सरोकार की मीडिया

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Sunday, May 27, 2012

लोगों को ठगने/फर्जीवाड़ा का एक नया तरीका


लोगों को ठगने/फर्जीवाड़ा का एक नया रूप

क्‍या यह बेरोजगारों को ठगने का नया तरीका तो नहीं या इसमें वास्‍तव में सच्‍चाई है। यदि सच्‍चाई है तो 15800 रूपये की ये मारूती सुजुकी कंपनी क्‍यों मांग कर रही है। ऐसा तो नहीं कि जो व्‍यक्ति 15800 रूपये जमा करें और फिर और फर्जी कंपनियों की तरह ये भी इन बेरोजगारों को चुना लगाकर चपत हो जाए। जैसा अधिकांश होता है और प्रतिभागी अपने आपको लुटा पिटा महसूस करने के अलावा इनके पास और कोई चारा न बचें। 
वैसे सचेत हो जाए फर्जी मेल और फर्जी जॉब सेक्‍योंकि यह आपको आर्थिक एवं मानसिक नुकसान पहंचा सकते हैं। यदि आपके पास कोई जॉब संबंधित मेल आये तो पहले उस कंपनी के बारे में पूरी जानकारी कर ले तभी कोई अलग कदम उठायेंनहीं तो यह सुरक्षा राशि के नाम पर आपसे मोटी रकम ऐंठ सकते हैं। और कुछ दिनों के बाद लापता। जिसे हम आप तो क्‍या ये पुलिस वाले भी नहीं पकड़ सकते।
जागों इंडिया जागों

MARUTI SUZUKI INDIA LTD (MSIL)
Head Office Maruti Suzuki,
India Limited Nelson Mandela Road,
Vasant Kunj, New Delhi-110070 
Board no.46781000
Email: [HR@marutisuzukijobs.com]
Tel : +918586064016 (10:00 AM TO 5:30 PM)
REF: "MARUTI SUZUKI" DIRECT RECRUITMENTS OFFER.
It is our good pleasure to inform you that your Resume has been selected 
from NAUKRI.COM for our new plant. The Company selected 62 candidates 
list for Senior Engineer, IT, Administration, Production, marketing and 
general service Departments, as well as Company offered you to join as an 
Executive/Manager post in respective department. You are selected 
according to your resume in which Project you have worked on according to 
that you have been selected in Company. The SUZUKI Company is the best 
Manufacturing Car Company in India; The Company is recruiting the 
candidates for our new plant in Pune, Bangalore, hyd and Mumbai.
Your Appointment interview Process will be held at Company HR - office in 
Nelson Mandela Road, Vasant Kunj Delhi – from 2nd of june 2012.
You will be pleased to know that Company has advise you in the selection 
panel that your Application can be progress to final stage. You will come to Company HR office in Delhi. Your offer letter with Air Ticket will be send to 
you by courier before date of interview. The Company can be offering you as 
salary with benefits for this post 50,000/- to 4, 00,000/- P.M. + (HRA + D.A + 
Conveyance and other Company benefits. The designation and Job Location 
will be fixing by Company HRD at time of final process. You have to come with 
photo-copies of all required documents.
REQUIRED DOCUMENTS BY THE COMPANY HRD. 
1) Photo-copies of Qualification Documents.
2) Photo-copies of Experience Certificates (If any)
3) Two Passport Size Photograph
You are to make a REFUNDABLE cash security deposit of Rs.15, 800/-(Fifteen 
Thousand Eight Hundred Rupees) as an initial amount in favor of our company 
Senior hrd accountant name in charge of collecting payment. This payment 
covers Registration, Interview, insurance, Processing & Maintenance 
charges. The refundable interview security deposit of Rs. 15,800/- should by 
paid through any [STATE BANK OF INDIA] Branch closer to you to our 
company hrd accounting officer in charge. Account information will be 
provided to you upon reply to email.
REASONS FOR INTERVIEW SECURITY DEPOSIT: This is a measure we have 
taken to check bogus applications from unserious candidate who applies for 
job and we send them offer letter and air ticket and also make the above 
mentioned arrangements in other to give them a comfortable interview and 
they fail to appear for interview which is a huge loss to the company and the 
interview becomes shabby and hence we fail to recruit the needed manpower. 
But with your security deposit we will be assured that our expenses will not 
be wasted. 
Please do comply with us as your refundable security deposit will be 
returned to you in cash immediately after the interview is over at the very 
premises of the interview.
NB: You are advised to reconfirm your mailing address and phone number in 
your reply and also send scanned copy of payment receipt after deposit . This 
Company will be responsible for all other expenditure to you at the time of 
face-to-face meeting with you in the Company. The Job profile, salary offer, and date -time of interview will be mentioned in 
your offer letter. 
IMPORTANT NOTICE:
Last date for security deposit is 1st
june 2012. The earlier the deposit is made 
the earlier your position will be secured by the Company HRD -direct 
recruitment manager.
Regards,
Mr. Aiko Hiroko
TEL: +918586064016
Email: [HR@marutisuzukijobs.com]
HRD -direct recruitment office
MARUTI SUZUKI INDIA LTD (MSIL)

Monday, May 21, 2012

विज्ञान और नीतिशास्त्र


विज्ञान और नीतिशास्त्र
सामान्यतः यह माना जाता है कि विज्ञान और नीतिशास्त्र शाब्दिक विरोध व्यक्त करता है। इसके बावजूद विज्ञान और नीतिशास्त्र के बीच मध्यममार्ग ज्ञात करना कठिन प्रतीत होता है क्योंकि इनके क्षेत्र भिन्न हैं और ये स्पष्ट रूप से एक दूसरे के निवारक हैं। किंतु काफी निकट से अवलोकन करने पर हम देखेंगे कि समान्य मत के विपरीत और नीतिशास्त्र न तो दो भिन्न ध्रुव हैं और न ही ये एक दूसरे के विरोधी और ये एक दूसरे को बल प्रदान करते हैं।
यदि विज्ञान को नीतिशास्त्र से पृथक कर दिया जाए तोतो यह पूर्णरूपेण हिंसोन्मत्त हो सकता है और सर्वत्र भयंकर विध्वंस का कारण बन सकता है। इसलिएविज्ञान को धर्म या नीतिशास्त्र द्वारा उचित रूप से सौम्य बनाना जरूरी है और नीतिशास्त्र को विज्ञान का ध्यान रखना जरूरी है। यदि विज्ञान हमारी भौतिकवादी आवश्यकताओं की पूर्ति करता हैतो नीतिशास्त्र हमारी आध्यात्मिक क्षुधा की तृप्ति करता है। नीतिशास्त्र परम सत्य को खोजने का प्रयास करता है। यह सच्चाईभलाईसंदुरता और भक्ति जैसे मूल्यों के परम लक्ष्यों की प्रकृति और जीवन की कटु सच्चाईयों के साथ उनके संबंधों की जांच करता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आश्चर्यजनक विकास करने वाले पश्चिमी देश अब निराश होकर पूर्व के आध्यात्मिक संदेश में राहत ढूंढ़ने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने पाया है कि नीतिशास्त्र के बिना विज्ञान का कोई खास महत्व नहीं है। यह हमें चंद्रमा पर ले जा सकता है किंतु यह हमें दिल की गहराइयों में नहीं ले जा सकता है। यह मनुष्य की भावनात्मक क्षुधा को तृप्त करने में असफल है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि ये हमारी आध्यात्मिक विरासत और धार्मिक सत्ता में प्रकाश की संभावना की तलाश करते है।
अब सभी बुद्धिजीवी और विचारक यह समझते है कि केवल विज्ञान हमारे जीवन को बेहतर बनाने में असमर्थ है। यद्यपि विज्ञान ने हमारे कल्याण के लिए सैकड़ों अन्वेषण एवं खोज दिए हैं तो दूसरी तरफ विध्वंस के विभिन्न् साधनों के जरिए मानवजाति के लिए भयंकर विपत्ति भी ला दी है। इसलिए यदि विज्ञान द्वारा कुछ उपयोगी उद्देश्यों की पूर्ति करनी है और मानवजाति के लिए वास्तविक खुशी लानी है तो इसे धर्म से जोड़ना चाहिए। इसी प्रकार यदि धर्म को मानवजाति का वास्तविक परामर्शदाता बनना है तो इसे सभी अंधविश्वासों से छुटकारा पाना होगा और वैज्ञानिक आधार प्राप्त करने चाहिए। जीवन का कटु सत्य है कि नीतिशास्त्र के बिना विज्ञान अंधा है और विज्ञान के बिना नीतिशास्त्र पंगु है। नीतिशास्त्र को मात्र धर्मसिद्धांत तक ही सीमित नहीं किया जा सकता है। इसी तरहविज्ञान को भी बेलगाम और मानवजाति का विध्वंस नहीं बनने देना चाहिए।
मध्य काल के प्रारंभ में गिरजाघर और वैज्ञानिक अन्वेषण के बीच प्रतिस्पर्धा का विकास हुआ। धर्म की परंपरागत उपलब्धि को अस्त-व्यस्त करने वाले या लोकप्रिय धार्मिक सिद्धांतों में दोष ढूंढ़ने वाले अन्वेषण या खोच को ईसाई विरोधी और ईश्वर विरोधी कहा गया। गैलीलियों को दोषी करार दिया गया था और मुकदमा चलाया गया था और उनके वैज्ञानिक खोजों को त्या दिया गया क्योंकि ये खोज परंपरागत धार्मिक मतों से मेल नहीं खाते थे। उस समय के कोई भी वैज्ञानिकप्रवर्तक और धार्मिक सिद्धांतों के आलोचक गिरजाघर की धर्महठता से नहीं बचते थे। यदि गिरजाघर की बात गलत भी होती थी तो उनके लिए अन्वेषकों को दोषी करार दिया जाता था। इस तरहअंधकार युग के दौरान नीतिशास्त्र और विज्ञान युद्ध की स्थिति में रहाजो सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण था। किंतु अब स्थिति बदल गई है।
धर्म का अर्थ धर्मांधता या मतांधताधर्म सिद्धांत या गलत मत नहीं है। इसका अर्थ मानवजाति से प्रेम और उनकी सेवा के प्रति समर्पित जीवन तथा गरीबों एवं पीड़ितों के लिए मानवतासहिष्णुतासंदेवना और सहानुभूति है। धर्म का अभिप्राय सत्य के लिए निरंतर खोज है। इसका  अभिप्राय अंधकार के विरूद्ध प्रकाश है। यह हमें अंधकार से प्रकाशअसत्य से सत्यघृणा से प्रेम और पाप से धर्मपरायणता की ओर ले जाता है। इसका अंतिम लक्ष्य सार्वभौमिक प्रेम और खुशी है। विज्ञान का भी लक्ष्य मानव कल्याण है इसने मानव की सुविधा और आधुनिक सत्यता में इतना योगदान दिया है कि इसे नया ईश्वर के रूप में माना जाने लगा है। विज्ञान ने दूरसंचार क्रांति के जरिए विश्व में ईश्वर के रूप वचन को फैलाने में मानव को आश्चर्यजनक रूप से सहायता प्रदान की है।
परिभाषा के अनुसारविज्ञान ज्ञान का क्रमबद्ध निकाय है। किंतु सभी ज्ञान ईश्वर का ज्ञान है। हमारी यात्रा ईश्वर से ईश्वर तक है। धर्म का लक्ष्य आध्यात्मिक उपस्थिति के रूप में इसकी प्राप्ति है।
भौतिकवाद यंत्रवाद की वकालत करता है। यह जीवन एवं मस्तिष्क की सच्चाईयों और अनोखेपन को मानने से इंकार करता है। यह ईश्वर के अस्तित्व को इंकार करता है। यह इस बात को भी नकारता है कि सजीव रूप में संपूर्ण प्रकृति की रचना है तथा मानव या पशु के सजीवों के रूप में कार्य करने पर इसे आपत्ति है। किंतु विज्ञान ने इस दूरी को समाप्त कर दिया है और इस प्रकार मानवजाति का एकीकरण हुआ है। इस प्रक्रिया में विश्व एकसाथ बंध गया है। विज्ञान ने प्राकृतिक बाधाओं को तोड़ दिया है और धर्म ने आध्यात्मिक खाई को पाट दिया है। यदि विज्ञान और नीतिशास्त्र साथ मिलकर काम करें तो पृथ्वी पर स्वर्ग बनाने का ईश्वर का सपना वास्तविकता में बदल जाएगा।
मनवजाति के  लिए सर्वत्र शांति और समृद्धि होगी। विध्वंस की ओर विज्ञान के वर्तमान कदम को केवल धर्म और नैतिकता द्वारा विज्ञान को स्वस्थकर स्पर्श प्रदान कर रोका जा सकता है। विज्ञान को धर्म द्वारा ही विध्वंस के मार्ग से दूर किया जा सकता है। एक तरफसमय की आवश्यकता है कि धर्म को मात्र कर्मकांडनिरर्थक धर्महठताबेकार कर्मकांडों और आडंबरपूर्ण समारोहों से छुटकारा पाना चाहिए और दूसरी तरफविज्ञान को विध्वंसात्मक उद्देश्यों के लिए अपनी खोजों के प्रयोग से बचना चाहिए। न तो अवैज्ञानिक अंधविश्वासी पर आधारित धर्म और न ही निरीश्व और अर्चेतन्य अपवित्र विज्ञान समुपस्थित शारीरिक एवं नैतिक विपदाओं से मानवता की रक्षा कर सकता है।
इसलिएहमें उस विश्व समुदाय के विकास के लिए काम करना चाहिए जिसमें युद्ध वर्णित होगा और हिंसा एक अस्वीकृत मत होगा। आध्यात्मिक पुनर्निर्माण के अतिरिक्त कुछ भी हमें इस उद्देश्य की प्राप्ति में सहायता नही कर सकता है।

Thursday, May 17, 2012

ज्ञान ही शक्ति है


ज्ञान ही शक्ति है

शक्ति प्राप्त करने की इच्छा मानव में जन्मजात होती है। इसक इच्छा का कारण यह है कि मानव को इस बात का बोध है कि वह मानसिक और नैतिक दृष्टि से सृष्टि के अन्य जीवों से श्रेष्ठ है। अतः यह स्वाभाविक ही है कि श्रेष्ठ होने के नाते मानव का अन्य जीवों पर नियंत्रण और प्रमुख रहना चाहिए। इसके अलावा मनुष्यों में असमानता होने के बोध से भी एक द्वारा दूसरे पर शासन करने और प्रभुत्व जमाने की अभिलाषा पैदा होती है। विश्व का इतिहासजहां तक इसका मानव से संबंध हैशक्ति के लिए संघर्ष का इतिहास है। अतः जनजातियों और कबीलों के आदिकालीन लड़ाइयों से लेकर आज के विनाशकारी युद्धों तक इन सभी के पीछे एक ही धारणा है और वह शक्ति प्राप्ति की लालसा।
शक्ति मुख्यतः दो प्रकार की होती है-शारीरिक और बौद्धिक। बौद्धिक शक्ति की तुलना में शारीरिक शक्ति निम्न स्तर की होती है। आदिकालीन लोगों को मुख्यतः शरीर की शक्ति का ही ज्ञान था। प्राचीन युग में शास्त्रों की शक्ति ही निर्णय करती थी और केवल ताकत का ही बोलबाला था। परंतु सभ्यता के विकास और मानव मस्तिष्क के विकास के साथ बौद्धिक शक्ति को श्रेष्ठ माना जाने लगा। बौद्धिक शक्ति की उत्पत्ति ज्ञान से होती है।
जब मानव पहली बार धरती पर आया था तो वह किसी प्रकार से पशुओं से बेहतर नहीं था। वह भी हिंसक पशु ही था और स्वयं भी जंगली जानवरों तथा प्रकृति की प्रतिकूल शक्ति के सामने एक असहाय प्राणी था। परंतु ईश्वर ने उसे बुद्धि दी थी और यही बुद्धि अंततोगत्वा उसका बचाव कर सकी। उसने आग का आविष्कार किया और उसके उपयोगों को जाना और आग के उपयोग के इसी ज्ञान ने धीरे-धीरे उसे शक्तिशाली बना दिया। समय के साथ-साथ उसके ज्ञान ने विश्व में आश्चर्य उत्पन्न कर दिये और बहुत से क्षेत्रों में मनुष्य का आधिपत्य हो गया।
आज का जीवन जिन महान खोजों और अविष्कारों पर आधारित हैवे सभी बुद्धि की शक्ति की अभिव्यक्ति ही है। पानी और बिजली जैसी प्राकृतिक शक्तियों पर विजय प्राप्त करके इन शक्तियों को मानव के उपयोग में लाया जाना भौतिकी के कारण ही संभव हो सका है। यांत्रिकी के ज्ञान से ही दूरी को घटाया जा सका और मनुष्यों में परस्पर बंधुत्व की भावनाओं का अनुभव कराया जा सका है। परमाणु ऊर्जा की युगांतरकारी खोज ने तो धरती पर मनुष्य के भावी जीवन की संपूर्ण धारणा में ही आमूल परिवर्तन ला दिया है। विज्ञान के क्षेत्र में आज मनुष्य द्वारा की गई अभूतपूर्वज्ञान और जानकारी प्राप्त करने की निरतंर खोज तथा शासन और अधिपत्य जमाने की भूख का ही परिणाम है।
वास्तव में कलाविज्ञानसंस्कृति और सभ्यता का विकास ज्ञान पर ही निर्भर है। प्रकृति ने अपने रहस्यों को ज्ञान शक्ति के साथ खोल दिया है। उसने शारीरिक शक्ति और बौद्धिक शक्ति दोनों को एक ही समय बनाया है। परंतु ज्ञान ने मनुष्य को न केवल बौद्धिक शक्ति ही दीबल्कि उसे शारीरिक शक्ति से बेहतरसुनिश्चित और अधिकाधिक अनुशासित और किफायती तरीके से प्रयोग करना भी सिखाया है। अतः अनुशासनव्यवस्था और किफायत उस शक्ति के आधार हैं जो ज्ञान द्वारा हमें प्रदान की गई है।
महान विचारों से महान् व्यक्ति बनते हैं और मानव स्वभाव की निरंतर यह विशेषता रही है कि वह अपने ज्ञान क्षेत्र से परे के सत्य की खोज करने का आदी है। अतः उत्तम भाव का प्रमुख गुण होता है संतुलन। ज्ञान की शक्ति तो बड़ी होती है। ज्ञान हममें दंभ उत्पन्न कर सकता है और इस  प्रकार इसके वास्तविक वरदान को छीन सकता है। विवेक विनम्र। इस बात का अनुभव कर लेने के बाद ही हम ज्ञान की शक्ति के महत्व को समझ पाते हैं और ज्ञान को अर्जित करना चाहते हैं जो हमें सत्य की खोज के योग्य बनाता है। हमें ज्ञान की पूर्ण प्राप्ति का भरसक प्रयास करना होगा क्योंकि आधा ज्ञान खतरनाक होता है’ ज्ञान को पूर्णता से प्राप्त करो अथवा अधूरे ज्ञान से दूर रहो।

Sunday, May 13, 2012

तिरस्कृत भारतीय प्रजातंत्र


तिरस्कृत भारतीय प्रजातंत्र

अधिकारों और अवसरों की असमानता से ही क्रांतियों की पृष्ठभूमि बनती रही है। राजतंत्र और अभिजात-वर्ग समाप्ति के बाद राजनैतिक समानता के सिद्धांत का जन्म हुआ। यह निःसंदेह महान् सामाजिक आदर्श है। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के अनुसार, ‘यह केवल एक वर्ग के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण जनसंख्या के महानतम उपलब्ध कल्याण के उद्देश्य वाली एक सामाजिक व्यवस्था है।ऐसा विश्व जिसमें लोगों की आवाज ईश्वर की आवाज होती है और इक्कीस वर्ष की आयु के ऊपर प्रत्येक के लिए राजनैतिक क्षमता और दूरदर्शिता अपरिमेय और अमोध होती है, वह उसके लिए परीलोकहोता है।
भारत के लंबे एवं उतार-चढ़ाव वाले इतिहास में 26 जनवरी, 1950 एक शुभ दिन था क्योंकि इसी दिन स्वतंत्र भारत के संविधान को धर्मनिष्ठ आशाओं अपेक्षाओं के साथ लिया गया था।
इसलिए, यह भारत के सभी नागरिकों की पवित्र प्रतिज्ञा थी कि नया राज्य प्रभुतासंपन्न, समाजवादी, धर्मनिष्ठ, लोकतांत्रिक गणराज्य होगा जिसमें इसके सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और पूजा की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त होगी। यह भी वचन दिया गया है कि राज्य के अपने सभी नागरिकों के बीच बंधुता का विकास और व्यक्ति की प्रतिष्ठा और राज्य की एकता और अखंडता सुनिश्चित करेगी।
स्वतंत्रता के 64 वर्ष से अधिक समय के बाद भी अधिकांश नागरिक चकित हैं कि संविधान में निहित वचन को किस हद तक पूरा किया गया है और हमारा संविधान किस दिशा की ओर अग्रसर है। बिल्कुल वही प्रश्न है जिसे बार-बार उठाया जा रहा है। इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें लोकतंत्र की अवधारणा पर फिर पुनर्विचार करना होगा। हम बारी-बारी से इनकी जांच करते हैं।
एक तरफ, निरक्षरता, बेरोजगारी, आर्थिक विषमता, कुछ हाथों में धन का केंद्रीकरण, जीवन का निम्न स्तर, भ्रष्टाचार, अपराधियों और राजनीतियों के बीच संबंध, सैकड़ों करोड़ रूपए के नित्य नए घोटाले भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला के लिए खतरा उत्पन्न कर रहे हैं। दूसरी तरफ, आर्थिक विषमता, राजनैतिक षडयंत्र, गुप्त सौदा, भाषाई कट्टरता अनियंत्रित अनुपात में अपनाये गये हैं। इन सभी बुराइयों की वृद्धि का कुछ प्रभाव यह है कि कानून के सिद्धांत पर आधारित शासन प्रणाली वास्तव में समाप्त हो गई है। नियमतः लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून सर्वोच्च होता है, कानून के समक्ष सभी समान होते हैं और प्रत्येक दशा में कानून अपनी प्रक्रिया पूरी करता है। किंतु वर्तमान भारत में कानून विधि की पुस्तक के पृष्ठों में प्रतिष्ठापित है किंतु यह वास्तव में संचालित नहीं होता है। कानून अपनी प्रक्रिया पूरी नहीं करता है अपितु यह ऊंचे और शक्तिशाली, जो कभी अपराधी और कानून तोड़ने वाले होते है, के मार्ग का अनुसरण करता है। वर्तमान में केवल 25 प्रतिशत जनसंख्या विकास और परिलब्धियों का लाभ तथा ज्ञान एवं सत्ता के एकाधिकार का उपभोग करती है। वर्तमान में लोकतंत्र चैराहे पर खड़ा है। स्वार्थी, अदूरदर्शी, भ्रष्ट और बेईमान राजनीतिज्ञ कभी-कभी राज्य के सर्वोच्च पद पर पहुंच जाते हैं, क्योंकि सही व्यक्तित्व और दूरदर्शिता वाले व्यक्ति बिल्कुल समाप्त हो गए हैं। ऐसे नेता और भारतीय विदेशी बैंक खातों में अधिक से अधिक धन जमा करने और अपना वोट बैंक बनाने में लगे हैं ताकि वे किसी भी कीमत पर या किसी भी तरीके से समय-समय पर आने वाले चुनावों में जीतने में सक्षम हो सकें।
अविलंब अमीर बनने वाले पेशेवर राजनीतिज्ञों द्वारा सुविचारित ढंग से उत्पन्न संप्रदायवाद, जातिवाद, धार्मिक कट्टरपंथियों, अंतर्जातीय तनाव ने ऐसा वातावरण तैयार कर दिया है जिसमें देश के लोकतंत्र का भविष्य क्षीण हो गया है। इन सब का परिणाम यह है कि लोगों ने पार्टी पर आधारित राजनीतिक प्रणाली में विश्वास खो दिया है। लोगों के बीच व्याप्त निराशा हाल के चुनाव के परिणामों में प्रतिबिंबत हुई। चुनाव परिणामों की विवेचनात्मक समीक्षा प्रदर्शित करती है कि राष्ट्रीय पार्टियों के दिन ढल गए हैं और क्षेत्रीय पार्टियों एवं निर्दलीय उम्मीदवारों को प्राथमिकता मिल रही है। कुछ लोगों ने इसे संघवाद की ओर अग्रसर होने की प्रवृत्ति के रूप में प्रशंसा की है। हालांकि, यह आशंका है कि जल्दी ही यह नए प्रकार का संघवाद 25 राज्यों और 7 केंद्रशासित राज्यों के संघवाद को समाप्त कर सकता है और 543 प्रदेशों वाला संघवाद बन सकता है जिसमें प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र एक प्रदेश और विधानसभा क्षेत्र एक उप-प्रदेश हो सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अगस्त 1947 के पहले ब्रिटिश भारत में 11 ब्रिटिश प्रांतों के अलावा 570 देशी रियासत थे। शायद हम पुनः उसी सामंती प्रणाली की ओर जा रहे हैं। स्वतंत्र भारत की लोकतांत्रिक सरकार ने सभी राज्यों का विलय कर लिया और पूर्व शासकों की पदवियों और राजकीय भत्तों को समाप्त कर दिया गया। किंतु इन नई जागीरों और इन नए महाराजाओं और खलीफाओं का प्रादुर्भाव कौन रोकेगा?
रूढ़िवादी लोकतंत्र ने भारत की आवश्यकताओं की असमानता को प्रमाणित कर दिया है। समस्या वर्तमान परिस्थिति के अनुकूल लोकतंत्र की परंपरागत संस्थाओं में सुधार लाने की है। लोकतंत्र की अक्षमता भारत की आर्थिक समास्ओं में स्पष्ट हो गई है। इसलिए, आर्थिक प्रणाली का प्रबंध इस प्रकार करना चाहिए कि प्रत्येक को उपयुक्त जीवन-स्तर और उचित मात्रा और स्वतंत्रता सुनिश्चित हो।

Saturday, May 12, 2012

बलात्कार का एक चेहरा यह भी


बलात्कार का एक चेहरा यह भी

बलात्कार एक ऐसा अपराध है जो पीड़ित महिला को भीतर तक तोड़ देता है। जिसके कारण पीड़िता जीते जी मर जाती है। सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि, ‘‘बलात्कार की पीड़ित महिलाबलात्कार के बाद स्वयं अपनी नजरों में ही गिर जाती हैऔर जीवन भर उसे उस अपराध की सजा भुगतनी पड़ती है जिसे उसने नहीं किया।’’
बलात्कार को किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं किया जा सकतावस्तुतः दुनिया भर की औरतें बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों का शिकार होती हैं। बलात्कार अब शहरों की सीमाओं को लाघंकर गांव-कस्बों में भी पहुंच गया है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि भारत देश में प्रतिदिन लगभग 50 मामले बलात्कार के थानों में पंजीकृत होते हैं।’ इस प्रकार भारत भर में प्रत्येक घंटे दो महिलाएं बलात्कारियों के हाथों अपनी अस्मत गंवा देती है। लेकिन आंकड़ों की कहानी पूरी सच्चाई ब्यां नहीं करती।
हालांकि बलात्कार अधिकतर अनजाने लोगों द्वारा किया जाता हैलेकिन अब ऐसे मामले भी सामने आ रहे हैं जिनमें किसी परिचित द्वारा ही बलात्कार किया गया। इन परिचितों में सहपाठीसहकर्मीअधिकारीशिक्षित और नियोक्ता अधिक होते हैं। ‘‘विश्व स्वास्थ संगठन के एक अध्ययन के अनुसार, ‘‘भारत में प्रत्येक 54वें मिनट में एक औरत के साथ बलात्कार होता है।’’ वही महिलाओं के विकास के लिए केंद (सेंटर फॉर डेवलॅपमेंट ऑफ वीमेन) द्वारा किए गए एक अध्ययन ने जो आंकड़े प्रस्तुत किए वो चैकाने वाले थे। इसके अनुसार, ‘‘भारत में प्रतिदिन 42 महिलाएं बलात्कार का शिकार बनती हैं। इसका अर्थ है कि प्रत्येक 35वें मिनट में एक औरत के साथ बलात्कार होता है।’’
क्या यह पूरी सच्चाई ब्यां करती है कि बलात्कार के आंकड़ों से बलात्कारों की संख्या निर्धारित की जाए। शायद हम एक पक्ष की बात करते नजर आयेंगेक्योंकि अगर बलात्कार की पृष्ठभूमि की बात करें तो हम स्वतः समझ जायेंगे कि आज के परिप्रेक्ष्य में बलात्कार हो रहा है या मात्र किसी दबाव या रंजिश के चलते इसको स्त्री समुदाय एक अस्त्र के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं। शायद मेरी इस टिप्पणी से बहुत सारे लोग सहमत न हो परहकीकत से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता।
अगर बलात्कार की खबरों पर चर्चा करें तो ऐसी बहुत सारी खबरें हमारे सामने से गुजरती है जिसको गले से उतारना मुश्किल लगता है। एक खबर, ‘28 साल के युवक ने 32 वर्ष की महिला को अपनी मोटर साइकिल में लिफ्ट दीऔर फिर खेत में ले जाकर बलात्कार किया। एक और खबर, 20 साल के युवक ने 19 साल की लड़की को पुलिया के नीचे खीच कर बलात्कार किया। ऐसी तमाम खबरों से हम समाचारपत्र व इलैक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा रूबरू होते रहते हैं। इनमें कितनी सच्चाई है यह मैं और आप नहीं बल्कि वो दोनों ठीक तरह से बता सकते हैं।
आज के परिपे्रक्ष्य में जिस तरह का माहौल हमारे बीच में तेजी से पनपा है उससे हम सब अंजान नहीं हैं कि किस तरह युवक और युवती दोनों में प्रेमालाप पनपता है और फिर एक समय सीमा के उपरांत यह प्रेम शारीरिक संबंधों में तबदील हो जाता है। ऐसा नहीं है कि प्रेम के बाद इन लोगों के बीच संबंध बने हीपरंतु अधिकांश 10 में से 9 लोगों के बीच संबंध स्थापित हो ही जाते हैंजो समाज की नजर से नहीं आते। इसे एक विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण कहें या फिर शरीर में आये हारमोन का बदलावसोचने वाली बात है। वहीं इस लुकाछिपी के खेल में कभी-कभार इनके संबंधों की जानकारी लड़की के परिजनों को पता चल जाती है तो सारी प्रेम कहानी एक सिरे से खारिज कर लड़की के परिवार वाले लड़की पर दबाव बनाकर लड़के पर बलात्कार का झूठा आरोप लगवा देते हैं। जिसकी सुनवाई हमेशा से ही लड़की के पक्ष में होती है। क्यांेकि लड़की को पीड़ित के दृष्टिकोण से देखा जाता है।
बलात्कार का एक और चेहरा हमारे समाने परिलक्षित होता है जिसकी हकीकत से सभी बेखबर और पुलिस के नजरियें से इन खबरों को प्रकाशित करने वाले पत्रकार और समाज का एक बहुत बड़ा पाठक वर्ग इस तरह के प्रेमालाप को बलात्कार मान लेता है। मैं यह नहीं कर रहा हूं कि बलात्कार नहीं होतेबलात्कार होते हैंनन्हीं बच्चियों के साथवृद्धाओं के साथसामूहिक लोगों द्वाराअपनी हवस का शिकार इन लड़कियों को बना लेते हैं। जो कभी-कभी समाज के समाने आ जाती हैं और बहुत बार एक चार दीवारी में दम तोड़ देती हैं। फिर भी एक लड़का एक लड़की के साथ बलात्कार नहीं कर सकता जब तक उनकी सहमति न हो। इस बात को खारिज करने के लिए महिला समुदाय मेरे विपक्ष में खड़ी हो सकती हैंइसके साथ-साथ शायद एक वर्ग मेरे भी पक्ष में खड़ा हो जो मेरी बात से सहमति रखता होकि बलात्कार का एक और चेहरा जो समाज के समाने नहीं आ पाता और उसे बलात्कार का नाम दे दिया जाता है।
इस आलोच्य में कहा जाए तो बलात्कार के कानून में संशोधन की आवश्यकता महसूस होती है। कि बलात्कार की पूछताछ दोनों पक्षों से सख्ती से होनी चाहिएयदि बलात्कार हुआ है और सारे सबूत बलात्कारी के विपक्ष में जाते है तो उसे सजा होनी चाहिए। जबकि पुलिस पूरे मामलें को एक पक्ष से न देखकर विभिन्न दृष्टिकोणों से इसकी जांच करें कि क्या इनके बीच कभी कोई प्यार जैसा संबंध या फिर किसी रंजिश के चलते तो ऐसा नहीं किया जा रहा है। इसकी गहनता से जांच होनी चाहिए। तब जाकर बलात्कार की हकीकत सबसे समाने आ सकेगी।

Thursday, May 10, 2012

विज्ञापनों से सुरक्षा


विज्ञापनों से सुरक्षा

विज्ञापन अपना ढिढोरा पीटने का एक चतुर मार्ग है। अब किसी सामान को चित्रकला के माध्यम से प्रचारित करने का एक नयाब तरीका निकल गया है। आज सफलतम व्यवसायी वही है जो प्रभावशाली विज्ञापन का गुण जानते हैं। सामान की गुणवत्ता का उतना महत्व नहीं होता है जितना कि लोगों को आकर्षित करने का महत्व होता है। उपभोक्ता अपनी जेब से आसानी से पैसे नहीं निकालते किंतु चतुर विज्ञापनदाता जागरूक और कंजूस उपभोक्ता की जेबों से भी पैसे निकाल सकते हैं।
विज्ञापन देने के कई माध्यम हैं। प्रेस विज्ञापन का सर्वाधिक प्रभावशाली एवं व्यापक माध्यम है क्योंकि यह अधिकतम पाठकों तक पहुंचता है। विज्ञापन के अन्य मीडिया स्रोतों के रूप में रेडियोंसिनेमादूरदर्शनशो-कार्डविघुत कौंधशक्ति इत्यादि का उल्लेख किया जा सकता है। प्रतिदिन विज्ञापन के नए तरीकों को अपनाया जा रहा है।
पिछले पचास वर्षों के दौरान विज्ञापन इतने महत्वपूर्ण तथा कपटी हो गए हैं कि वे रेफ्रिजरेटर खरीदने के लिए वास्तव में एस्कीमों को भी पे्ररित कर सकते है। विज्ञापन की नई विधियोंसाधनों और दाव-पेचों द्वारा बेईमान व्यापारियों और निर्माताओं ने भोली-भाली जनता को अपना शिकार बनाया है। इस प्रकार बिक्री काफी बढ़ गई है एवं भारी लाभ कमाया जाता है। प्रतिस्पर्धात्मक विज्ञापन में विज्ञापनदाता अपने सामान को अपने प्रतिद्वन्दी के सामान से अधिक बेहतर बताने की कोशिश करता है और इस प्रकार अपने सामान के उपभोक्ता समूह को आकर्षित करता है। इस प्रकार से एक बार उसका सामान बाजार में जम जाने पर उसके उपभोक्ता निश्चित हो जाते है तथा उसके सामानों की मांग स्थाई हो जाती है तथा उसकी बिक्री से एक नियत आय सुनिश्चित हो जाती है।
आज की विज्ञापन विधियों का सामान एवं सेवाओं की बिक्री पर विशिष्ट प्रभाव है। किंतु हानिप्रद उत्पादों को विज्ञापन क्रेताओं पर घातक प्रभाव डालते हैं। अतः लोगों को गलत और भ्रामक विज्ञापनों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए सुरक्षा की जरूरत महसूस होने लगी है। विनाशकारी विज्ञापन के गलत एवं भ्रामक कथन को इस प्रकार विज्ञाप्ति किया जाता है कि यह जनता के लिए लाभकारी एवं उपयोगी प्रतीत होता है।
आज के विज्ञापन की नवीनतम फैशनप्रिय विधि युवा एवं खूबसूरत महिलाओं को विज्ञापन में दिखाना है। शायद यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आज के विज्ञापन में महिलाओं के शरीर का प्रदर्शन अपरिहार्य बन गया है। विज्ञापित वस्तुओं एवं सेवाओं का महिलाओं से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं होता है। विज्ञापन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं आकर्षक पहलू यह है कि युवा एवं खूबसूरत महिला को बाईं ओर प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाता है। शायद इस विधि के पीछे यह विचार रहा होगा कि पाठक अत्यंत सम्मोहक महिला को देखकर आकर्षित होंगे तथा उसके बाद उस पर लिखे संदेश भी पढ़ लेंगे। हिंदी समाचारपत्र आम तौर पर भारतीय और हमारे प्राचीन मूल्यों को बरकरार रखने का स्वांग मात्र करते हैं। अधिक बिकने वाले किसी भी समाचारपत्र को देखेंगे तो आपको मुख्य पृष्ठ पर अर्द्धनग्न मुद्रा से खूबसूरत नायिकाओं की उत्तेजन तस्वीरें मिलेंगी। इस समाचारपत्रों के लिए भारतीय नैतिकता तथा आर्दश निसंदेह पवित्र बातें है किंतु समाचारपत्रों की अच्छी बिक्री तभी संभव है जब आकर्षक लड़कियों की अर्द्धनग्न रंगीन तस्वीरें हों और इसी से समाचारपत्रों को अपनी रोटी के लायक धन की कमाई होती है। अधोवस्त्र से सुसज्जति सुंदरियां आसानी से धन कमा लेती हैं। अतः आदर्श मूल्यों के साथ समझौता करना अपरिहार्य हैं।
इस बात पर आम सहमति है कि उपभोक्तागण वस्तुओं की गुणवत्ता परखने में अक्षम हैं। उनकी इसी कमजोरी का गलत फायदा उठाकर विज्ञापनदाता इस तरह के विज्ञापन देते है कि उपभोक्ता उनके इस जाल से फंसकर संदेहास्पद गुणवत्ता की वस्तुएं खरीद लेते है किंतु इससे एकाधिकार बाजार का सृजन होता है जो मूल्य और गुणवत्ता की दृष्टि से मुक्त प्रतिस्पर्धा में आता है। इस बैंरड एकाधिकार से सम्मोहित होकर उपभोक्ता बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद खरीदने से इंकार कर देते है तथा कम गुणवत्ता वाली वस्तुओं को ऊंचे मूल्य पर खरीदने को तैयार हो जाते हैं। इससे उपभोक्तओं द्वारा अनावश्यक मांग बढ़ा दी जाती है चाहे मूल्य उनके लिए वहनीय हों या अवहनीय हों।
विज्ञापनों के दुरूपयोग से एक और खतरा यह है कि वस्तुओं के निर्माण से अधिक व्यय विज्ञापनों पर किया जाता है। इसके पीछे एकमात्र धारणा यह है कि विज्ञापन पर अधिक धन व्यय करके इसके लिए व्यापक बाजार बनाया जा सकता है। यह धारणा निस्संदेह सत्य है। किंतु इसके भी दो दुष्परिणाम हैं। एक तो यह कि वस्तु का मूल्य वास्तविक मूल्य से अधिक होगादूसरे इसकी गुणवत्ता निम्न स्तर की होगी। इसका कारण यह है कि विज्ञापन में काफी खर्च होता है। विज्ञापन में लगाई गई राशि के कारण वस्तुओं की लागत एवं मूल्य बढ़ जाते हैं। यदि विज्ञापन के व्यय की भरपाई के लिए मूल्य में वृद्धि नहीं होती है तो वस्तुओं के निर्माण में सस्ती एवं दोयम स्तर के पदार्थों का उपयोग ही एकमात्र विकल्प बचता है। किसी भी परिस्थिति मेंअत्यधिक विज्ञापन लोगों के लिए हानिकारक हैं। व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के युग में जब कई लोग वस्तुओं का उत्पादन करते है तो इन दोनों बुराइयों का होना अवश्यम्भावी हैं।
किंतु विज्ञापनों की इन बुराइयों का यह अर्थ कतई नहीं है कि विज्ञापन बुरी चीज है। किसी चीज का बुराई का अर्थ यह नहीं है कि वह महत्वहीन एवं अनुपयोगी है। हमें विज्ञापन का प्रयोग जनता को केवल उपलब्ध उत्पादों की जानकारी दिलाने के लिए करना चाहिए। विज्ञापन का उद्देश्य जन-सेवा होना चाहिए न कि आत्म-सेवा। यदि विज्ञापनों में ऐसी बातें हों तो ये उत्पादकों और उपभोक्ताओं के लिए समान रूप से लाभकारी होंगे। यदि उत्पादक और वितरक जनसेवा के उद्देश्य से कार्य करें तो पेशेवर नैतिकता के ह्रास का कोई खतरा नहीं होगा। खतरा तो आम लोगों की वस्तुओं की कीमत पर निजी लाभ कमाने के कारण उत्पन्न होता है।