सरोकार की मीडिया

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Monday, May 27, 2013

दोगलेपन की राजनीति में लिप्त कांग्रेस सरकार

दोगलेपन की राजनीति में लिप्त कांग्रेस सरकार
कहते हैं मोहब्बत और जंग में सब जायज है। परंतु हम यह कैसे भूल जाते हैं कि मोहब्बत और जंग के साथ-साथ राजनीति में भी सब कुछ जायज है। यह एक ऐसी विधा है जिसमें कुछ भी नाजायज नहीं। यदि आप राजनीति से कहीं से भी कोई सरोकार रखते हैं तो साम, दाम, दंड, भेद इसके साथ-साथ जो भी कुछ रह जाता हो, बच जाता हो, या इसके इतर आपके द्वारा जो कुछ नया इजाद कर लिया गया हो, उसका आप आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं, वो भी बिना किसी रोक-टोक के। क्योंकि यहां कोई रोकने-टोकने वाला ही नहीं है। अगर इस परिप्रेक्ष्य में आगे कहा जाए तो यह शराब की जैसी है न छोड़ी जाए। यह वे लोग होते हैं जो शराब की खाली बोतल में भी पानी डालकर पी जाए। क्योंकि सब तो मिला के पीते हैं पानी शराब में, ये पी गए शराब में देश को मिलाकर। तभी तो इनको नेता कहा जाता है। नेता जो कुछ नहीं लेता, परंतु मौका पड़ते ही डकैतों की भांति सब कुछ लूट लेता है। 
वैसे नेताओं के परिदृश्य में बात करें तो हमारे समाज में दो तरह के नेताओं की जमात मौजूद है। पहला तो वह जिनके बाप-दादाओं की वजह से राजनीति विरासत में मिलती है और दूसरे वह जो अपने बलवूते पर राजनीति में कदम रखते हैं। इस असमानता के बावजूद इन नेताओं में एक तरह की समानता देखी जा सकती है वो भी राजनीति की। यानि गिरी हुई नीछ प्रकार की राजनीति की।
हालांकि नेता चाहे जो भी, हां जैसे बने हों उनका सिर्फ-और-सिर्फ एक ही मकसद होता है इस देश को जितना ज्यादा से ज्यादा लूटने कर अपना और अपने परिजनों के घरों को भरने का। चाहे जनता भाड़ में क्यों न चली जाए। पाकिस्तान, चीन हमारी छाती पर दिन-रात मूंग क्यों न दलें। इन नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
अगर राजनीति में वर्तमान सरकार की बात कही जाए तो इस सरकार ने हाल ही में अपने दूसरे कार्यकाल के चार साल पूरे किए हैं हां पूरे चार साल। जिस पर हमारे मूक प्रधानमंत्री ने कहा है कि इन चार सालों में विकास हुआ है। जीडीपी ग्रोथ बढ़ी है। परंतु उन्होंने यह बताने की जहमत नहीं उठाई, कि उनकी सरकार ने इन चार सालों में और क्या-क्या किया। उनको तो जनता को यह बता देना चाहिए था कि उनकी सरकार के नेताओं ने इन चार सालों में कितने घोटले किए हैं और किस प्रकार जनता का खून चूसा है। साथ-ही-साथ यह भी बता दिया होता कि इन अरबों-खरबों के घोटले कि रकम को किस हिसाब से और किस अनुपात में नेताओं में बांटबारा हुआ है। इसके साथ ही यह भी बता देना चाहिए था कि उनकी सरकार में किस-किस नेता ने विदेशी बैंकों में इन चार सालों में कितनी रकम जमा की है। परंतु यह नहीं बताया। विकास की बात करके चले गए, अपने बिल में।

वैसे तो सभी जानते है कि हमारे मूक प्रधानमंत्री सिर्फ एक पियादा मात्र है जिसको आगे रखकर कांग्रेस दोगलेपन की राजनीति का गंदा खेल खेल रही है। इस दोगलेपन के खेल के साथ अब कांग्रेस सरकार दिखावे की भी राजनति करने लगी है। क्योंकि वह चाह रही है कि आने वाले चुनाव तक उसकी छवि जनता के सामने साफ-सुधरी हो जाए, तभी तो उसने अपने कुछ नेताओं के सिर पर से अपना हाथ खींच लिया है। एक तो हमारे रेल मंत्री जिनके भतीजे की वजह से उनको इस्तीफा दिलाया गया। और दूसरे बीसीसीआइ के अध्यक्ष जिनके दामाद स्पॉट फिक्सिंग में फंसे होने के कारण सरकार उनको इस्तीफे देने पर जोर डाल रही है। ताकि वह यह कह सके कि हम दोषी लोगों को ही नहीं, उनके परिजनों के भी दोषी होने पर अपनी पार्टी से निष्कासित कर देते हैं। परंतु मेरी समझ में यह नहीं आया कि करे कोई और भरे कोई। यदि ऐसा ही है तो सबसे पहले कांग्रेस पार्टी के रहनुमा को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए क्योंकि वह यह क्यों भूल जाती हैं कि उनके प्रिय दामाद पर भी घोलाटे तथा उनके लाडले पुत्र पर बलात्कार का आरोप लग चुके हैं। जिसको सरकार व कानून ने एक सिरे से नकार दिया। शायद इसी को राजनीति कहते है कि तुम करो तो रासलीला, हम करें तो करेक्टर ढीला। तुम करो तो चमत्कार और हम करें तो बलात्कार।

Monday, May 20, 2013

क्यों परेशान हो रहे हो?


क्यों परेशान हो रहे हो?

हमकों मालूम न था क्या कुछ है घर में बेचने को......... ज़र से लेकर ज़मीन तक हर चीज़ बिकाऊ है। ग़ालिब की यह चंद लाइनें आज आम जनता से लेकर लोकतंत्र के चारों स्तंभों कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका और मीडिया पर पूरी तरह चरितार्थ होती है। जिसने आज हमारे समूचे लोकतंत्र व्यवस्था को हिलाकर रख दिया है। चारों तरफ बाज़ारवाद हावी हो चुका है। सब-के-सब बिकने के लिए खड़े हैं बाज़ार में। बस खरीददार चाहिए, बोली लगाने वाला चाहिए। क्योंकि आज के परिप्रेक्ष्य में नेता से लेकर अभिनेता तक, वेश्या से लेकर खिलाड़ी तक सभी बिकाऊ हैं। फिर क्यों परेशान हो रहे हैं हम। चाहे वो पुलिस हो या मीडिया। आप सोच रहे होगें कि मैं किस मुददे पर चर्चा कर रहा हूं। तो बता दूं कि मैं मैंच फिक्सिंग में फंसे श्री के संत और अन्य खिलाड़ियों की बात कर रहा हूं। जिसको लेकर पुलिस और खास तौर पर मीडिया बहुत व्याकुल नजर आ रहा है। और वह न जाने कौन सा तानाबाना बुन रहा है, समझ से जुदा है।
वैसे यह कोई पहला मामला तो है नहीं, फिक्सिंग का। अगर श्रीसंत और अन्य खिलाड़ियों ने मैंच फिक्स कर भी लिया और उस एवज में चंद रुपए ले भी लिए तो क्या गुनाह कर दिया। हालांकि आईपीएल-6 में हो चुके करोड़ों के घोटालों और हर रोज हमारे नेताओं द्वारा किए जा रहे घोटालों से तो कम है। फिर भी कहीं न कहीं नेताओं द्वारा किए गए घोटालों से प्रेरणा लेकर इसने यह कदम उठाया होगा। क्योंकि आए दिन नेताओं द्वारा किए जा रहे घोटालों और मीडिया द्वारा उनकी प्रस्तुति का ढंग भी इस मैंच फिक्सिंग के जिम्मेवार हैं। क्योंकि नेता अरबों का घोटाला करते हैं और मीडिया दिखाता है कि फलां-फलां नेता ने इतने अरबों का घोटाला किया है। नेता को पुलिस ने उसके आवास से पकड़ लिया है। सरकार ने सीबीआइ जांच के आदेश दे दिए हैं तथा जांच के लिए एक कमेटी का भी गठन कर दिया है जो पूरे प्रकरण पर अपनी रिपोर्ट पेश करेंगी। वहीं कुछ दिनों के बाद अपने जेल कार्यक्रम के उपरांत यह नेता पुनः अपनी गद्दी की शोभा बढ़ाते नजर आ जाते हैं। होता क्या है कुछ नहीं। फिर इतनी हाय-तौबा आखिर क्यों?
सरकार को मैंच फिक्सिंग की रकम से कुछ दान-दक्षिणा या चढ़ौत्री चाहिए हो तो इस पर भी एक कर लागू कर दें और उसका नाम रख दें मैंच फिक्सिंग टैक्स। यानि खिलाड़ी व सटोरिए जितने रुपए में मैंच को फिक्स करेंगे उन रुपयों का 40 या 50 प्रतिशत टैक्स के रूप में सरकार को देना होगा। इससे सरकार भी खुश हो जाएगी और खिलाड़ी भी। इसके साथ-साथ सट्टेबाज भी तथा पुलिस व सीबीआइ को भी परेशान नहीं होगा पड़ेगा। अगर वास्वत में मैंच फिक्सिंग से सरकार तिलमिला रही है तो पहले उसे अपने गिरेवान में झांककर देखने होगा कि उसके दामन में कितने दाग लगे हैं और लगते जा रहे हैं।
मेरे हिसाब से तो जितना रुपया मैंच फिक्सिंग में इन खिलाड़ियों को मिला है उतना रुपया जब्त करके छोड़ देना चाहिए इन खिलाड़ियों को। परंतु नहीं इन खिलाड़ियों की कोई भी वकालत क्यों नहीं कर रहा समझ से परे लग रहा है। हां वैसे हमारे काटजू साहब को तो इन खिलाड़ियों का पक्ष लेना चाहिए था वो भी नदारत नजर आ रहे हैं। शायद कोई कानून तलाश कर रहे होंगे इन खिलाड़ियों के पक्ष में बोलने तथा इनकों बचाने के लिए। ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। हालांकि मैं इसके पक्ष में कदापि नहीं हूं फिर भी लगने लगा है कि समाज अपने विनाश की ओर अग्रसर हो चुका है। तभी तो इसकी लौ का अपने पुरजोर तरीके से फड़फड़ा बदस्तूर जारी है। अब देखना बाकी है कि कब इसका पूर्णतः अंत या विनाश होगा। क्योंकि सभी कुछ खरीद लिया इन खरीददारों ने।