कचरे में पलती जिंदगियां......... और
गांधी का स्वच्छ भारत
स्वच्छ भारत की संकल्पना हमारे
प्रधानमंत्री जी ने की, पर गंदगी तो कहीं से न तो साफ हुई न तो
साफ होती दिखी। गंदगी जस की तस बनी ही रही। हां यह और बात है कि छायाचित्रों में
आने के लिए इन कर्मचारियों,
नेताओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी। वैसे
सफाइ्र करते हुए इनकी तस्वीरे बड़ी उम्दा किस्म की आई जैसे मानों सच में सफाई कर
रहे हो। क्यों उम्दा नहीं आती, बकायदा
कैमरा मैन बुलाए गए थे तस्वीरों को लेने के लिए............ ताकि उनका मीडिया में
महीमा मंडन करवाया जा सके। और उनकी यह साजिश मीडिया ने कामयाब भी
की..............छाप दी, चला दी.....मीडिया में....... झांडू के
साथ उनकी तस्वीरें ताकि लगे की वो वास्तव में इस देश से गंदगी दूर करना चाहते हो।
गंदगी साफ करनी है तो अपने घर के बाहर साफ कीजिए जहां हर रोज आप अपने घर को साफ
करके कचड़ा फेंक देते हैं। गंदगी साफ करनी है तो अपने दिल को साफ करें जिसमें न
जाने किस-किस प्रकार के कचड़े कई वर्षों से पड़े-पड़े सड़ रहे हैं। जिनमें पता नहीं कब
से बू आ रही है। गंदगी साफ करनी है तो देश से अमीरी गरीबी का भेद मिटा कर करें जो
सबसे बड़ी गंदगी को जन्म देती है। गंदगी साफ करनी है तो भूख को मिटा कर करें जो हर
एक जुर्म का जन्म देती है।
अगर वास्तव में गांधी के सपना को मोदी
पूरा करने चाहते थे तो उन मासूम बच्चों के बारे में भी जरा सी फिकर कर लेते जो
कचरे में अपनी जिंदगी गुजार देते हैं, एक
निवाले के खातिर। जरा सा आप लोग भी सोचिए.......अगर खुद से समय मिल जाए
तो.......सिर्फ जरा सा.......... चंद
तस्वीरे आप साझा कर रहा हूं। यह तस्वीरे 2 अक्टूबर
के दिन सेवाग्राम रेलवे स्टेशन पर रेलवे कर्मचारियों एवं स्थाई नेता द्वारा सफाई का दिखावा करते तथा उसी दिन ट्रेन में बच्चों द्वारा मांगी जा रही भींख की कुछ तस्वीरें खींची थी। जिससे अंदाजा लगा सकते हैं कि सफाई कहां होनी
चाहिए थी......?????????
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