सरोकार की मीडिया

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Saturday, March 25, 2017

कचड़ा खाती हमारी माताएं

कचड़ा खाती हमारी माताएं

गाय को माता का दर्जा दिया गया है। सिर्फ दर्जा ही दिया गया है (मानने वाले सिर्फ माता मानते हैं) और अधिकांश लोग इसको सिर्फ एक जानवर के रूप में देखते हैं। हां यह बात और है कि सुबह सुबह बहुतरे लोग पुण्‍य कमाने की दृष्टि से गाय को रोटी खिलाते हैं ताकि उनके द्वारा किए गए पाप कुछ कम हो सकें। वैसे गाय को घरों के साथ-साथ चौराहों पर, सड़कों के बीच में बैठे हुए, यहां-वहां कचड़ा में से अपना भोजन तलाशते हुए आसानी से देखा जा सकता है... चाहे गांव हो या शहर.... गांव में गायों की स्थिति बहुत हद तक ठीक है वहीं शहरों में तो आलम यह है कि जब तक गाय दुध देने का काम करती है तब तक उसको घर में बांध कर रखा जाता है जैसे ही उसने दुध देना बंध किया वैसे ही उसको छोड़ दिया जाता है यहां-वहां भटकने के लिए... कूड़ा, कचड़ा, पन्‍नी और भी बिषैली चीजों को खाने के लिए....गाय भी क्‍या कर सकती है जब उसका घनी ही उसको छोड़ देता है तो अपना पेट भरने के लिए कुछ ना कुछ तो खाना ही पड़ेगा, फिर चाहे वो कचड़ा ही क्‍यों ना हो... यह इंसान है, मतलबी इंसान, जो अपने बुढ़े मां-बाप को भी घर से निकाल देता है वो गाय को क्‍या घर में रखेंगा....जिस तरह से समाज ने बच्‍चों द्वारा निकाले गए बूढ़े मां-बाप को पनाह देने के लिए वृद्धाआश्रम बनावा दिया है उसी प्रकार समाज ने इन गायों के लिए गाउशाला का निर्माण करवा दिया है.... यह बात तो ठीक है... क्‍या समाज के बुद्धजीवि व्‍यक्तियों, कानून ने, इस संदर्भ में कभी नहीं सोचा कि उन बच्‍चों पर भी कार्यवाही होनी चाहिए जो अपने मां-बाप को इस तरह दर-दर भटकने के लिए छोड़ देते हैं... इस पर सबकी बोलती बंद हो जाती है, बहुत से लोग यह तर्क देकर अपना पल्‍ल झाड़ लेते है कि यह उनका आपसी मामला है इसमें हम क्‍या कर सकते हैं.... फिर इस तरह गायों पर वबाल क्‍यों मचाने लगते हो... जरा जाकर उस गाय के धनी की खबर भी तो लेकर देखों जो जरूरत निकल जाने पर छोड़ देते हैं... या फिर बेच देते हैं। हालांकि जब आप गाय के प्रति हम और आप इतने संवेदनशील हैं तो फिर जहां पर इन गायों को भटकते हुए देखते है उसको अपने साथ घर क्‍यों नहीं ले आते... उसकी देखभाल क्‍यों नहीं करते.... बस एक दिखावा करते हैं कि हमें अपनी गाउ माता की रक्षा करनी है... जरा कभी अपने- अपने घरों में झांककर भी देख लिया करों जो अपने माता-पिता का इस तरह अनादर करते रहते हैं वो क्‍या खाक गाय की सेवा करेंगे....वैसे सेवा की बात करें तो सिर्फ गायों के लिए ही इतना उतावलापन आखिर क्‍यों.... और भी तो बहुत से जानवर है उनकी भी तो रक्षा की जा सकती है...क्‍योंकि सभी धमों में लिखा गया है कि प्राणियों की रक्षा करनी चाहिए, जिससे आपके पापों को दोहन होगा... नहीं बस गाय को पकड़कर बैठ जाते हैं....

यह एक पक्ष है गाय के संदर्भ में दूसरे पक्ष पर बात करें तो गाय का नाम लेते ही इसका नाम स्‍वत: धर्मवाद से जुड़ जाता है। जो कभी कभी दंगों का रूप भी इख्तियार कर लेता है। जिसमें इंसान, इंसान के खून का इस कदर प्‍यासा हो जाता है कि उसे कुछ नहीं दिखता, बस दिखता है तो किसी को आहत कैसे किया जाए.... रही बात गाय को काटने की तो पशुओं पर अत्‍याचार करना पाप है.... परंतु जब उसका मालिक ही उसको चंद पैसों की लालच में बूचड़खानों को बेच देता है उस पर कोई कार्यवाही क्‍यों नहीं की जाती..... जब गाय का मालिक ही उसको किसी भी कारणों से नहीं बेचेगा (चाहे वो दूध दे या ना दे) तो यह बूचड़खाने तो स्‍वत: बंद हो जाएंगे.... पर इस ओर किसी की दृष्टि शायद ही जाती हो....खैर मेरे कहने का तात्‍पर्य सिर्फ इतना है कि यदि हम गाय को माता मानते हैं तो इस तरह मतलब निकल जाने पर कुड़ा-कचरा खाने के लिए न छोड़े....

Thursday, March 23, 2017

एक साथ पढ़ने पर भी लगा दो पाबंदी.....

एक साथ पढ़ने पर भी लगा दो पाबंदी.....


अब भाई पार्क, किला, मंदिर, मस्जिद, कॉफी शॉप, होटल आदि जगहों पर जाने का मन हो तो अकेले ही जाओं, हां दोस्‍तों के साथ भी जा सकते हो, वो भी सिर्फ लड़के होना चाहिए, यदि अब लड़कियों के साथ गए तो क्‍या पता कहीं से एंटी रोमियों स्‍कॉड न आ जाए (महिला पुलिस के साथ) और आपको लड़की के साथ देखकर आपकी हजामत न करने लग जाए.... और हां यदि अब कोई विवाहित पुरूष अपनी पत्‍नी के साथ इन जगहों पर जाने की सोच रहे हो तो शादी की एक दो तस्‍वीरें अपने साथ जरूर रखकर चले….. या फिर कोई आई कार्ड बनवा लीजिएगा जिसको अपने गले में जरूर टांग लीजिएगा.....ताकि कोई पुलिसवाला पूछे तो उसको दिखा सको की हम विवाहित है और य‍ह हमारी पत्‍नी है.....खैर जब सरकार यह चाह रही है कि पार्कों, किलों, कॉफी शॉप, मंदिरों में कपल न दिखें तो उनको एक नया नियम और बना देना चाहिए कि आज से स्‍कूल, कॉलेजों, महाविद्यालयों, विश्‍वविद्यालयों आदि जगहों पर लड़के-लड़कियों के साथ पढ़ने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए....इनकी टाईमिंग में बदलाव कर देना चाहिए कि सुबह की पाली में लड़कियां पढ़ेंगी और शाम की पाली में लड़के.... और सभी स्‍कूल, कॉलेजों, महाविद्यालयों, विश्‍वविद्यालयों के पार्कों, केंटीनों में फोर्स तैनात कर देना चाहिए ..... और तो और पुरूष शिक्षक सिर्फ लड़कों को पढ़ाएंगे और महिला शिक्षिका सिर्फ लड़कियों को.... यह भी नियम बना दीजिए....ताकि जो आपकी मंशा है वो पूरी हो सकें.... वैसे उत्‍तर प्रदेश सरकार के नए मुख्‍यमंत्री ने सभी एसपी को दिशा निर्देश देकर एंटी रोमियों स्‍क्‍वार्ड का गठन हर जिलों में करवा दिया है यह अच्‍छी बात है महिलाओं और लड़कियों को सुरक्षा मिलेगी... पर स्‍कॉड द्वारा इस तरह पार्कों, किलों, मंदिर, मस्जिद, कॉफी शॉप, होटल आदि जगहों पर बैठे लड़के-लड़कियों को प्रताडित करना, लड़कों को थप्‍पड़ मारना, डंडों से पीटना, उठक-बैठक करवाना, उनके उपर केस लगाना क्‍या जायज है... इससे यह प्र‍तीत होता है कि हम स्‍वतंत्र नहीं है.... अपनी मर्जी से कहीं आ-जा नहीं सकते. बैठ नहीं सकते, घूम नहीं सकते.... हां महिलाओं की सुरक्षा के संदर्भ में यह कदम है तो उन पर कार्यवाही कीजिए जो महिलाओं के साथ छेड़खानी करते हैं, उन पर फब्‍तियां कसते हैं...... आपसी सहमति से.... दोस्‍तों के साथ बैठना, घूमना,आना, जाना, इस पर प्रतिबंध बिल्‍कुल भी जायज नहीं है.... मैं इस बात का विरोध दर्ज करता हूं.... बाकि हमारे मुख्‍यमंत्री जी बुद्धजीवि है... मेरे द्वारा बताए गए कुछ और नियम अपने इस अभियान में जोड़ ले कि आज से स्‍कूल, कॉलेजों, महाविद्यालयों, विश्‍वविद्यालयों आदि जगहों पर लड़के-लड़कियां एक साथ नहीं पढ़ेगे और एक साथ कहीं ना आएंगे ना जाएंगे... तो शायद आपके द्वारा चलाई गई यह मुहीम पूरी हो सकें....

Tuesday, March 7, 2017

पुरूषों की सोच से परे सोचें......महिलाएं

पुरूषों की सोच से परे सोचें......महिलाएं

एक दिन...... हां जी सिर्फ एक दिन.... महिलाओं के नाम...चलो अच्‍छा है थोड़ा सा चिल्‍लाने का मौका उनको भी मिल जाता है....कि हम महिलाएं हैं..... हमारे साथ ऐसा होता है, वैसा होता…… यह पुरूष समाज हमारे साथ ऐसा करते आ रहे हैं, वैसा करते आ रहे हैं.... इनसे मुक्ति मिलनी चाहिए.....हां भाई जरूर मिलनी चाहिए....आप भी आधी आबादी का हिस्‍सा है हमारी..... पर साल में एक दिन अपने अधिकारों को चिल्‍ला-चिल्‍लाकर याद करना कहां की तुक है....साल के बाकि दिन भी आपके हैं उसमें भी अपने अधिकारों के लिए लड़ा जा सकता है.....पर नहीं....चुप्‍पी साध के बैठे रहते हैं आप लोग.... इस एक दिन के लिए.... कि मार्च की 8 तारीख आएगी और हमें कहना का मौका मिलेगा......हमको पता है बहुत कुछ सहा है आप सभी ने...सह भी रहे हैं... पर क्‍यों..... वैसे कभी आप लोगों ने अपने-अपने घरों में भी झांककर देखा होता तो आपको पता चल जाता कि आपके शोषण की शुरूआत वहीं से हुई है...... जरा गौर कीजिए जब आपको कहीं जाना होता था और आप अपनी माता से कहती थी, तो जबाव साफ मिलता है कहीं नहीं जाना.... जाना है तो भाई के साथ चली जाना..... कभी आपकी माता ने आपके भाई से क्‍यों नहीं कहा कि जाना है तो अपनी बहन के साथ ही जाना, नहीं तो कहीं जाना ही नहीं है......वहीं आपके भाई को खुली छूट है कि वो रात्रि के 9-10 बजे तक आ सकता है और आपको.... घर में 6 बजे ही बंद कर दिया जाता रहा है..... और तो और सुबह का नास्‍ता, खाना, घर का पूरा काम आप लोगों को ही करना पड़ता है.... कभी आपके परिवार वालों ने कहा कि नास्‍ता या खाना या घर का यह-यह काम तुम्‍हारा भाई ही करेगा....कभी ऐसा हुआ....कभी नहीं.......क्‍योंकि वो पुरूष है आप महिला... वहीं यदि आपका भाई किसी से प्रेम करता है तो उसको आजादी है मेरा लाल, मेरा बेटा... और आपने कर लिया तो पाबंदियां ही पाबंदियां.... कलमुंही, कुल्‍टा, और न जाने क्‍याक्‍या आपकी माता के मुखरबिंदु से अच्‍छे-अच्‍छे अल्‍फाज निकलने लगते हैं।
कभी अपने ही घर में अपने शोषण के प्रति आवाज उठाई है.....और उठाई है तो वो आवाज आपके परिवार वालों ने ही दबा दी है..... और सबसे अधिक उसको दबाने वाली कोई और नहीं आपकी माता जी ही होती है..... इस संदर्भ में और कहें तो विवाहित महिलाओं को देखिए कि उनकी पूरी सोच पुरूषों के अनुरूप ही घूमती रहती है....सोचने का नजरिया, देखने का नजरिया सब कुछ पुरूषों के अनुसार..... क्‍योंकि महिलाएं अपने आपको आज भी उन पर निर्भर समझती है.... कमजोर समझती है बिना पुरूषों के......(एक आध अपवाद स्‍वरूप महिलाओं को छोड़कर)..... शादी, बच्‍चे पैदा करने का निर्णय, घर में आज क्‍या बनेगा, क्‍या बनना चाहिए सब कुछ पुरूषों के अनुसार ही किया जाता है..... वहीं दहेज की मांग करने वाली अधिकांशत: औरतें ही होती हैं.... दहेज की आग में जलाने वाली अधिकांश सास होती है.... और तो और अपनी बहुओं से लड़का ही पैदा हो इस तरह की ख्‍वाहिशें भी सास ही करती देखी जाती है... बहू पर अत्‍याचार करने वाली सास, या सास पर अत्‍याचार करने वाली बहू...जरा सोचिए महिला होने के बाद भी वो महिलाओं के साथ क्‍या-क्‍या करती हैं....क्‍योंकि उनकी सोच आज भी पुरूष समाज के समकक्ष चलती है। मेरे कहने का तात्‍पर्य सिर्फ इतना है कि जब आप अपने ही घर में अपनी आवाज नहीं उठा सकते तो फिर इस तरह बाजार में चिल्‍लाने से फायदा ही क्‍या है...... पहले अपने ही घर में हो रहे शोषण को देखिए जिसे आप अनदेखा कर देती है....उसके खिलाफ आवाज उठाए....जब आप अपने घर में अपने अधिकारों के प्रति सजग हो जाएंगे तो समाज अपने आप ही आपको वो अधिकार देने पर स्‍वत: मजबूर हो जाएगा जिसे वो आज तक आप सभी से छिनता आया है.....आप सब का दोहन करता आया है..... वो अधिकार पुरूष समाज ही क्‍या कोई भी नहीं छिन सकता जिसके प्रति आप लोग सजग है... नहीं तो इस देश में उल्‍लू बनने वालों की कमी थोड़ी के है.....
यदि किसी को मेरा विचार किसी को अच्‍छे नहीं लगे हों तो मैं माफी मांगता हूं.... बाकि महिला दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं...