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Monday, April 30, 2012

हमारा कर्म हमारे भाग्य और हमारा भाग्य हमारे कर्म का निर्धारण करता है


हमारा कर्म हमारे भाग्य और हमारा भाग्य हमारे कर्म का निर्धारण करता है
विश्व के सभी महान् अध्यापक, संत और व्यक्ति के इस कथन में एकमत है कि हमारा कर्म हमारे भाग्य का निर्धारण करता है। अपने व्यावहारिक अनुभव से उन्होंने उपरोक्त कथन की सच्चाई को महसूस किया था। यदि हम पुरूषों और महिलाओं के जीवन और संघर्ष के बारे में अध्ययन करते हैं जिन्होंने समय रूपी बालू पर अपने पदचिंह छोडे़ हैं, तो हम पाएंगे कि इसे महान आत्मा वाले लोग असाधारण मानव नहीं थे। ये लोग भी हमारी ही तरह मांस और रक्त के पुरूष और महिला थे। किंतु उन्होंने केवल अपनी बहादुरी, वीरोचित कर्म, उत्साह, उमंग और कठिन परिश्रम के जरिए ही असंभव को प्राप्त किया। अशोक, कृष्ण देव राय, अकबर, शिवाजी, महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद ने महान् कार्य किए और अपने महान् कार्य के जरिए ही भारत और विश्व के इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करवा दिया।
वर्तमान में हम जिस स्थित में स्वयं को उलझा हुआ पाते हैं उसके लिए कोई दूसरा नहीं बल्कि हम स्वयं जिम्मेवार हैं। गौरव या बदनामी हमारे अच्छे कृत्यों की पराकष्ठा है। समाज में हमारी स्थिति इस संसार के किए गए कार्यों के अनुसार निर्धारित होती है। हमारे द्वारा किए गए कार्य हमें समाज में बदनाम करते हैं या यश दिलाते है। यदि हमारे अच्छे कर्म हमारे भौंह के पसीने से लथपथ होते हैं तो हमें सातवें आसमान को छूने और पूर्ण संतुष्टि के लिए अपने जीवन में संजोए लक्ष्य को प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता है। किंतु यदि हमारे कर्म अधम होते हैं और यदि हमारे दिमाग और दिल में बुरी मनोवृत्ति होती है तो ठीक इसके विपरीत होगा। किस की भी बदनामी दूसरों के कर्मों से नहीं बल्कि अपने कर्मों से होती है। इसलिए ठीक ही कहा गया है कि हमें जीवन से वही मिलता है जो हम इसे देते हैं।
यदि हम जीवन में सही रास्ता चुनते है और लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कठिन परिश्रम करते हुए इस रास्ते पर आगे बढ़ते रहें तथा अच्छे कार्य करते रहें तो हमें सकारात्मक एवं अच्छे परिणाम मिलेंगे। किंतु यदि हम जीवन में गलत रास्ते का अनुसरण करते हैं तथा बुरे कार्य करते हैं और हमारा लक्ष्य अनर्थकारी होगा तथा प्रवृत्ति स्वार्थी होने पर इसके परिणाम हमारे और हमारे सहकर्मियों और अनुयायियों के लिए काफी भयावह होंगे। जो व्यक्ति बिना सोच-समझे हमेशा गलत कार्य करते हैं या जो अपराध करने से नहीं हिचकिचाते हैं उन्हें जल्दी ही इन कर्मों की भारी कीमत चुकानी होगी। ऐसे दुर्दान्त अपराधी झूठ बोलने वाली मशीन परीक्षण से बच सकते हैं तथा कुछ समय के लिए संपूर्ण विश्व को मूर्ख बना सकते हैं किंतु उनकी करनी का हिसाब-किताब जल्दी ही हो जाएगा। अंततः बुरे कार्य उन अपराधियों को शांति की जिंदगी नहीं जीने देते है। वह मौत के बाद भी शांति नहीं पाता है। मृत्यु के बाद नरक का दहकता द्वारा ही उसका स्वागत करेगा। इस संबंध में एक महान् व्यक्ति की यह उक्ति कि जो बुरे कार्यों से अछूता है, उसे कोई सजा नहीं मिलती है, हमेशा याद रखने की सलाह दी जाती है। जैसा आप बोयेंगे वैसा ही काटेंगेउक्ति को बार-बार दुहराना चाहिए। इससे शाश्वत सत्य को मूर्तरूप प्रदान होता है जिससे हमारे कर्म हमारा मार्गदर्शन करते हैं तथा हम अपने कर्म का निर्धारण करते हैं।
यदि हम जीवन में प्रगति और समृद्धि प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें सर्वप्रथम सही रास्ता चुनना चाहिए और तब सही दिशा में इस पर ईमानदारीपूर्वक चलना चाहिए। हम बिना संघर्ष के कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते है तथा हम जब तक निहित स्वार्थों और अधम विचारों से ऊपर नहीं उठेंगे तब तक कोई भी सत्कर्म नहीं कर सकेंगे। कर्म का अर्थ कार्य से है कर्म का अर्थ संघर्ष लगातार एवं लंबा संघर्ष है।
हमारी वास्तविक खुशियां हमारे कार्यों या उनसे अर्जित धन पर निर्भर करती हैं। अपितु यह हमारे समर्पण एवं एकाग्रचितता पर निर्भर करती हैं। वर्तमान ही भविष्य की कुंजी है। यदि हम अपना भविष्य उज्जवल बनाना चाहते हैं तो हमें अपने जीवन की वर्तमान उन सभी चीजों को त्यागने के लिए तैयार रहना चाहिए जो हमारे लक्ष्यों की प्राप्ति में बाधक हैं। हमारी लक्ष्यप्राप्ति इस तर्क पर आधरित है कि यदि हम एक तरफ कुछ पाना चाहते हैं तो इसके बदले में दूसरी तरफ हमें कुछ खोना या त्यागना होगा।
कर्म हमारे भावी जीवन और अगले जन्म का निर्धारण करते हैं। इस कारण ही हम जो आज वह पिछले कर्मों का प्रतिफल है और हमारा आने वाला कल वर्तमान के सत्कर्म या दुष्कर्म पर निर्भर है। यह विवादास्पद विषय है, ‘हमारे कार्यों का निर्धारण कौन करता है?’’ इसका साधारण उत्तर है, ‘कोई और नहीं बल्कि हम स्वयं।इस बात की पुष्टि एक लोकप्रिय इटली कहावत द्वारा होती है जिसमें कहा गया है कि प्रत्येक आदमी अपने भाग्य का निर्माता होता है।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि एक सत्कर्म लोगों के मस्तिष्क में रहने वाले और अमिट छाप छोड़ने वाले हजारों शब्दों के योग्य है। इसलिए यह शाश्वत सत्य है कि कर्मों की आवाज शब्दों से अधिक होती है। जहां लाखों शब्द आपको विपत्ति में समझाने-बुझाने और आप पर विजय प्राप्त करने में असफल हो जाते है, वहीं एक अकेला सत्कर्म इस विपत्ति में मरहम की तरह कार्य करता है जिसका प्रभाव हमेशा रहता है। हम सत्कर्म या दुष्कर्म से इस संसार में नरक को स्वर्ग या स्वर्ग को नरक में बदल सकते हैं। हमें अपने सत्कर्मों, त्याग और कठिन कार्यों से ही वैसा बन सकते है, जैसा हम बनना चाहते हैं। हम केवल अपने कर्मों से ही अपना भविष्य संवार या बिगाड़ सकते हैं। हमें इस संसार को अधिक से अधिक एवं सर्वोत्तम बातें प्रदत्त करनी चाहिए। संसार के सभी धर्म एक स्वर में भावी जीवन को सजाने-संवारने का उपदेश देते हैं। जैसा हम करेंगे, वैसा ही हमें फल मिलेगा। व्यक्ति थे पारितोषिक या उसकी सजा के मेधावी होने या उसको बुरे कर्मों से आंका जाता है।

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