मत लड़ों आपस में....धर्म के नाम पर
हिंदू
मसलमान भाईचारा का प्रतीक......अपने अपने धर्मों को मानने वाले...और एक दूसरे के
धर्मों में आस्था रखने वाले....पर आज न जाने क्यों एक दूसरे के खून के प्यासे
नजर आते हैं.....अगर आजादी के पहले की बात करें तो हिंदू मसलमान आपस में प्रेम
सौहार्द के रूप में रहते थे....जबकि अंग्रेजों को उनका आपसी प्रेम कादपि गवारा न
था.....इसलिए उन्होंने फूट डालों और शासन करों की पद्धति को अपनाया....उसमें वो
बहुत हद तक सफल भी हुए....जिसका नतीजा हमें आजाद होते ही भारत से जुदा हुए पाकिस्तान
के रूप में देख सकते हैं....जिन मुसलमान भाईयों को पाकिस्तान जाना
था वो चले गए, और जिनको भारत में रहना था वो यही बस गए....... क्योंकि उन्हें
हिंदुस्तान की धरती से और हिंदूओं से प्रेम था.... पर यह हमारे धर्म के दलाल
ठेकेदारों को, भ्रष्ट नेताओं को भी गवारा नहीं हुए...और उन्होंने दोनों धर्म
के लोगों को धर्म के नाम पर आपस में लड़ना शुरू कर दिया....और दोनों धर्म के लोग
भी कितने बड़े उल्लू हैं जो उनकी बातों में आसानी से आ जाते हैं और मरने-मारने पर
उतारू हो जाते हैं....मैंने भारत में बहुत सी जगहों पर मंदिर और मस्जिदों को एक
साथ एक ही जमीन पर बने हुए देखा है...आप सब लोगों ने भी देखा होगा....कभी वो तो
आपस में नहीं लड़ते....न कभी आपने सुना की राम की लड़ाई अल्लाह से हुई....या किसी
देवी-देवताओं की लड़ाई खुदा से हुई.....वो अपनी जगह विराजमान रहते हैं और अल्लाह
अपनी समाधी में लीन, बिना किसी मतभेद के......पर धर्म के ठेकेदार और नेता बस उनके
नामों पर दोनों धर्मों के लोगों को लड़ते रहते हैं......यदि अाप लोग अपने-अपने
धर्मों में आस्था रखते हैं अपने खुदा और ईश्वर में विस्वास रखते हैं तो कुछ
सीखिए उनसे....कि वो आपस में क्यों कभी नहीं लड़ते.... अगर आप लोग सोच सके तो
सोचिए कि कभी मौलवी और बाबा आपसे में क्यों नहीं लड़ते....वो तो धर्म के ठेकेदार
है उन्हें तो और पहले लड़ना चाहिए...वहीं कभी ओबेसी और योगीनाथ को अापस में लड़ते
देखा है....नहीं ना.....और न ही कभी देख सकते हो क्योंकि वो सिर्फ आप लोगों को
आपस में लड़कर अपनी-अपनी राजनैतिक रोटियां सेकते हैं....और शादी पार्टी महफिलों
में आपस में गले मिलते हैं साथ बैठकर याराना दिखाते हैं.. वो लोग तो बाहुबलि है
चाहे तो ओबेसी योगीनाथ पर या योगीनाथ ओबेसी पर धर्म के नाम पर हमला बोल सकते हैं
पर नहीं.....वो तो बस आग लगाकर दूर खड़े होकर तमाश देखते हैं और हम लोग आपस में
मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं.....क्यों आपस में लड़कर देश को भीतर से खोंखला
बनने में लग हो....यदि बाजूओं में बहुत ताकत है तो अंदर मरने-मारने से अच्छा है
देश के लिए मरो और मारो.....जाओ...देश की सीमाओं पर......तब नानी मरने लगती
है.....नहीं साहब हम तो अपने ही भाईयों को खून बहाएंगे.....देश के लिए नहीं मरेंगे
हम तो धर्म के लिए ही मरेंगे....जागों अभी तो जाग जाओं....सभी कुछ है तुम्हारे
पास, विवेक, बुद्धि, फिर भी इन ढोंगियों की बातों में क्यों आ जाते हो.....इस धर्मवाद
के पाखंड से बाहर निकलो और इंसान बनों..इंसानों की, बुजुर्गो, बच्चों और असाहय लोगों की मदद
करों...ईश्वर अल्लाह आपको स्वत: मिल जाएगा।
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