सरोकार की मीडिया

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Tuesday, October 31, 2017

समान अधिकारों की बात आखिर कैसे.......

समान अधिकारों की बात आखिर कैसे.......
आज महिलाएं अपने अधिकारों की बात करती नजर आती हैं क्‍योंकि सदियों से पुरूष समाज महिलाओं का शोषण करता आ रहा है। जिसके परिप्रेक्ष्‍य में कहा जाए तो पश्चिमी महिलाएं कुछ हद तक अपने अधिकारों के प्रति सजग व जगरूक हुई हैं और वह लगातार अपने अधिकारों की मांग पर पुरजोर वकालत करती रहती हैं। यह महिलाएं पुरूषवादी चंगुल से अपने आपको काफी हद तक आजाद करा पाने में सक्षम हुई हैं पर भारतीय महिलाएं सिर्फ वकालत करती दिखाई प्रतीत होती हैं। वह आज भी पुरूषवादी, पितृसत्‍तात्‍मक के मकड़जाल में इस तक फंसी पड़ी हैं जिससे निकालना तो चाहती है पर निकल नहीं पा रही है क्‍योंकि वह आज भी अपने आप को पुरूषों पर निर्भर मानती है कि बिना पुरूष के उसका अस्तित्‍व कुछ भी नहीं है। वह पूर्णत: पुरूषों पर आश्रित हो चुकी हैं। इसी कारण पुरूष भी उसे कमतर समझ उसका शोषण करता रहता है। क्‍योंकि आज भी भारतीय महिलाओं की जो छवि बनी हुई है वह कोमल और कमजोर की बनी हुई है। वैसे इसमें कोई दोराह की बात नहीं है कि भारतीय महिलाओं ने बहुत हद तक अपनी इस छवि को साफ कर एक आत्‍मनिर्भर, परिपक्‍य, शासक्‍त छवि के रूप में समाज के सामने खुद को पेश किया है। परंतु पूर्णत: नहीं कर पाई हैं। इसके पीछे महिलाओं का पुरूष सोच से चलना प्रमुख कारण है।
वैसे इस संदर्भ में आगे बात कि जाए तो आज देखने को मिल जाता है कि महिलाओं को काफी अधिकारी प्राप्‍त हैं जिनका वह बखूब उपयोग कर रही है ताकि उनका शोषण न किया जा सके। परंतु महिलाएं आज जिस समानता की वकालत करती हैं क्‍या वह स्‍वयं सामान अधिकार चाहती हैं या फिर यह सब एक नाटक की कडि़यां मात्र है जिसमें वह पुरूष के समकक्ष अधिकार तो चाहती है पर सामान रूप से नहीं, क्‍योंकि आज जो देखने को मिलता है कि महिलाओं को हर जगह पुरूषों के वनस्‍पत अधिक दर्जा दिया जाता है, उदाहरणस्‍वरूप ले तो बस में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें, ट्रेनों में आरक्षित सीटें, टिकट बिना लाइन में लगे मिल जाना, इस तरह के और भी उदाहरण है जिनमें महिलाओं को अधिक दर्जा दिया जाता है क्‍योंकि सरकार भी व महिलाएं स्‍वयं भी मानती हैं कि वह आज भी कमजोर है। वहीं पश्चिमी महिलाएं इस तरह की मांग नहीं करती है वह पुरूषों के समान लाइन में लगती हैं और अपना सामान स्‍वयं उठाती हैं। परंतु भारतीय महिलाएं नहीं।
जब समान अधिकारों की बात हो रही है तो फिर आरक्षित चीजें आखिरकार क्‍यों.....खत्‍म कर देनी चाहिए....फिर समान अधिकारों की बात करें तो जायज लगे कि आपका पुरूषवर्ग शोषण करता है और हमें अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं। पहले स्‍वयं ही इस मकड़जाल से आजाद होने की कोशिश तो करें.... तभी आप आजाद हो पाएंगें नहीं तो दिल बहलाने के लिए गालिबन ख्‍याल अच्‍छा है।


Friday, October 27, 2017

कहां गए रामदेव के गुरू...शंकर देव

कहां गए रामदेव के गुरू...शंकर देव


आज बाबा रामदेव और उनके प्रमुख चेला जिस असीम संपत्ति पर मालिका हक जमा कर बैठे हैं वो वास्‍तव में बाबा रामदेव के गुरू शंकर देव की संपत्ति है जिसको शंकर देव ने सन् 1992 में दिव्‍य योग ट्रस्‍ट के नाम से स्‍थापित किया था जिसे बाद में 1995 को दिव्‍य योग ट्रस्‍ट को दिव्‍य योग मंदिर में तब्‍दील कर दिया गया। इस मंदिर के प्रमुख स्‍वामी शंकर देव ही थे और उनके सहायोगियों के रूप में रामदेव, कर्मवीर, बालकृष्‍ण, वियज चैतन्‍य और साध्‍वी कमला थेा जिससे पतंजलि का शिलायांस हुआ था।  14 जुलाई 2007 को शंकर देव सुबह की सैर पर निकले थे, जिसके बाद से वह कभी लौटकर नहीं आएं।  गुरू शंकरदेव की जांच सीबीआई को सौंपी गई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल पाया। और कुछ समय बाद फाइल को बंद कर दिया गया।  इस घटना के बाद बाबा रामदेव के ऊपर तरह तरह के आरोप लगाए गए। यहां तक की कई राजनेताओं ने यह भी कहा कि रामदेव इस मामले को दबाने की कोशिश कर रहे हैं और आशंका जताई जाती है कि शंकर देव को उन्हीं के शिष्य रामदेव ने अगवा करवाया है। तमाम आरोपों के बाद भी रामदेव इस बात को लगातार नकारते रहे और कहते रहे कि वह अपने गुरु का बेहद सम्मान करते हैं और ऐसा पाप वह करने की सोच भी नहीं सकते। दरअसल, राम देव का कहना है कि जब शंकर देव जब लापता हुए थे, तो वह विदेश में थे। वैसे इस बात में सच्‍चाई है कि बाबा रामदेव विदेश में थे पर क्‍या यह एक सोची समझी साजिश का रूप नहीं लगता कि रामदेव विदेश में हैं और शंकर देव गायाब हो जाते हैं।

वैसे यह हैरानी की बात है कि पिछले10 साल में रामदेव और उनकी मंडली ने शंकर देव को खोजने की कोई कोशिश नहीं की। जिस शख्‍स ने रामदेव को इतना बड़ा आदमी बनाया कि सरकार तक हिल जाए उसकी खोज खबर लेने के लिए रामदेव ने कभी उत्‍तराखंड पुलिस पर दबाव नहीं बनाया, जबकि दुनिया जानती है कि मुख्‍यमंत्री और अब प्रधानमंत्री रामदेव के कितने करीबी हैं। तब तो सक की सुई सीधा और सीधा रामदेव पर आकर ही घुमती हुई प्रतीत होती है, क्‍योंकि आज भी गुरू शंकर देव का अभी तक कुछ भी अता-पता नहीं है कि उनके साथ आखिर में  हुआ  क्‍या था.....जिसने गायब होते ही राम ने उनकी संपत्ति को हथिया लिया, और जिनका उस संपत्ति पर अब कहीं नाम भी नहीं है....वैसे सरकार किसी की भी हो.... जांच का मुद्दा आज भी बनता है कि आखिर गुरू शंकर देव गए तो गए कहां.... 

Saturday, October 21, 2017

पालिका चुनाव में पत्नियों के दम पर किस्मत आजमाने को तैयार नेता

पालिका चुनाव में पत्नियों के दम पर किस्मत आजमाने को तैयार नेता
नगर पालिका परिषद के चुनाव की आहट होते ही जिस तरह से उन महिलाओं को अपनी निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए जो अभी तक पर्दे में थी उनको पर्दे से बाहर कर होल्डिंग्स, बैनर के जरिए जनता के बीच लांच कर अपने को प्रदर्शित करते हुए नेता जनता की सेवा करने का दम भर रहे हैं।
सरकार ने जिस मकसद से महिलाओं के लिए ललितपुर नगर की सीट महिलाओं के लिए आरक्षित की है मुझे नहीं लगता कि वर्तमान की परिस्थितियों को देखते हुए महिलाओं को ताकत मिलेगी। क्‍योंकि चुनाव की आहट मिलते ही शहर में लगे होडिंग्‍स और बैनर साफ दर्शा रहे हैं कि महिलाओं के साथ उनके पतियों/बेटों की भी तस्‍वीर लगी हुई है यानि उन महिलाओं का अस्तित्‍व अभी तक सिर्फ और सिर्फ घर की चार दीवारी तक ही सीमित था। जो महिला सीट होते ही इन नेताओं ने इन्‍हें भुनाने की कवायदें तेज कर दी। वैसे यह सोचने वाली बात है कि यदि ललितपुर की नगर पालिका परिषद की सीट महिला के लिए आरक्षित नहीं होती तो क्‍या यह महिलाएं होडिंग्‍स और बैनर में अपने पति के साथ दिखाई देती। तो जबाव स्‍वत: ही मिल जाता कि फिर क्‍या जरूरत थी इनकी।
खैर आज ऐसे-ऐसे लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए अपने घर की महिलाओं को चुनाव के लिए प्रदर्शित कराते हुए दिख रहे हैं जिनका समाज में कभी कोई योगदान ही नहीं रहा और ना ही उनका जनता के बीच कभी आगमन ही रहा। वैसे जनता को चाहिए कि ऐसे लोग जब भी उनके पास वोट मांगने के लिए आएं तो उनसे पूछे कि अभी तक उनके द्वारा समाज में कितना योगदान दिया गया या जिन्हें वह चुनाव में ला रहे हैं उनका कितना योगदान अब तक समाज के लिए रहा या फिर नगर पालिका में आने वाले फंड के बन्दरबांट की क्‍या तैयारी पूरी हो चुकी है।
मेरा प्रश्न यह भी है कि जो नेता अपनी-अपनी पत्नियों/माताओं को चुनाव में उतार रहे हैं तो क्‍या नगर पालिका महिलाएं चलाएंगी या फिर उनके पति देव चलाएंगे। वैसे यह बात तो जग जाहिर है कि जब-जब महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित हुई है उनकी सत्‍ता इनके पुत्रों या पतियों के द्वारा ही संचालित की जाती रही है। जैसे प्रधान पति, पर्षाद पति इत्‍यादि। इनमें महिलाओं की भूमिका मात्र एक प्‍यादे के समान होती है जिस खाने में उनके पति चलाएंगे वह वही चलेगी।
आज चुनाव में अपराधी, भूमाफिया, साइकिल चोर, सट्टा बाजारी किंग जैसे लोग भी अपनी किस्मत आजमाने निकले हैं जिन्हें कभी समाज से वास्ता नहीं रहा वह बैनरो में ईमानदार और कर्मठ दिखते हुए पैसे और शराब के दम पर चुनाव जीतना चाह रहे हैं । जनता को ऐसे लोगों से सावधान रहने की आवश्यकता है और बहुत सोच समझ कर वोट करें क्योंकि यह चुनाव आपकी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने से संबंध रखता है।