्र की बात की जाए तो आरक्षण मिलने के बाद क्‍या वह वर्ग अपने बच्‍चों को मोटी फीस के कारण पढ़ा पाने में सक्षम है। रही बात नौकरी की तो आरक्षण मिलने के बाद भी जिस तरह का भ्रष्‍टाचार फैल चुका है उस में एक चपरासी के पद के लिए भी 5 से 8 लाख रूपए टेबल के नीचे से या उपर से चले जाते हैं, जिसके पास होते हैं वो दे देता है और जिसके पास नहीं होते,वह अपने हाल पर रोता है... और याद करता है अपने दादा, परदादाओं के जीवन को.. कि किस तरह से एक-एक निवाले के लिए इन लोगों ने हमारी चमड़ी तक खींच ली। बंधुआ मजदूर बना कर लगातार काम करवाया। सोचों तो शायद तुम सबके रोंगट खड़े हो जाएंगे......
वैसे चलिए मान लेते हैं कि आरक्षण खत्‍म होना चाहिए..... पर सोचों कि एक परिवार दिन में तीन समय भोजन करता आया है....एक परिवार दिन में दो समय... वहीं एक परिवार को एक समय का भोजन तो दूर की बात, अपने बच्‍चों को चंद निवाला खिलाने के लिए सब कुछ किया फिर भी निवाला नसीब नहीं हुआ। अगर उस परिवार को दिन में तीन समय का भोजन दिलाने के लिए आरक्षण दिया गया तो क्‍या गलत किया गया.....अगर इस बात पर भी सहमत न हो तो क्‍या आप वर्ग और संपत्ति में रोटेशन पॉलसी पर सहमत होगें... कि आज आप उच्‍च वर्ग के हो और आपके पास अचल संपत्ति है, जिसको  दो साल के बाद रोटेशन पॉलसी के अनुसार किसी और वर्ग में हस्‍तांतरित कर दी जाएगी...आप निम्‍न वर्ग में गिने जाने लगोगे और आपकी अचल संपत्ति आपसे छीन ली जाएगी। सिर्फ आपके पास होगा आरक्षण..;... आरक्षण नाम का झुनझुना..... जिसको हटाने के लिए हम सब कब से भौंके जा रहे थे. सहमत हो इस बात से.....

शायद इस बात पर हम सहमत न हो..... हमें तो उच्‍च वर्ग,अचल संपत्ति साथ  में निम्‍न वर्गों को दिया जाने वाला आरक्षण सब चाहिए। हमें आरक्षण नहीं तो इन नीचे लोगों को कैसे????????  तभी तो सब के सब एक ही भेड़चाल में मिमया रहे हैं।  आरक्षण हटाओं... आरक्षण हटाओं..

Wednesday, August 26, 2015

हाय री बिजली भौजाई..........अब तो आ जा

हाय री बिजली भौजाई..........अब तो आ जा
क्या कहूं तुझे ओ बिजली भौजाई? तेरे आने से चेहरे खिले और जाते ही उतर जाए। तेरे तो आजकल भाव बढ़ गए हैं तभी तो तुझे हम लोगों की फिकर नहीं। काहे सता रही हो। आती भी देर से हो, चली भी जल्दी जाती हो? क्यों रिसानी हो, हम लोगों से। ऐसा क्या गुनाह हमसे हो गया ओ बिजली देवी, जो तुम इतनी खफा चल रही हो? कुछ तो बताओं.......... मुंह तो खोलो....... कहो तो नींबू, नारियल, हवन, पूजा-पाठ करवाऊ तुझे मनाने के लिए। कहीं तेरे ऊपर किसी ने जादू टोना तो नहीं कर दिया?, जो तू सिर्फ मुंह दिखाकर चली जाती है। क्यों कर रही है ऐसा.... तेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं उनकी तो चिंता कर। हम तो तेरे अपने ही हैं, फिर भी।
स्ही है तू क्यों सुनेगी, तुझे तो बड़े बापों की फिकर है, वहीं रहती है दिन रात। तभी तो तुझे जरा भी डर नहीं है। सह जो मिल रही है अपने दादाओं की। तुझे पता भी है कि यह दादाओं की फौज चंद दिनों की मेहमान होती है। रहना तो तुझे हम लोगों के साथ ही है। फिर इतना क्यों इतरा रही हो। कल जब यह तुझे छोड़कर चले जाएंगे, तब लौटकर तुझे आना तो हम लोगों के पास ही है। तब क्या कहेगी...... मान जा ओ बिजली भौजाई, मान जा..................।
वैसे तेरा बाप भी अब वो ससुर नहीं रहा जो एक बार कहने पर तुझे भेज देता था। वो भी तेरी तरह दादाओं का चमचा बन बैठा है। सुनता ही नहीं किसी की बात को....... तेरे जैसे ही तेरा बाप का दिमाग सातवें आसमान पर चल रहा है। अभी वक्त है खुद को और आपने बाप को समझा ले, नहीं तो जिस दिन हम लोगों की मुंडी खिसकी तो समझ लेना, मार-मार जूतों से ठीक कर दिए जाओंगे............. कोई बचाने भी नहीं आएंगा। जाना फिर किसी दादाओं के पास जाते हो। वैसे तेरा बाप पिटने के ही लायक है, जो तुझे बार बार बुला लेता है।
ऐसा क्या उत्तर प्रदेश में ही हो रहा है? अन्य राज्यों में तो शादी के बाद भौजाई मायके जाने का नाम ही नहीं लेती और न ही भौजाई का बाप उसे इस तरह से बुलाता है। न ही भौजाई बिना अनुमति के अपने मायके बार-बार भागती है। ऐसा शायद उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुखिया के कारण हुआ है या फिर ऐसा रिवाज पहले से ही चला आ रहा है। जिसका कोई विरोध नहीं कर रहा........ न जाने क्यों?
हालांकि मोदी बाबा जब से आए हैं अच्छे दिन के चक्कर में आटा, दाल और तो और प्याज को मंहगा कर ही दिया है। उनके आते ही प्रदेश के मुखिया हम लोगों से नाराज से दिखाई देने लगे हैं। और इस नाराजगी के चलते वह बिजली भौजाई के बाप को हमेशा आदेश देते रहते हैं कि भौजाई ज्यादा समय तक वहां नहीं टिकनी चाहिए, उन लोगों को भी पता चले हमें नजरअंदाज करने का नतीजा। वैसे दद्दा का हुकम भला भौजाई का बाप कैसे टाल सकता है। इसलिए बुला लेता है।
यह सब अच्छे दिनों के चक्कर में हुआ है। एक छलावा, एक दिखावा, फंस गए गुरू ऐसी शादी करके। इससे अच्छा तो कुंवारे ही अच्छे थे.... राहुल की तरह। तेरे झांसे में आए और हमारी प्यारी भौजाई रूठ कर बार-बार मायके भागने लगी। अब तो राह तकते-तकते आंखें पथरा सी गई हैं कि तु कब आएगी... कब आएंगी?????
इंतहा हो गई इंतजार की
आई न खबर बिजली भौजाई की
हमको है यकीं
तेरा बाप है कमीन
यहीं वजह हुई

तेरे इंतजार की......

Sunday, August 16, 2015

आम आदमी बनाम अपराधी

आम आदमी बनाम अपराधी

अपराध हमारे समाज में सदियों से रहा है और रहेगा..... कोई भी व्‍यक्ति कभी पेट से अपराधी बनकर पैदा नहीं होता......हालात, पल, लम्‍हा, घड़ी और वक्‍त्‍ा अपराध की शक्‍ल इख्तियार कर लेते हैं आैर यही वक्‍त अपराधी को जन्‍म देता है। शक्‍ल इख्तियार किए हुए हालात जब उस व्‍यक्ति के समक्ष खड़े होते हैं तब व्‍यक्ति का दिमाग शून्‍य के धरातल में चला जाता है और उससे अपराध हो जाता है। अपराध होने के उपरांत वह व्‍यक्ति एक बार जरूर उसके द्वारा किए गए अपराध के बारे में आंकलन जरूर करता है कि वह कौन से कारण उसके द्वारा, उसके करीबियों द्वारा या समाज द्वारा उत्‍पन्‍न हुए जिसने उसे एक आम व्‍यक्ति से अपराध की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। अब वह उस अपराध की सजा और संपूर्ण जीवन का विश्‍लेषण करने लगता है कि अब क्‍या होगा उसका व उससे जुड़े हुए लोगों का। वहीं व्‍यक्ति द्वारा अपराध और सजा के लिए बनी कारागार में एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं हजारों अपराधियों का जमावड़ा एकत्रित होता है। एक ही छत के नीचे। तरह तरह के अपराधी, छोटे से लेकर बड़े-बड़े अपराधियों की मिलनगाह, जहां अपराधियों को उनके नंबरों से पहचाना जाता है। 
एक ही छत के नीचे अपराधियों का मिलन, क्‍या अपराध काे कम करता होगा, या फिर एक नई तरह की मनोवृत्ति उन लोगों के मस्तिष्‍क में पैदा होती होगी, तरह तरह के अपराधियों से मिलने के उपरांत। यह तो उन अपराधियों से जो सजा काट रहे हैं या काट चुके हैं उनसे मिलने के पश्‍चात ही इसका सही सही आंकलन करना संभव हो सकता है कि जब एक आम व्‍यक्ति अपराध करके अपराधी बनता है और वह उस जगह जहां अपराधियों का जमावड़ा लगा रहता है, उसके बीच में रहते हुए हर एक अपराधी क्‍या क्‍या सोचता है और किस तरह से आम आदमी जो अब अपराधी है उन अन्‍य अपराधियों के बीच में तालमेल बिठा पाता है। आैर सजा काटने के पश्‍चात उसके मन मस्तिष्‍क में किस तरह के विचार पनपते हैं, क्‍या वह खुद के द्वारा किए गए अपराध को भुला पाता है, उस सजा को भुला पाता है या फिर उन तमाम अपराधियों को जिनके साथ उसने वक्‍त बिताया है। 
कहते हैं आदमी जिस संगत में रहता है उसका आचरण भी ठीक वैसा ही हाे जाता है। जिसके साथ में वो समय गुजारता है। यानि कारागार में आदमी सजा काटने के बाद भी एक आदमी नहीं बन पाता, वहअपराधियों की बीच में रहकर अपराधी ही बनकर निकलता है। फिर कारागार की क्‍या आवश्‍यकता है जब वहां से आदमी अपराधी ही बनकर निकलता है। हां यदि सौ में से एक इंसान बनकर भी निकलता है तो क्‍या वह एक आम आदमी के जैसी जिंदगी जी सकता हूं। जबाव मिलेगा नहीं..... कभी नहीं.... एक अपराधी का ठप्‍पा लगने के बाद समाज उसे हमेशा ही अपराधी की दृष्टि से देखता है चाहे वह उस अपराध की सजा काटकर क्‍यों नहीं आया हो। 
अब सवाल उत्‍पन्‍न होते हैं कि क्‍या अपराधी एक आम आदमी बन सकता है, क्‍या कारागार में रहने के बाद वह आम आदमी बन पाया होगा........

Friday, August 14, 2015

स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर प्रश्नचिह्न भी जरूरी है!

स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर प्रश्नचिह्न भी जरूरी है!

लोकतंत्र की आयु जैसे-जैसे परिपक्व हो रही है लोग विकास और राष्ट्रहितकारी विचार के विपरीत भ्रष्ट से भ्रष्टतम होते जा रहे हैं।
‘‘हम आजादी का जश्न तो मना रहे है लेकिन कुछ प्रश्नों को क्यों झुठला रहे है? सार्वजनिक स्तर पर लोकहित, उत्तरदायित्व, विवेकाधिकार, संरक्षण, सामन्जस्य और समन्वय कमजोर होते नजर आ रहे है तो न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व की संकल्पना आज कटघरे में भी साबित हो रही है। ऐसे में वर्तमान भारत की बदलती तस्वीर के बरक्स स्वतंत्रता की पड़ताल और प्रश्नचिह्न भी लगना जरूरी है ।’’
स्वतंत्रता के बाद भारत को पुनः स्थापित करने के लिए जिन विचारों और सैद्धांतिकी को स्थापित किया गया था। उसे अक्सर इतिहास की पुस्तकों में हम सभी मौजूद पाते हैं। स्वतंत्र भारत ने समृद्ध संस्कृति के साथ देश को विकसित करने की चुनौती के अलावा जरूरी-गैरजरूरी कई झंझावत झेले जिनकी तस्वीर और सिलसिला आज भी रोजमर्रा है। देश की आबादी किसी न किसी रूप में अधिकांशतः निर्भरता में है। अलग-अलग समुदाय अभी विभिन्न बुनियादी आवश्यकताओं के लिए किसी ना किसी रूप में सरकारी या गैर सरकारी ईकाईयों पर निर्भर हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि देश की निर्भर अवाम के लिए संचालन और समन्वय की स्थिति कब सुनिश्चित हो पाएगी।
देश में गुलामी के समय से विरासत में मिली समस्याओं से इतर विभाजन की स्थिति से आरंभ समस्याओं की गिनती अभी घटती नजर नहीं आ रही है। समय बदलाता रहा और समस्याओं के सापेक्ष निवारण स्थापित नहीं हो पाए। हालांकि विभिन्न क्षेत्रों में जो कुछ विकास हुए हैं उन्हें बड़े स्तर पर देखे जाने से पहले जमीनी स्तर भी देखा जाना चाहिए। विविधताओं के देश में संतुलित और समग्र विकास एक चुुनौती अवश्य है। लेकिन कार्य शैली के अनुसार कार्यपालिका विधायिका और न्याय पालिका के क्षेत्र सर्व सार्वजनिक स्तर पर लोकहितकारी साबित होते नहीं दिख रहे हैं। यही कारण है कि आज जनता में कई अविश्वास पनप रहे है। यही अविश्वास प्रगति के बाधक भी है। स्वतंत्रता आंदोलन से उपजी राष्ट्रहित की भावना और प्रतिरोध का परिवेश लगातार सीमित हो रहा है। आंदोलनों के संचालन जिनके हाथों पहुंचते है वह समूह राजनीतिक हितों व लोभ में जन आंदोलनों को करिश्माई तरीके से शून्य कर दते है। सार्वजनिक क्षेत्र, प्राकृतिक संसाधन, व्यापार वाणिज्य, उद्योगजगत में हमें भारत की विविधता में एकता अजीब सी दिखती है। शीर्ष स्तर पर ऐसे अनेक क्षेत्रों में आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े समाज के लोगों की उपस्थिति लोकतंत्र स्थापित होने के अरसठ वर्ष में भी न्यूनतम है। वहीं कई समाज तो अभी भी शून्य की स्थिति में हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर विकास के किस माॅडल पर देश चल रहा है? स्वतंत्र परिवेश में प्रत्येक को अवसर की समानता के साथ विकसित करने का सपना कब साकार होगा?
सिद्धांतो के मूर्त रूप विरले ही पाए जाते है! बाकी कोरी कल्पनाएं संसद, विधानसभा, नियमों में यथावत विद्यमान और ढर्रे पर गतिमान हैं। आज सामाजिक आंदोलनों की स्थिति यह है कि वह किसी मुद्दे को सूचना तकनीक युग में बड़ी तेजी से प्रसारित होते दिखते है लेकिन उनकी परिणति प्रायः किसी मुकाम तक नहीं पहुचती। इसलिए वर्तमान में हो रहे आंदोलन प्रायः बुलबुला साबित होते हैं। राजनंीति में अत्यधिक धन व अपराधीकरण का शामिल होना मूल प्रेरणा साबित हो रही है। भविष्य की राजनीतिक परिपाटी के लिए यह चिंता का विषय है। इसी कारण सुयोग्य व्याक्ति राजनीति में फेल हो रहे हैं। गाहे-बगाहे राजनीति में आए सुयोग्यों की दूरगामी संभवानों को देखते हुए समीकरण और अवरोध तैयार कर सीमित कर दिया जाता है। लोकतंत्र की आयु जैसे-जैसे परिपक्व हो रही है लोग विकास और राष्ट्रहितकारी विचार के विपरीत भ्रष्ट से भ्रष्टतम होते जा रहे हैं। हमारी सरकारें कई मामलों में मूकदर्शक बनकर बैठी रहती है और समस्याओं का चक्रवृद्धि विस्तार होता रहता है। अधिकांश लोकसेवा के क्षेत्र आज पर्याप्त सेवा देने में सक्षम नहीं है यही नहीं उनमें सेवा की भावना भी लुप्त हो रही है। इस नकारात्मकता के पनपने से प्रायः लोग सहजता से स्वीकार करते हैं। लोक सेवा के कार्यालयों को भ्रष्टाचार की फुलवारी के रूप में फलते-फूलते देखा जा सकता है। सरकारी धन व संसाधनों का दुर्पयोग, लूट-घसूट, रिश्वतखोरी और सामान्य कार्य की गति में अवरोध देश भर में कहीं भी देखा जा सकता है। सरकारी क्षेत्र में तो मानों पूरा वेतन लेकर कार्य को रोकने का वाकया धीरे-धीरे सामाजीकृत हो गया है। निजी क्षेत्रों में अवसर की समानता कहने को तो कौशल आधारित माॅडल पर वितरित की जानी थी। लेकिन निजी क्षेत्रों में योग्य व्यक्ति से अधिक उनकी शर्तों के सिर्फ लक्षित कार्य करने वाला और लक्ष्य को चाणक्य के साम, दाम, दण्ड, भेद से क्रियान्वित करने वाला व्यक्ति चाहिए। ऐसे में उत्तदायित्व का बोध व नैतिकता का गायब होना स्वाभाविक होगा। निजी क्षेत्रों में प्रायः सेवा और गुणवत्ता को केंद्रित किया जाता है, लेकिन अधिकांशतः सिविल अधिकारों का हनन इन्हीं क्षेत्रों द्वारा होता है। न्यायपूर्ण दृष्टि की रिक्तता आज समाज और विविध क्षेत्रों के लिए खतरनाक साबित हो रही है। लोगों के व्यवहार में कर्तव्य, न्याय, समानता, बंधुत्व, और नैतिकता के सहज सिद्धांतों की छवि नहीं दिखती। परिणमतः लोकतंत्र मानों वेन्टिलेटर पर आ गया है जिसे सत्ता के लोग, बड़े अधिकारी, कॉरपोरेट, राजनीति के मठाधीश, आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग और उद्योगजगत के लोग अपनी सुविधानुसार ऑक्सीजन देते हैं और पूरी प्रणाली को संचालित करते हैं। किसानों से सहज ही भूमि लेकर चंद दिनों में एक बिल्डर लाभ के अंश को अधिकाधिक बना लेता है। वहीं किसान की उपज को लाभ की नजर से बढ़ाने का उपाय स्वतंत्रता के बाद आज तक नहीं इजाद किया जा सका है! जबकि राष्ट्रीय स्तर पर आज व्यापार वाणिज्य के सभी नियंत्रण और व्यापार नीति पराधीन नहीं है। मल्टी नेशनल कंपनियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है उन्हंें जमीने और प्राकृतिक संसाधन सौपे जा रहे है। नीतियों को नीजी क्षेेत्रों के हित में बड़ी सहजता से सौंपा जा रहा है। शायद यही ऐसा तरीका है जिससे भ्रष्ट तरीके से धन अर्जित किया जा सकता है। क्योंकि यदि ऐसे व्यापार क्षेत्र किसी राज्य सरकार या सरकारी इकाई को सौपेगे तो कालाधन उगाही की गुंजाइश कम होेगी। हमारे सामने फिलीपीन्स, सउदी अरब, यूरोप सहित अमेरिका के कुछ राज्यों के उदाहरण है जहां सरकारी क्षेत्र नीजी क्षेत्रों से बेहतर और गुणवक्तायुक्त होने के साथ सरकारी खजाने को बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। वहीं भारत अधिकांशतः सिर्फ राजस्व (टैक्स) पर सीमिति है। जनता के सामने विकल्प ना रखकर नीजीकरण को तो जैसे मसीहा बनाकर पेश किया जा रहा है कि देश का विकास सिर्फ नीजीकरण ही कर सकता है। यदि सरकारी क्षेत्रों के ईमानदार कर्मियों को प्रोत्साहित कर आगे नई परियोजनाओं को सौपा जाए तो सरकारी क्षेत्र भी प्रबल हो सकते हैं। ईमानदारों के प्रोत्साहन की परम्परा आज नहीं दिखती जिससे भविष्य के ईमानदार भी निर्मित नहीं हो रहे हैं।
आज स्वतंत्रता दिवस को सिर्फ कैलेण्डर मे दर्शाए गए लाल कोष्ठक या अवकाश दिवस के रूप में देखकर दस्तूर निभाने की जरूरत नहीं है। स्वतंत्रता दिवस को अवकाश की बजाए कर्मठ कार्य दिवस घोषित किया जाना चाहिए। क्योंकि इस अवकाश को अधिकांशतः लोग मनोरंजन के अवसर के रूप में देखते हैं। लोग स्वतंत्रता दिवस को क्लब, डिस्को, पब, सिनेमा और पार्टी तक सीमित कर देते हैं। ऐसे में राष्ट्र निष्ठा, उत्तरदायित्व और मूल्य की उपज पाना कोरी कल्पना ही साबित होगी। आने वाली पीढ़ी के लिए स्वतंत्रता और लोकतंत्र की मूल भावना के स्रोतों को समझने का वातावरण ही नहीं दिखेगा तो आने वाले समय का सृजन भी एक बड़ी चुनौती होगा। देश में जनसामान्य के लिए न्यायपूर्ण स्थितियां, सुरक्षा, भेद-भाव मुक्त परिवेश, भ्रष्टाचार मुक्त शिक्षा और रोजगार प्रणाली नहीं हैं। बाजार में उद्योग जगत द्वारा अनियंत्रित दाम निर्धारित कर सामग्री और सेवाएं दी जा रही हैं जबकि देश के लिए यह कोई मजबूरी नहीं है। संविधान और कानून में परिभाषित स्वतंत्रता को सुविधानुसार बना लिया जाता है। ऐसे में जनसामान्य के लिए ऐसी स्थिति नहीं दिखती जिससे समाज का अंतिम व्यक्ति स्वतंत्रता दिवस के रूप में गर्व से स्वीकार करे। देश भर में समस्याओं की सूची में अभी भी वही पुरानी समस्याएं हैं। तो फिर प्रश्न स्वाभाविक है कि यह विकास यात्रा जिसमें अनेक लोग करोड़पति, उद्योगपति और भूमण्डलीकृत हुए हैं उनमें शोषित, वंचित वर्ग की स्थिति लगातार कमजोर क्यों है? आज स्वतंत्रता और लोकतंत्र के सामने खड़े प्रश्नों का सामना करना जरूरी है और नीति और नियति तय करने की भी आवश्यकता है।


सभार-
संदीप कुमार वर्मा
सहायक प्रोफेसर, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र
yesandeep@gmail.com


Tuesday, August 11, 2015

दैनिक सरोकार की मीडिया द्वारा एक बहुत बड़े घोटाले का पर्दाफाश पॉवर टेक इंजीनियर्स कंपनी विद्युत विभाग को लगा रहा करोड़ों का चूना मिली भगत से चल रहा जिले में गोरखधंधा?


दैनिक सरोकार की मीडिया द्वारा एक बहुत बड़े घोटाले का पर्दाफाश
पॉवर टेक इंजीनियर्स कंपनी विद्युत विभाग को लगा रहा करोड़ों का चूना
मिली भगत से चल रहा जिले में गोरखधंधा?
ललितपुर। यदि आपका मीटर भाग रहा है? अधिक रीडिंग दे रहा है? बिजली के ज्यादा बिल से आप परेशान हैं? इसमें कटौती चाहते हैं? वो भी बिना किसी झंझट के, तो परेशान मत हो। आपके जनपद में आ चुके हैं मीटर से छेड़खानी करने वाले। देखते ही देखते जहां आपका मीटर उचित यूनिट निकाल रहा था वहीं मीटर में छेड़खानी के बाद कछुएं की चाल से चलने लगेगा। आप हैरान न हो, यह कोई आम आदमी नहीं है। इसका दावा है यदि कोई भी विद्युत विभाग का अधिकारी मीटर में हुई इस छेड़खानी को पकड़ लेगा तो जितना पैसा मैंने आपसे लिया है उससे दुगना वापस कर देगा। वैसे अब आप लोगों के मन में जिज्ञासा जरूर उत्पन्न हो रही होगी कि यह कौन है? और कितना पैसा लेता है? मीटर को स्लो करने का। तो हम आपको बता दे यह कोई और नहीं बल्कि जो पॉवर टेक इंजीनिर्यस जिसने जनपद में लगभर 2300 से अधिक मीटर लगाए हैं उसी कंपनी का एक कर्मचारी है। जो मात्र 3000 से 5000 रुपए लेकर मीटर में कुछ ऐसा करता है कि मीटर स्लो रीडिंग बताने लगता है। और किसी को पता भी नहीं चलता। जब मीटर की रीडिंग लेने के लिए विद्युत विभाग के कर्मचारी आते हैं तो वह मीटर में दर्ज उक्त कम रीडिंग का बिल बनाकर उपभोक्ता को दे देते हैं। जिससे उक्त कर्मचारी को दिए गए रुपए उपभोक्ता को नहीं अखरते हैं। क्योंकि जहां पहले उसका बिजली का बिल 1000 से 1500 रुपए के आस-पास आता था अब वह 400 से 500 आने लग जाता है। हैं न फायदे का सौदा। 4000 रुपए दीजिए और आप भी करवा सकते है अपनी मीटर को स्लो। तो देर किस बात की। अभी कॉल करें, मीटर लगाने वाले को।

मैं आपसे मजाक नहीं कर रहा हूं। हमारे प्रधान संपादक और संपादक महोदय द्वारा स्टिंग ऑपरेशन कर एक बहुत बड़े घपले का पर्दाफाश किया है। इसमें विद्युत विभाग को करोड़ों रुपए का चुना लगाने पॉवर टेक इंजीनिर्यस कपंनी में कार्यरत रॉबिन पाण्डेय उर्फ गोविंद पाण्डेय निवासी मेरठ, कार्यरत कर्मचारी ललितपुर की वीडियों बनाकर खुलासा किया है। जिसमें वह प्रधान संपादक से मीटर में छेड़खानी करवाने के एवज में 5000 रुपए की मांग कर रहा है। और यह भी दावा कर रहा है कि कोई भी अधिकारी इस मीटर में हुई छोड़खानी को पकड़ेगा तो दुगना वापस करूंगा। मैं ही पूरे जिले में मीटर लगाने का काम कर रहा हूं और जहां भी चैकिंग होती है, अधिकारियों के साथ ही रहता हूं। फिर भी वह लोग मेरी इस कारगुजारी को पकड़ नहीं सकते। और मैं आपको बता दूं कि ललितपुर मैं मैंने अभी तक जितने भी मीटर लगाए है उनमें से लगभग 80 प्रतिशत स्लो रीडिंग देने वाले मीटर लगाए हैं। यह काम मैंने उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में भी किया है। इससे मुझे प्रति मीटर 4000 से 5000 रुपए मिल जाता है और उपभोक्ता को प्रति माह बिजली का बिल कम। 
 
विद्युत विभाग को अभी तक बिलिंग नहीं होने के कारण पूर्व व वर्तमान संयोजनधारी उपभोक्ताओं से प्रति माह लगभग 45 लाख रुपए का नुकसान सहना पड़ता था। बिना मीटर के चलते बिलिंग एक या दो माह से नहीं, बल्कि साल दो साल से इसी प्रकार बाधित चल रही है। इसके चलते विद्युत विभाग को एक वर्ष में करोड़ों का घाटा हो चुका है। और हो रहा है। इस घाटे में इजाफा जिले में मीटर लगाने वाली पॉवर टेक इंजीनियर्स कंपनी ने आग में घी डालकर कर दिया है। यानि अब विद्युत विभाग को लाखों का नहीं, करोड़ों का नुकसान सहना पड़ेगा। अगर आंकड़ों का विश्लेषण किया जाए तो पॉवर टेक ने जनपद में लगभग 2300 से अधिक मीटर लगाए हैं उनमें से लगभग 70 प्रतिशत मीटर में छेड़खानी की गई है। इसके हिसाब से 1600 से अधिक मीटर में छेड़खानी की गई है। जहां एक घर से रिडिंग के बाद 1000 से 1500 रुपए आता था वहीं वह घटकर 500 से 600 रुपए प्रति मीटर हो जाता है। इससे प्रति घर से लगभग 700 से लेकर 900 रुपए का घटा विद्युत विभाग को सहन करना पड़ता है। यानि प्रति माह लगभग 11 लाख का और एक वर्ष में 13524000 रुपए का चुना पॉवर टेक इंजीरियर्स के कर्मचारी द्वारा विद्युत विभाग का लगाया जा रहा है। और यह सब विद्युत विभाग की नाक के नीचे ही मीटर लगाने वाले कर्मचारी कर रहे हैं। जनपद में इस गोरखधंधा का काम बिना किसी उच्च अधिकारी की मिलीभगत के शायद ही संभव हो सकता है। तभी तो वह बिना किसी डर के अन्य जिलों की भांति यहां भी मीटर में छेड़खानी करके विद्युत विभाग को करोड़ों रुपए का चुना लगाने का काम कर रहा है। यह तो ताजुब की बात है कि अभी तक उसने जितने भी मीटरों में छेड़खानी करके स्लो किया है उनमें से कोई भी पकड़ा क्यों नहीं गया? वैसे एक सवालिया निशान तो विद्युत विभाग में कार्यरत जेईयों व एईयों पर भी लगता है जो इंजीनीयरिंग की डिग्री लेकर जेई व एई के पद पर तैनात होने के बावजूद भी मीटर में हुई छेड़खानी को पकड़ पाने में असक्षम साबित होते हैं। वहीं चंद क्लास पास मीटर लगाने वाले मास्टर माइड ने जेई व एई की डिग्रियों को कहीं पीछे छोड़ दिया है। क्या इनकी डिग्रियां भी.....................।

वहीं मीटर में छेड़खानी के संदर्भ में अजय कुमार सविता सहायक अभियंता मीटर परीक्षण ललितपुर का कहना है कि हमारे यहां से मीटर में किसी भी प्रकार की कोई छेड़खानी नहीं की जाती है। यदि कोई व्यक्ति मीटर से छेड़खानी करता है या करवाता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाएगी। इसके साथ पॉवर टेक इंजीरियर्स कंपनी में प्रोजेक्ट इंजीनियर्स के पद पर कार्यरत अजीत सिंह से बात करने पर उन्होंने कहा कि हमारी कंपनी ने जिले भर में लगभग 2300 से अधिक मीटर लगाए हैं और अभी भी कुछ मीटर लगने बाकि हैं। और रही बात मीटर में छेड़खानी की तो हमारे यहां कार्यरत कर्मचारी इस तरह की कोई हरकत नहीं कर सकते। यदि कोई इसमें लिप्त पाया जाता है तो उसे कंपनी हटा देगी। वैसे हमारी कंपनी को इससे कोई भी नुकसान नहीं होगा। चाहे जिस तरह की कार्यवाही प्रशासन द्वारा क्यों न की जाए। क्या चढ़ौत्री नीचे से लेकर ऊपर तक चढ़ चुकी है या चढ़ाई जा रही है? इस बात का खुलासा शायद इस खबर के प्रकाशित होने के बाद चल जाए कि कहां-कहां उक्त पॉवर टेक इंजीनियर्स कर्मचारी ने मीटर में छेड़खानी की है और कौन-कौन अधिकारी उसके इस गोरखधंधे में शामिल हैं?