सरोकार की मीडिया

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Friday, December 28, 2012

आज का प्‍यार

प्‍यार और प्‍यार के नाम पर अपनी शारीरिक भूख की तृप्‍ती, हर रोज प्‍यार को बढ़ावा देती है कभी इसके साथ तो कभी उसके साथ। यही आज की युवा पीढी की चाह है, चाहे वह लड़का हो या लड़की, दिल बहलना चाहिए, दिल बहलता है आपके आ जाने से। क्‍योंकि यह दिल तब तक बहलता है जब तक यह समाज से परे परिवार से परे होता है। प्‍यार की सच्‍चाई तब समझ आती है जब यह परिवार और समाज के समक्ष परिलक्षित होती है। तब यह प्‍यार या तो दोनों के लिए मौत का कारण बन जाता है या फिर लड़के पर थोप दिया जाता है बलात्‍कार का मामला। यही प्‍यार है जो आज अपनी तीव्र गति से समाज की रगों में बिना दिल के दौड़ रहा है। जोश और जज्‍बें के साथ। दवाओं के पुरजोर इस्‍तेमाल के साथ। बिन बारिस के छतरी का प्रयोग हो या 72 घंटे गुजर गए हो आप बेझिझक मांग सकते है वो भी अपने हक से। क्‍योंकि यह प्‍यार की पूजा में इस्‍तेमाल होने वाला प्रसाद है, बिना इसके पूजा करना खतरे से खाली नहीं हो सकता। भगवान नाराज हो सकते है और आपको श्राप के तौर पर कोई खबर कुछ महीनों बाद सुनने को मिल सकती है। यह खबर प्‍यार करने वालों के लिए सिरदर्द साबित हो सकती है और इस सिरदर्द से छुटकारा पाने के लिए झंडू बाम या पेन किलर काम नहीं करेगी, इस सिरदर्द के झंझट से मुक्ति का मार्ग चंद रूपए खर्च करके पाना होगा। चंद रूपए की चढौत्री चढ़ाने के बाद इस सिरदर्द को वह मुक्तिदाता किसी नाली, कूड़ा घर या फिर कचरे के डिब्‍बे में फिकवा देता है जिसको कीड़े-मकोड़ और गली के आवारा कुत्‍ते नोंच नोंच के खाते हैं और दुआ देते हैं इन प्‍यार के पुजारियों को कि ऐसे ही पूजा करते रहे। ताकि आपकी पूजा का प्रसाद का भोग हम भी समय समय पर लगा सके।

Tuesday, December 18, 2012

बलात्कार के दोषियों को फांसी नहीं- सजा के तौर पर लिंग ही काट देना चाहिए



बलात्कार के दोषियों को फांसी नहीं-
सजा के तौर पर लिंग ही काट देना चाहिए

यह पहला मामला नहीं है बलात्कार का। जिस पर इतना हो-हल्ला मचा हुआ है। अगर बलात्कार की पृष्ठभूमि को देखें तो बलात्कार एक ऐसा जघन्य अपराध है, जो पीड़ित महिला को भीतर तक तोड़ देता है। मनोवैज्ञानिक रूप से पीड़िता जीते जी मर जाती है। ‘‘सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि एक हत्यारा तो किसी व्यक्ति को केवल जान से मारता है, जबकि बलात्कारी पीड़िता की आत्मा को उसकी स्वयं की नज़रों में गिरा देता है।’’ और जीवन भर उसे उस अपराध की सज़ा भुगतनी पड़ती है जिसे उसने नहीं किया।
बलात्कार की घटना किसी एक क्षेत्र विशेष तक ही सीमित नहीं है। वस्तुतः दुनिया भर की औरतंे बलात्कार का शिकार होती हैं। बलात्कार की घटना अब शहरों की सीमाओं को लांघकर गांव-कस्बों में भी पहुंच गया है। ‘‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ें बताते हैं कि भारत में प्रतिदिन लगभग 50 बलात्कार के मामले थानों में पंजीकृत होते हैं।इस प्रकार भारत भर में प्रत्येक घंटे दो महिलायें बलात्कारी के हाथों अपनी अस्मत गंवा देती है। लेकिन, आंकड़ों की कहानी पूरी सच्चाई बयां नहीं करती। सच्चाई तो यह है कि बलात्कार के अधिकतर मामले थाने तक पहुंच ही नहीं पाते। इसका पहला कारण तो यह है कि पीड़ित स्त्री शर्म के चलते किसी को अपने साथ हुई बदसलूकी नहीं बताती। यदि वह अपने परिवार में इस अपराध को बताती भी है, तो परिवार वाले बदनामी के डर से मामले को घर की चारदीवारी के भीतर ही दबा देते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि बलात्कार के बहुत कम मामले ही थाने तक पहुंच पाते हैं। बलात्कार के मामलों का एक शर्मनाक पहलू यह भी है कि केवल अनजान लोग ही बलात्कार नहीं करते, बल्कि परिचित और रिश्तेदारों के द्वारा भी बलात्कार की घटनाओं को अंज़ाम दिया जाता है। पड़ोसी, सहपाठी, शिक्षक और निकट रिश्तेदारों के साथ-साथ सौतेले पिता व भाई भी लड़की को अपनी हवस का शिकार बना लेते हैं। कुछ बलात्कारी मासूम बालिकाओं को भी अपनी हवस का शिकार बनाने से नहीं चूकते।
‘‘केरल के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री ई.के. नयनार ने एक बार कहा था-आखिर यह बलात्कार है क्या? अमेरिका में प्रति मिनट एक बलात्कार होता है। यह चाय पीने के समान सामान्य है।’’ वैसे बलात्कार अधिकतर अनजान/अजनबी लोगों द्वारा किया जाता है, लेकिन अब ऐसे मामले भी सामने आये हैं, जिनमें किसी परिचित को ही बलात्कार के रूप में पुष्टि की जाती है। इन परिचितों में प्रायः सहपाठी, सहकर्मी, अधिकारी, शिक्षित और नियोक्ता अधिक होते हैं। ‘‘विश्व स्वास्थ संगठन के एक अध्ययन के अनुसार भारत में प्रत्येक 54वें मिनट में एक औरत के साथ बलात्कार होता है।’’ इस आलोक में सेंटर फॉर डेवेलपमेंट ऑफ वीमेन द्वारा किए गए एक अध्ययन से प्राप्त आंकड़े चैंकाने वाले थे। ‘‘रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिदिन 42 महिलायें बलात्कार का शिकार बनती हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि हमारे देश में प्रत्येक 35 वें मिनट में एक औरत के साथ बलात्कार होता है।’’
महिलाओं के सतत विकास के लिए कार्य कर रहे एक गैर सरकारी स्वैचिछक संगठन स्वप्निल भारतद्वारा किए गये एक सर्वेक्षण, जिसमें राजधानी दिल्ली सहित पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लगभग सभी कुल शहरों को शामिल किया गया है, से पता चला कि महिलाओं के साथ बलात्कार या यौन उत्पीड़न के लगभग 71 फीसदी मामले परिवार के इर्द-गिर्द ही शक़्ल अख़्यितार करते हैं। बलात्कार के लगभग 42 फीसदी मामलों को मामा, चाचा अथवा चचेरे या ममेरे भाइयों द्वारा अंज़ाम दिया जाता है। 26 प्रतिशत मामलों में दोषी पारिवारिक मित्र या पड़ोसी होते हैं, जबकि नौकरों व ड्राइवरों द्वारा लगभग 23 फीसदी बलात्कार किए जाते हैं। सर्वेक्षण के मुताबिक स्कूल-कॉलजों के अध्यापकों द्वारा भी बलात्कार किए जाते हैं, जिनका प्रतिशत लगभग 10 के आसपास रहता है। इसी प्रकार बलात्कार के लगभग 5 फीसदी मामलों में खास दोस्त, मंगेतर या प्रेमी होते है। सर्वेक्षण का सबसे शर्मनाक तथ्य यह था कि लगभग चार प्रतिशत मामलों में लड़कियों के सगे पिता बलात्कार को अंज़ाम देते हैं।
हालांकि बलात्कार तो बलात्कार होता है चाहे जिस के द्वारा इस कृत्य को अंजाम दिया जाए। मगर हो-हल्ला मचाने से या दोषियों को फांसी की सजा सुनाने से क्या इस अपराध का समाज से खात्मा संभव है? विचार करने वाली बात है। अगर रिपोर्टें उठाकर देखी जाए तो महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों की हकीकत से पूरा भारत वाकिफ है, कि किस प्रकार महिलाओं के साथ अपराध की घटना दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं और यह आंकड़े केवल साल दर साल कागजों की शोभा बढ़ाने और रिपोर्ट तैयार करने के अलावा कोई काम नहीं आते। जिस पर केंद्र हो या राज्य की सरकारें या फिर पुलिस प्रशासन हमेशा मौन बना रहता हैं। शायद इसका एक कारण जो मेरी समझ में आ रहा है कि तरह की घटना इनके परिजनों के साथ घटित नहीं होती। यदि होती तो यह अभी तक गूंगा मशान बने नहीं बैठे रहते। और न ही पूरे मामले में लीपापोती करते।
लीपा-पोती से एक उत्तर प्रदेश की एक घटना याद आ रही है कि कुछ सालों पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के करीबी रहे मंत्री के रिश्तेदार द्वारा बलात्कार का मामला सामने आया था जिसकी पुरजोर तरीके से साम, दाम सभी से लीपा पोती की गई। और यह भी कहा गया कि कुछ लाख रूपए लेकर मामले को रफा-दफा कर दिया जाए। यदि रूपयों से ही किसी महिला की इज्जत, उसका सम्मान वापस आ सकता है तो नेताओं को चाहिए कि अपनी बहू-बेटियों को बाजार में उतार दें ताकि रूपयों से उनकी इज्जत का सौदा किया जा सके! मेरी इस तरह की बातों से शायद नेताओं को मिर्ची लग सकती है पर मिर्ची की जलन है बर्दास्त तो करनी पडे़गी।
इनके साथ-साथ इस तरह की घटना महिला अधिकारों की रक्षा के लिए बना महिला आयोग पर भी प्रश्न चिन्ह लगाता है कि अधिकारों की लड़ाई और हक की बात करने वाला यह आयोग कहां तक अपने कार्यों को अंजाम देने में सक्षम हो पा रहा है। आंकड़ों की लिस्ट इनकी खुद ब खुद पोल खोल रही है।
आज सड़क से लेकर संसद में हुए बवाल और दोषियों को फांसी की सजा दिए जाने की बात, क्या पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए काफी है? नहीं कदापि नहीं। बलात्कार के दोषियों को फांसी देने के वजह उनका लिंग काट देना चाहिए और उनके माथे पर लिख देने चाहिए कि मैंने बलात्कार किया था और सजा के तौर पर मेरा लिंग काट दिया गया। इससे विकृत मानसिक प्रवृत्ति के लोग किसी नारी की आबरू को तार-तार करने से पहले 100 बार नहीं, लाख बार जरूर सोचेंगे कि बलात्कार की सजा सात साल या फांसी नहीं सीधा साफाया ही है।

Tuesday, December 11, 2012

एक नई प्रथा की शुरूआत


एक नई प्रथा की शुरूआत
            ‘‘अनुच्छेद 2 के अनुसार, ‘दहेजका शब्दिक अर्थ ऐसी प्रॉपर्टी या मूल्यवान वस्तु (समान, पैसा या और कोई वस्तु) से है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लड़की पक्ष द्वारा लड़के पक्ष को दी जाती है।’’ दहेज की परिभाषा देते हुए फेयर चाइल्ड ने लिखा है कि, ‘‘दहेज वह धन या संपत्ति है जो विवाह के उपलक्ष्य पर लड़की के माता-पिता या अन्य संबंध्यिों द्वारा वर पक्ष को दिया जाता है।’’ दहेज एक ऐसी कुप्रथा है, जिसके चलते सैकड़ों नव विवाहिताओं को आज भी असमय मौत का ग्रास बनाना पड़ता है। इसमें भी सबसे ज्यादा मौतें जलने के कारण ही होती हैं। कुछ युवतियों को ससुराल पक्ष द्वारा जबर्दस्ती जिंदा जला दिया जाता है, तो कुछ औरतों को दहेज के लिए ससुराल में इतना परेशान किया जाता है कि वे जलकर आत्महत्या कर लेती हैं।
‘‘आंकड़ें गवाह हैं कि अधिकांश दुल्हन जलाने की घटनाएं या दहेज मौतें या विवाहिता हत्या के मामले लड़की की ससुराल वालों की उन अतृप्त मांगों के परिणाम होते हैं, जिन्हें लड़की के माता-पिता पूरा नहीं कर पाते हैं।’’ दहेज का आर्थिक पक्ष इस कुरीति का सबसे खौफ़नाक पक्ष है। यदि वर पक्ष को इच्छित दहेज नहीं मिलता, तो वह नव विवाहिता पर शारीरिक और मानसिक जुल्म देना शुरू कर देता है। नव विवाहिता को तरह-तरह से तंग किया जाता है। उसे अधिक-से-अधिक दहेज लाने के लिए विवश किया जाता है। कई बार तो ऐसा भी होता है कि वधू पक्ष द्वारा मांगों की पूर्ति न होने पर नव विवाहिताओं की हत्या तक कर दी जाती है। इसके अलावा कई बार ससुराल पक्ष की शारीरिक प्रताड़ना और दुव्र्यवहार से तंग आकर नव विवाहिता भावनात्मक रूप से बिल्कुल टूट जाती है। और, अंततः वह आत्महत्या का रास्ता चुन लेती है।
वैसे लड़कियों के परिजनों व लड़कियों को अब दहेज के लिए प्रताड़ित व ससुरालजनों का शोषण नहीं सहना पड़ेगा। आप सभी सोच में होगें कि सरकार ने कोई विशेष कानून को पारित किया है जिसके चलते लड़कियों को दहेज का दंश नहीं झेलना पडे़गा। तो ऐसा कुछ भी नहीं है। सरकार तो अपने ढर्रें पर चल रही है। हालांकि पूर्व में दहेज की पृष्ठभूमि को देखें तो दहेज जिसके लिए लड़कियों को सदियों से प्रताड़ित किया जाता रहा है और साथ ही साथ लड़कियों के परिजनों को दहेज की प्रतिपूर्ति हेतु स्वयं को बेचने पर मजबूर किया जाता रहा है। ताकि वह विवश होकर दहेज की पूर्ति कर सकें। क्योंकि उनको अपनी लड़की को हर हाल में खुश जो रखना है, नहीं तो ससुराल वाले दहेज की पूर्ति न होने पर लड़की पर अत्याचार करने लगते हैं।
हालांकि मैं दहेज के दंश की बात कर रह हूं कि अब लड़की वालों को दहेज के लिए न तो चिंता करने की बात है और न लड़की को अत्याचार सहने की। क्योंकि उत्तर प्रदेश के जिला ललितपुर में एक नई प्रथा की शुरूआत हो चुकी है जिसमें लड़की के परिजनों को दहेज देने की वजह उसके विपरीत दहेज मिलना शुरू हो चुका है। चैंकिए मत मैं कोई मजाक नहीं कर रहा हूं मैं, आप लोगों को हकीकत से रूबरू करवा रहा हूं कि जिला ललितपुर में उल्टी गंगा बहने लगी है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि जिला ललितपुर में जहां जैन समुदाय के लोगों की संख्या अन्य समुदाय के लोगों से ज्यादा है और इस जैन समुदाय के लड़कों की शादी हेतु लड़कियों का आकाल पड़ा हुआ है। जिस कारण से जैन समुदाय के लड़कों की शादी नहीं हो पा रही है। और उन्हें शादी करने के लिए लड़की वालों को मुंह मांगी रकम देकर विवाह करने के लिए राजी करना पड़ रहा है। यह एक नई प्रथा जिसका बीज अंकुरित हो चुका है और जो धीरे-धीरे हर क्षेत्र में रोपित होकर वृक्ष बनने का आतुर होने वाला है। जिसका मुख्य कारण दिन-प्रतिदिन लिंग अनुपात में होने वाली कमी है।
वैसे वो दिन अब दूर नहीं है जब यह पौधा एक विशाल वृक्ष का रूप धारण कर लेगा और दहेज का खात्मा तो न सही परंतु हर समूदाय में यह परावर्तित हो जाएंगा। तब कहीं जाकर लड़के वालों को दहेज की वास्तविक पीड़ा की अनुभूति होगी कि किस प्रकार चंद रूपयों के खारित हम लड़कियों व उसके परिवार वालों को प्रताड़ित करते आए हैं।

Monday, December 3, 2012

तलाश है एक प्रेमिका की


तलाश है एक प्रेमिका की
‘’’’’’’हर बार हमारे दिल के टुकड़े हजार हुए, कोई यहां गिरा, कोई बहां गिरा। हमने बार-बार अपने दिल के टुकड़ों को झाडू से बटोरा, उन्हें फेविकोल से जोड़ा और चल पड़े एक नया प्रेम करने। मगर आज तक हमारे प्रेम को स्पॉन्सर करने वाला कोई नहीं मिला?’’’’’’’
पता नहीं कैसे, लोग पहली ही नजर में एक-दूसरे को दिल दे बैठते हैं। हम तो बचपन से नजर लड़ाने के लिए पालथी मारे बैठे हैं। काश! कोई हम पर भी नजर डाले और हमें अपना दिल दे बैठे। पर, हाय री किस्मत! पहली नजर के इंतजार में टकटकी लगाए खुद हमारी नजर इतनी कमजोर हो चुकी है कि कभी-कभी हम अपनी पत्नी को गलती से अपनी प्रेमिका समझ बैठते हैं।
प्रेम हमरी सबसे बड़ी कमजोरी रही है। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक हमने न जाने कितनी बार प्रेम किया, किंतु हर बार हमारे प्रेम की लुटिया डूब गई। हर बार हमरे दिल के टुकड़े हजार हुए, कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा। हमने बार-बार अपने दिल के टुकड़ों को झाडू से बटोरा। उन्हें फेवीकोल से जोड़ा और चल पड़े एक नया प्रेम करने। मगर आज तक हमारे प्रेम को स्पॉन्सर करने वाला कोई नहीं मिला।
लेकिन हम अब भी निराश नहीं हुए हैं। आज भी हमें तलाश है एक प्रेमिका की। एक ऐसी प्रेमिका की, जो हमारे टूटे हुए दिल की रिपेयरिंग कर सके। हमारे बुझे हुए मन में प्रेम की चिंगारी सुलगा सके। हमारे अंधेर जीवन में अपनी मोहब्बत की ट्यूबलाइट जला सके।
वैसे हमारे प्रेम की दास्तान किसी मजनू, किसी रांझा या किसी फरहाद से कम इम्पॉटेंट नहीं है। अगर यकीन नहीं आता तो हम अपनी दुःख भरी दास्तान सुनाते हैं, जिसे सुनकर आपका रूमाल आंसूओं से न भग जाए तो हमारा नाम बदल दीजिएगा।
जब हमारी उम्र मुश्किल से छह वर्ष होगी, हमारा दिल पहली बार पड़ोस की एक लड़की पर आ गया। बद किस्मती से उस लड़की की उम्र हमसे चार साल ज्यादा थी। हम जब जब भी उसके साथ छुपा-छुपी खेलते तो हमें बड़ा आनंद आता था। एक दिन खेलते-खेलते हमने उसका हाथ पकड़ लिष और पूछा, ‘‘हमसे शादी करोगी?’’ लड़की ने अपना हाथ झटका और एक जोरदार थप्पड़ हमारे गाल पर जड़ दिया, ‘शर्म नहीं आती? इत्ती-सी उम्र में शादी की बात करते हुए............छी।
ये हमारी पहली प्रेमिका का पहला थप्पड़ था और जिस तरह जिंदगी का पहला प्यार हमें हमेशा याद रहता है, उसी तरह पहला थप्पड़ हमें आज तक याद है। इसके बाद ये थप्पड़ों का सिलसिला कुछ ऐसा चला कि आज भी चलता जा रहा है।
स्कूल जाने लगे तो वहां भी कई प्रेमिकाएं नजर आई, लेकिन थप्पड़ खाकर अब हम थोड़े समझदार हो चुके थे। हमने सोचा इस बार डायरेक्ट शादी की बात करना खतरनारक हो सकता है। इसलिए शुरूआत किसी और तरीके से करनी चाहिए।
हमने अपनी क्लास की एक खूबसूरत लड़की को अकेली पाकर उसकी तारीफ करते हुए कहा, तुम बहुत सुंदर हो।लड़की अपनी तारीफ सुनकर कुछ मुस्कुराई, कुछ शर्माई। हमने समझा, हमारी प्रेमिका मिल गई। इसी खुशी में हम उसे गले लगाने के लिए जैसे ही आगे बढ़े कि अचानक हमारे गाल पर टीचर का झन्नाटेदार थप्पड़ पड़ा, ‘‘बेशरम, स्कूल में पढ़ने आता है या रोमांस करने?’’ इससे पहले कि हम कुछ सफाई पेश कर पाते, टीचर ने कान पकड़ कर हमें बेंच पर खड़ा कर दिया। पूरी क्लास हम पर हंस रही थी और हम अपनी किस्मत पर रो रहे थे।
जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ रही थी, हमारी प्रेमिका की तलाश भी बढ़ रही थी। लेकिन न जाने हमारी शक्ल और अक्ल में ऐसी क्या खास बात थी कि जो भी प्रेमिका हमें पसंद आती, वहीं हमें रिजेक्ट कर देती। कॉलेज पहुंचने तक तो हमारा दिल कई बार फ्रैक्चर हो चुका था। फिर भी अपने दिल को पहलू में संभाले हमने अपनी तलाश जारी रखी।
काॅलेज की एक लड़की हमारी प्रेमिकाओं की लिस्ट में 25वें नंबर पर दर्ज हो गई। हमने फैसला कर लिया था कि यही हमारी फायनल प्रेमिका होगी। उसके दिल में अपने लिए मोहब्बत पैदा करने की कोशिश में हमने दर्जनों बार उसे कैंटीन में चाय पिलाई, कई बार मंहगी आइस्क्रीम खिलाई, तब कहीं कुछ बात बनती नजर आई। हम अपनी पहली कामयाबी पर फूलकर गोल गप्पा हो गए।
एक दिन उसने अपने जन्मदिन की पार्टी में बड़े प्यार से हमें अपने बंगले पर आने की दावत दी। हमने अपनी तमाम जमा पूंजी से उसके लिए एक कीमती हार खरीदा और जा पहुंचे उसके बंगले पर।
हमारा दिल भी उस दिन लड़की के बंगले की तरह जगमगा रहा था। हमने बड़ी शान से लड़की के गले में अपने प्यार का तोहफा डाल दिया। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच हम जैसे ही मुबारकबाद देने उसकी तरफ बढ़े कि अचानक पीछे से किसी ने हमारी गर्दन खींची और एक धमाकेदार थप्पड़ हमारे गाल पर रसीद कर दिया। थप्पड़ के वनज से हम समझ गए कि यह हाथ किसी पहलवान का है। अब हमें क्या पता था कि वो पहलवान उसका बाप था। हमने अक्सर फिल्मों में देखा था कि ऐसी भरी महफिल में जब किसी प्रेमी को थप्पड़ पड़ता है तो प्रेमिका रोती है और प्रेमी कोई दर्द भरा गीत गाते हुए पियानों बजाता है। हमने जब इधर-उधर नजर दौड़ाई तो न हमें वहां कोई पियानों दिखा और न ही वो राती हुई नजर आई। इसके बावजूद हमने गाना शुरू कर दिया, ‘‘दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा, मुझे थप्पड़ खिलवा के छोड़ा......’’ जैसे ही हमारी सुरीली आवाज गंूजी, उन्होंने दरबान के जरिए हमें बंगले के बाहर फिंकवा दिया। हम दोनों तरफ से मारे गए। तोहफा भी हाथ से गया और प्रेमिका भी हाथ नहीं लगी। इस तरह हमारी सारी मेहनत पर कोल्ड वाटर फिर गया।
लेकिन वो प्रेमी क्या, जो थप्पड़ों और घूसों से डर जाए। हमने भी हिम्मत का दुपट्टा नहीं छोड़ा और अगली प्रेमिका की तलाश शुरू कर दी। लेकिन एक बात हमारी समझ में आ गई कि शायद प्रेम के मामले में हम अनाड़ी हैं। हमने सोचा, जिस तरह नौकरी हासिल करने के लिए पहले टेªनिंग लेनी पड़ती है, उसी तरह प्रेमिका हासिल करने के लिए भी ट्रेनिंग लेनी पड़ेगी।
हमारा एक पुराना दोस्त था। बड़ा ही रंगीन मिजाज और मस्त कलंदर। उसने छोटी-सी उम्र में ही प्रेम के मामले में महारत हासिल कर ली थी। अनजान लड़कियों से दोस्ती करना उसके लिए चुटकियों का खेल था। बस हमने भी उसकी शागिर्दी करने का फैसला कर लिया और उसके पास जाकर बोला, ‘‘यार, हम प्रेम करना चाहते हैं, हमें प्रेम करने की ट्रैनिंग दे दो।’’ उसने कहा, ’’ठीक है, मैं तुझे प्रेम की ट्रेनिंग देता हूं। मगर इसके लिए पहले तुझे अपना हुलिया बदलना पड़ेगा।’’
‘‘कैसा हुलिया?’’ हमने हैरत से पूछा।
‘‘अरे यार, जरा स्मार्ट बनों, फैशनेबल कपड़े पहनों, बालों की स्टाइल बदलो, बातचीत करने का ढंग सीखों, तभी तो कोई लड़की तुम्हारी पे्रमिका बनने को तैयार होगी। वरना तुम्हारे जैसे काठ के उल्लू को कोई लड़की घास भी नहीं डालेगी। हमने पूछा, ‘‘तो क्या प्रेमी बनने के लिए घास भी खानी पड़ती है?’’ उसने हंस कर जबाव दिया, ‘‘प्रेम करना है तो सब कुछ करना पडे़गा।’’
हमने उसकी बात मान ली और दूसरे दिन ही अपना हुलिया बदल डाला। अब हम किसी बी ग्रेड फिल्म के हीरो बन गए थे। हमने दोस्त से कहा, ‘‘हमें लड़कियों से बात करने के टिप्स भी बताओं।’’
‘‘सबसे पहले तो लड़कियों से हमेशा मुस्कुराकर बातें करनी चाहिए।’’ हमने उसे अपनी डायरी में नोट करते हुए पूछा, ‘‘और क्या करना चाहिए?’’
‘‘लड़कियों को अपना नाम बताओं, फिर उनका नाम पूछों।’’ ‘‘फिर?’’ हमने उत्सुकता से पूछा-
‘‘फिर उनसे पूछों, क्या आपकी शादी हो गई है?’’
‘‘अगर वो कहे हां, तो?
‘‘तो.... फिर पूछों, आपके बच्चे कितने हैं’’ बस, इस तरह बातों का सिलसिला चल पड़ेगा और फिर कोई न कोई लड़की तुम पर लट्टू होकर तुम्हारी प्रेमिका बन जाएगी।
इस तरह हम टेªनिंग लेकर तैयार हो गए। हमें पूरा विश्वास हो गया कि इस बार हम जरूर अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे। बस, एक अच्छा मौका मिलने की देर है। इत्तफाक से कुछ दिनों बाद ही हमें मौका मिल गया। मेरा दोस्त हमंें अपने साथ एक पार्टी में ले गया। जहां बहुत-सी खूबसूरत लड़कियां भी मौजूद थी। दोस्त ने हमें इशारा किया, हमने मन-ही-मन उसके बताए हुए सारे टिप्स याद किए और एक सुंदर लड़की के पास जा पहुंचे। हमने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए पूछा, हैलो, हमारा नाम........ है आपका क्या नाम है?
लड़की ने मुस्कुराकर जवाब दिया, ‘‘मेरा नाम मिस....... है।
हमने तुरंत पूछा, ‘‘आपकी शादी हो गई है मिस?, उसने हमें घूर कर देखा और बोली-
‘‘जी नहीं, मैं कुंवारी हूं’’
हमने अगला सवाल किया, ‘‘आपके बच्चे कितने हैं? और जवाब में उसने हमें एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। हम गाल सहलाते हुए अपने गुरू के पास पहुंचे तो उसने हमें हमारी बेवकूफी समझाई, और कहा, ‘‘इस बार कोई गलती मत करना,’’ हमने वादा किया और चल पड़े एक दूसरी सुंदर महिला की तरफ। हमने उसे मुस्कुराकर देखा, महिला ने भी हमें मुस्कुराकर देखा। हमने उसे अपना नाम बताया फिर उसने भी हमें अपना नाम बताया। फिर हमने पूछा, ‘‘आपके बच्चे कितने हैं? उसने जवाब दिया, मेरे दो बच्चे हैं।’’ अचानक हमें याद आया कि हम इससे पहले का एक सवाल पूछना भूल गए हैं। और हमने तुरंत वो सवाल भी पूछ लिया, आपकी शादी हो गई है क्या? तड़ाक..... महिला का थप्पड़ हमारे गाल पर पड़ा। हम रोते हुए फिर दोस्त के पास पहुंचे और इससे पहले कि हम कुछ बताते, हमारे दूसरे गाल पर दोस्त का थप्पड़ पड़ चुका था, तड़ाक.....।
इस तरह प्रेमिका की तलाश का हमारा ये अभियान भी नाकाम  साबित हुआ। जिस रफ्तार से हमारी उम्र बढ़ती जा रही थी उसी रफ्तार से हमारी उम्मीद घटती जा रही थी। हमें लगा जेसे हम इस दुनिया में कुंआरे ही कूच गर जाएंगे। मगर ये हमें मंजूर न था इसलिए हमने अपने पूज्य पिता जी की आज्ञा मानते हुए शादी के लिए हामी भर दी। हमने सोचा, शादी के बाद हम अपनी पत्नी को ही अपनी प्रेमिका बना लेगें। लेकिन हम ये भूल गए थे कि प्रेमिका तो पत्नी बन सकती है मगर पत्नी प्रेमिका नहीं बन सकती। बस यही भूल हमें बड़ी मंहगी पड़ी।
पत्नी ने आते ही हमारे सिर से प्रेम का भूत उतार दिया। उसने हमें घर के कोल्हू में ऐसा जोता कि आज तक बैल बने चक्कर काट रहे हैं लेकिन अब भी हमें उम्मीद है और इसी उम्मीद को दिल में संजोए वक्त गुजार रहे हैं। अब तो बस राह में नजरें बिछाए हम यही कहते हैं-
किसी कीमत पे हो, लेकिन दीदार हो जाए।
फिर उसके बाद चाहे, ये नजर बेकार हो जाए।।