सरोकार की मीडिया

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Monday, January 28, 2013

जनसंचार माध्यम और युवा वर्ग


जनसंचार माध्यम और युवा वर्ग
जनसंचार का अर्थ जनता के बीच विभिन्न माध्यमों से किया जाने वाला संचार है। जनसंचार का वर्तमान समय इसके परिपक्व समाज की मनोदशा, विचार, संस्कृति आम जीवन दशाओं को नियंत्रित व निदेशित कर रहा है। इसका प्रवाह अति व्यापक एवं असीमित है। जनसंचार माध्यमों द्वारा समाज में प्रत्येक व्यक्ति को अधिक से अधिक अभिव्यक्ति का अवसर प्राप्त हो रहा है। स्वतंत्र जनसंचार माध्यम लोकतंत्र की आधारशिला है। अर्थात जिस देश में जनसंचार के माध्यम स्वतंत्र नहीं है वहां एक स्वस्थ लोकतंत्र का निर्माण होना संभव नहीं है। जनसंचार माध्यमों का जाल इतना व्यापक है कि इसके बिना एक सभ्य समाज की कल्पना नहीं की जा सकती।
हालांकि जनसंचार माध्यमों में हाल ही कुछ वर्षों में एक क्रांति का उदय हुआ है जिसे हम संचार क्रांति कहते हैं। जनमाध्यमों में क्रांति के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी क्रांति आई है। जिसने मॉर्सल मैक्लुहान के वक्तव्य को पूर्णतः सत्य कर दिया कि संपूर्ण दुनिया एक गांव में तब्दील हो जाएगी। मनुष्‍य के बोलने का अंदाज बदल जाएगा और क्रिया-कलाप भी। ऐसा ही हुआ है, आज युवा रेडियों सुन रहा है, टेलीविजन देख रहा है, मोबाइल से बात कर रहा है और अंगुलियों से कंम्प्यूटर चला रहा है। कहने का मतलब यह है कि युवा एक साथ कई तकनीकों से संचार कर रहा है। संचार का विस्तृत रूप जनसंचार है। जनसंचार माध्यमों का युवा वर्ग पर पड़ने वाले प्रभावों के संदर्भ में बाते करें तो हर एक विशय की तरह इसके भी दो रूप दिखाई पड़ते हैं- सकारात्मक और नकारात्मक।
अब मुख्य प्रश्‍न यह उठता है कि आज की युवा पीढ़ी जनसंचार माध्यमों के किस पहलू पर अधिक अग्रसरित हो रही है। सकारात्मक पहलू पर या नकारात्मक पहलू पर। यह बात सही है कि जनसंचार माध्यमों के द्वारा आज का युवा वर्ग अपनी आवश्‍यकताओं की पूर्ति कर रहा है। युवाओं पर मीडिया का प्रभाव मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक कहें तो देश की तकरीबन 58 फीसदी आबादी युवाओं की है। ये वो वर्ग है जो सबसे ज्यादा सपने देखता है और उन सपनों को पूरा करने के लिए जी-जान लगाता है। मीडिया इन युवाओं को सपने दिखाने से लेकर इन्हें निखारने तक में अहम भूमिका निभाने का काम करता है। अखबार-पत्र-पत्रिकाएं जहां युवाओं को जानकारी मुहैया कराने का गुरू दायित्व निभा रहे हैं, वहीं टेलीविजन-रेडियो-सिनेमा उन्हें मनोरंजन के साथ आधुनिक जीवन जीने का सलीका सिखा रहे हैं। लेकिन युवाओं पर सबसे ज्यादा और अहम असर हो रहा है न्यू- मीडिया का। जी हां, इंटरनेट से लेकर तीसरी पीढ़ी (थ्री-जी) मोबाइल तक का असर यूं है कि देश-दुनिया की सरहदों का मतलब इन युवाओं के लिए खत्म हो गया है। इनके सपनों की उड़ान को तकनीक ने मानों पंख लगा दिए हैं। ब्लॉगिंग के जरिए जहां ये युवा अपनी समझ-ज्ञान-पिपासा-जिज्ञासा-कौतूहल-भड़ास निकालने का काम कर रहे हैं। वहीं सोशल मीडिया साइट्स के जरिए दुनिया भर में अपनी समान मानसिकता वालों लोगों को जोड़ कर सामाजिक सरोकार-दायित्व को पूरी तन्मयता से पूरी कर रहे हैं। हाल में अरब देशों में आई क्रांति इसका सबसे तरोताजा उदाहरण है। इन आंदोलनों के जरिए युवाओं ने सामाजिक बदलाव में अपनी भूमिका का लोहा मनवाया तो युवाओं के जरिए मीडिया का भी दम पूरी दुनिया ने देखा। युवाओं पर इसका अधिक प्रभाव इसलिए पड़ा क्योंकि वे उपभोक्तावादी प्रवृति के होते हैं। वे बिना किसी हिचकिचाहट के किसी भी नई तकनीक का उपभोग करना शुरू कर देते हैं।
 यह कहना गलत नहीं होगा कि दूसरी ओर युवा वर्ग जनसंचार की चमक के माया जाल में फंसता जा रहा है। इस आलोच्य में कहा जाए तो युवाओं में तेजी से पनप रहे मनोविकारों, दिशाहीनता और कत्र्तव्यविमुखता को संचार माध्यमों के दुष्‍रिणामों से जोड़कर देखा जा सकता है। पश्चिम का अंधा अनुसरण करने की प्रवत्ति उन्हें आधुनिकता का पर्याय लगने लगी है। इनसे युवाओं की पूरी जीवन-शैली प्रभावित दिखलाई पड़ रही है जिससे रहन-सहन, खान-पान, वेषभूषा और बोलचाल सभी समग्र रूप से शामिल है। मद्यपान और धूम्रपान उन्हें एक फैशन का ढंग लगने लगा है। नैतिक मूल्यों के हनन में ये कारण मुख्य रूप से उत्तरदायी है। आपसी रिश्‍ते-नातों में बढ़ती दूरियां और परिवारों में बिखराव की स्थिति इसके दुखदायी परिणाम हैं।
इसी क्रम में बात करें तो अति आधुनिक संचार माध्यम जिसे हम न्यू मीडिया के नाम से जानते हैं वो भी जहां एक ओर युवाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है, वहीं दूसरी ओर ये एक अभिशाप के रूप में युवाओं की दिशाहीनता को बढ़ा रहा है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो 30 जून, 2012 तक भारत में फेसबुक व सोशल साइटों के उपयोग करने वालों की संख्या लगभग 5.9 करोड़ है जो 2010 की तुलना में 84 प्रतिशत अधिक है। इन 5.9 करोड़ लोगों में लगभग 4.7 करोड़ युवा वर्ग से सरोकार रखते हैं। अगर आंकड़ों को देखें तो भारत दुनिया का चैथा सबसे अधिक फेसबुक का इस्तेमाल करने वाला देश बन गया है। इसमें दो राय नहीं कि डिजिटल क्रांति ने युवाओं की निजता को प्रभावित किया है और युवा अपनी सोच से अपने समाज को प्रभावित कर रहे हैं।
वहीं इंडिया बिजनेस न्यूज एंड रिसर्च सर्विसेज द्वारा 1200 लोगों पर किए गए सर्वेक्षण जिनमें 18-35 साल की उम्र के लोगों को शामिल किया गया था। इसमें करीब 76 फीसदी युवाओं ने माना कि सोशल मीडिया उनको दुनिया में परिवर्तन लाने के लिए समर्थ बना रही है। उनका मानना है कि महिलाओं के हित तथा भ्रष्‍टाचार विरोधी आंदोलन में ये सूचना का एक महत्वपूर्ण स्रोत साबित हुई है। करीब 24 फीसदी युवाओं ने अपनी सूचना का स्रोत सोशल मीडिया को बताया। करीब 70 फीसद युवाओं ने ये भी माना कि किसी समूह विशेष से संबद्ध हो जाने भर से जमीनी हकीकत नहीं बदल जाएगी, बल्कि इसके लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
वास्तव में जनसंचार माध्यमों ने ग्लोबल विलेज की अवधारणा को जन्म दिया है। जनसंचार के अंतर्गत आने वाले माध्यम है पत्र-पत्रिकाए, टीवी, रेडियों, मोबाइल, इंटरनेट। युवा वर्ग पर इन सभी जनसंचार माध्यमों ने अपना व्यापक प्रभाव छोड़ा है। इनका प्रभाव इतना शक्तिशाली है की आज के युवा इन जनसंचार माध्यमों के बिना अपने दिन की शुरुआत ही नहीं कर सकते। जैसे पत्र-पत्रिकाओं को खरीदने से ज्यादा कामुकता तथा अश्लील साहित्य, पत्र-पत्रिकाएं खरीदता व पढ़ता है और अपने चरित्र का नैतिक पतन कर अपने भविष्य को अंधकार में डालता है। इसी प्रकार टीवी जैसे सबसे प्रभावशाली माध्यम का भी युवाओं पर अच्छा और बुरा दोनों तरह का प्रभाव पड़ा है टीवी श्रव्य के साथ ही दृश्य माध्यम है जिसके कारण युवा वर्ग किसी भी विषय को भली-भांती समझ सकता है भले ही वह अधिक शिक्षित न हो परंतु युवा वर्ग इस माध्यम का भी दुरूपयोग कर नैतिक पतन करने वाले कार्यकर्मों को ही अधिक देखते हैं क्योंकि उनको तत्कालिक आनंद की प्राप्ति होती है और वे दूरगामी विनाश को नहीं समझ पाते जिससे उनका भविष्य बिगड़ता है।
हालांकि नई विद्या मोबाइल और इंटरनेट अत्याधुनिक तकनीकों के उदाहरण है। जिनका निसंकोच उपयोग अधिकांश युवाओं द्वारा किया जा रहा है। मोबाइल यह एक ऐसा माध्यम है जिससे दूर बैठे व्यक्ति के साथ बात की जा सकती है तथा अपने हसीन पलों को चलचित्रों के रूप में कैद किया जा सकता है। यह तो इसका सदुपयोग है परंतु आज युवा इस माध्यम का गलत प्रयोग कर एमएमएस जैसे दुर्व्यसनों में फस जाते हैं। इसी प्रकार इंटरनेट जनसंचार माध्यमों में सबसे प्रभावशाली है जिसने दूरियों को कम कर दिया है। इसका अधिकतर उपभोग युवा वर्ग द्वारा किया जाता है जहां इसके द्वारा युवाओं को सभी जानकारियां उपलब्ध होती हैं। ये ज्ञानवर्धन में तो सहायक है परंतु आज वर्तमान समय में युवा द्वारा इसका दुरूपयोग अधिक होता है। हालांकि संस्कारी व्यक्तियों द्वारा इस मीडिया का सही उपयोग किया जा रहा है वहीं लगभग 100 में से 85 प्रतिशत लोग पोर्न साइटों का प्रयोग करते हैं और हैंरतअंगेंज करने वाली बात है कि सर्वाधिक विजिटर भी इन पोर्न साइटों के ही हैं। इन अश्लील साइटों पर जाकर वे अपनी उत्कंठा को शांत करते हैं। परंतु वे यह नहीं जानते कि इससे उनका और समाज दोनों का नैतिक पतन होता है। साथ ही इंटरनेट के अधिक उपयोग ने साइबर क्राइम जैसे अपराधों को जन्म देकर युवाओं में अपराध करने की नई विद्या उत्पन्न कर दी है। जिससे आज का युवा वर्ग मानसिक, शारीरिक और आर्थिक पतन की ओर अग्रसरित हो रहा है। जो हमारे समाज के लिए चिंता का विषय है।
अगर निष्‍कर्ष की बात करें तो सभी जनसंचार माध्यमों ने जहां ग्लोबल विलेज, शिक्षा, मनोरंजन और जनमत निर्माण, समाज को गतिशील बनाने तथा सूचना का बाजार बनाने में सहयोग किया वही अश्लीलता, हिंसा, मनोविकार, उपभोकतावादी परवर्ती तथा समाज को नैतिक और सांस्कृतिक पतन की ओर अग्रसर किया है। अब हम युवाओं को स्वयं ही इसका चयन करना होगा कि वो किस ओर जाना चाहते हैं। बुलंदी पर या पतन की ओर?

Thursday, January 3, 2013

चौथा स्तंभ भी जिम्मेवार है महिलाओं पर हो रहे दुष्कर्म के लिए


चौथा स्तंभ भी जिम्मेवार है महिलाओं पर हो रहे दुष्कर्म के लिए


महिलाओं के संदर्भ में मीडिया की भूमिका की बात करें तो यह कभी संतोषजनक नहीं रही है, मीडिया ने भी पुरूषवादी सोच को आत्मसात करते हुए सदा ही उसकी उपेक्षा की है। इस उपेक्षा के साथ वो इसका इस्ते माल अपने प्रोडेक्ट के प्रचार व अपने विज्ञाप्ति उद्योगपतियों द्वारा निर्मित वस्तुओं के ग्राहक बनाने में करने लगा है। ताकि बाजार में वस्तुओं का उपभोग अधिक हो सके और इस उपभोग से मिलने वाले लाभ का कुछ अंश इन उद्योगपतियों द्वारा चढ़ौत्री के रूप में चैनल को मिले जिससे चैनल अपना गुजारा कर सकें, नहीं तो किसी सरकारी नेता से खबर के बदले में नोट को गिना सके। जैसा कि आज हो रहा है। चाहे वो खबर किसी नेता से संबंधित हो या किसी बाहुबली से, यदि जरा भी गलती नजर आती है तो पहुंच जाते है चंदा मांगने, और यह लोग भी अपने कारनामों को उजागर न करने की हड्डी डाल ही देते हैं। जिस हड्डी को चूस-चूस कर मीडिया दिनों दिन मोटा होता जा रहा है नेताओं की तरह। क्यों कि नेता जनता का खून चूसते हैं और यह बची हुई हड्डिया। बीच में फंस जाती हैं महिलाएं, जो सदा पिसने के लिए ही बनी है। क्योंकि सवर्ण समाज ने उसे कभी पनपने नहीं दिया, हमेशा उसका ति्रस्कार किया है, कभी मनु ने तो कभी सूरदास ने तो कभी भगवान राम ने। उन्हीं के पद चिहनों पर चलने वाली आज की जनता जिसने स्त्रियों को बिस्तर पर या पैरों में पसंद किया है। परंतु वो यह भूल जाते हैं कि उसको जीवन देने वाली भी एक स्त्री ही है। जिसके प्यार की छांव में वो पला बढ़ा। और यह भूल गया कि स्त्री  का सम्मा न भी करना चाहिए।
इसमें गलती किसकी है इस पर विचार करना चाहिए कि जो पुरूष मां के आंचल में पला बढ़ा, पिता के संरक्षण व बहनों का प्या र मिला तथा गुरूजनों के ज्ञान से बुद्धिमान बना, वह पुरूष महिलाओं के प्रति इतना हैवान कैसे बन जाता है। क्याक मां के पालन-पोषण, पिता के संरक्षण व बहन के प्यारर तथा गुरूजनों द्वारा दिए गए ज्ञान में कहीं कोई चूक तो नहीं रह जाती, जिस कारण पुरूष में कभी-कभी हैवानियत का जानवर भाव उत्पन्न होने लगता है और यह भाव पुरूष में अच्छे और बुरे दोनों में फर्क करना तक भूला देता है। और वह महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बनाने लगता है। कभी पैदा होते ही, कभी दहेज से, कभी खरीद-फरोख्त  करके, कभी घर में ही हिंसा करके तो कभी बलात्कार करके, चारों तरफ महिलाओं पर अत्या्चारों की झड़ी लगी हुई है। जो पुलिस और कानून व्यवस्था के बावजूद थमने का नाम नहीं ले रही है, यह तो किसी जिंद की भांति दिन-प्रतिदिन लगातर बढ़ती ही जा रही है। चाहे नाबालिग हो, किशोरी हो या फिर वृद्धा हो कोई इस अत्याचार से अछूता नहीं है। हो भी कैसे सकता है जब लोकतंत्र के चारों स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा प्रचार-प्रसार के माध्यम यानि मीडिया में पुरूषवादी सोच विराजमान हो। और यह सोच महिलाओं को हमेशा से दोयाम दर्जे पर लाकर खड़ा कर देता है, ताकि यह पुरूषों के समकक्ष कंधे-से-कंधा मिलाकर आगे न बढ़ सकें।
हालांकि इन सब अत्याचारों के बावजूद महिलाओं ने पुरूषों को कहीं पीछे छोड़ दिया है। पर सवाल अब भी वही रह जाता है कि हम पर अत्याचार कब तक। कब तक हमें असुरक्षा का भाव और शोषण को बर्दास्त करना पड़ेगा। क्या कोई रहनुमा इस कलयुग में राक्षसों से हम सब को मुक्ति दिलाएंगा या हमें इन बहसी पुरूषों के हाथों अकाल मौत का ग्रास हमेशा बनना पड़ेगा। क्योंकि जिस-जिस से हमने उम्मीद की वो ही हमारी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। तभी तो तीनों स्तंभों की भांति चौथा स्तंभ भी महिलाओं के पक्ष में बहुत कम खड़ा नजर आता है। वो तो एक तरफ महिलाओं को वस्तु बनाकर बाजार के समक्ष परोसने का काम करता है तो दूसरी तरफ खबर के दृष्टिकोण से, हां सनसनी खबर के दृष्टिकोण से हमेशा परोसता रहता है। वह महिलाओं की छवि को अश्लील बनाकर इस तरह परोसता है कि पुरूषवादी मस्तिष्क प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। इस अश्लीलता की बमबारी से पुरूष हैवान बनने लगता है। क्योंकि कहीं-न-कहीं यह कामुक अश्लीलता उसके दिलों-दिमाग में इस कदर घर जाती है कि वो महिलाओं को अकेली पाने की फिराक में लगा रहता है ताकि अपनी हवस मिटा सके।
इस आलोच्य में कहें तो अश्लीलता का सम्राज्य आज इस कदर बढ़ता जा रहा है जिससे नाबालिग बच्चों के दिमाग भी अछूते नहीं रहे हैं वह भी आधुनिक मीडिया यानि न्यू मीडिया द्वारा अश्लील तस्वीरों व फिल्मों को लगातार देख रहें हैं और उसी तरह के कृत्यों को करने की दिन-रात फिराक में बने रहते हैं। यह आधुनिक मीडिया द्वारा उपजी एक फसल है जिसको आज की युवा पीढ़ी काट रही है जिसका खामयाजा महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। यह खामयाजा वो कब तक भुगतती रहेगी, क्या कभी वो इस स्वतंत्र समाज की खुली हवा में सांस ले सकेगी। यही प्रश्न वो लगातार मीडिया से कर रही है कि कब तक वो इनकी छवि को वस्तु बनाकर अपना उल्लू सीधा करता रहेगा और समाज के दरिंदों द्वारा उनका शोषण करवाता रहेगा। क्योंकि महिलाओं के साथ हो रहे शोषण में तीनों स्तंभों के साथ-साथ यह चौथा स्तंभ भी बराबर का जिम्मेवार है। अगर मीडिया को अपने ऊपर उठ रहे तमाम प्रश्नवाचक चिह्नों से मुक्ति चाहिए तो उसे अश्लीलता का सहारा छोड़कर महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई में सहयोग देना होगा तभी पुरूष समाज द्वारा महिलाओं पर किए जा रहे अत्याचारों से महिलाओं को मुक्ति मिल सकेगी और वो खुली हवा में आजाद पंक्षी की भांति उड़ सकेगी।
सभी गुरूजनों व मित्रों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं