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Tuesday, November 29, 2011

वृद्धावस्था की समस्याएं


वृद्धावस्था की समस्याएं

आज का मानव पूर्णतः मशीन में तबदील हो गया है जिसमें लोगों की दिनचर्या सुबह से आरंभ होकर देर रात तक चलती है। जो अपने लक्ष्य को पूरा करने पर ही रूकती है। यह अच्छी बात है किंतु, ऐसा करने में हम अपने नैतिक कर्तव्यों की बलि चढ़ते जा रहे हैं। जिसे निभाने की हमसे लगातर आशाएं की जाती है। इन आशाओं और नैतिक कर्तव्यों पर हम लोग खरे नहीं उतर रहे हैं। ये सभी जानते हैं कि, उम्र के एक पड़ाव के बाद वृद्धावस्था निश्चित रूप से आनी है। जो परेशान करती है और समय के साथ-साथ स्थिति बदतर होने लगती है।

यह बात सही है कि औद्योगीकरण एवं पश्चिमी सभ्यता के कारण जो परिवार जुड़े हुए थे अब उनमें एक बिखराव देखा जा सकता है। आज की नवयुवा पीढ़ी संयुक्त परिवार में रहना कम पसंद करने लगी है। जिससे वृद्ध व्यक्तियों को समस्याओं से जूझना पड़ रहा है और उनका जीवन वास्तव में कष्टकारी हो जाता है। यह एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें वृद्ध व्यक्ति अपने बच्चों से शारीरिक, नैतिक, वित्तीय एवं भावनात्मक सहारे की जरूरत महसूस करते हैं। परंतु युवा पीढ़ी अपने माता-पिता को एक बोझ समझकर हमेशा उनकी उपेक्षा करते रहते हैं। यहां तक कि घर का कोई भी सदस्य उनकी ओर ध्यान भी नहीं देता है एवं हर बात पर उनका तिस्कार किया जाता है। वृद्ध व्यक्तियों के प्रति उनका रवैया अवमाननापूर्ण और असम्मानजनक होता है। जब भी कोई ऐसी बात होती है तो वृद्ध व्यक्ति निराशा के सागर में डूब जाते हैं। यदि किसी अच्छे कार्य के लिए वो परामर्श भी देते हैं तो उन्हें ऊंची आवाज में बोलकर अपमानित किया जाता है जिससे वो कभी-कभी कुंठाग्रस्त हो जाते हैं। इस अवस्था में उन्हें अपने सगे-संबंधियों से प्रेम भावना की जरूरत होती है। किंतु युवा पीढ़ी उनसे दूर रहना शुरू कर देती है। जिससे वे अंदरूनी आघात से टूट जाते हैं कभी-कभी अपने आपको खुद बोझ महसूस करने लगते हैं।

 बात यहां भी खत्म नहीं होती, उनके बच्चे चाव से भर पेट भोजन करते हैं और वे लोग उन्हें दो वक्त की रोटी भी देना भूल जाते हैं। वो तो अपने ही द्वारा बनाया गया घर में पराये हो जाते है जिसे उन्होंने अपनी जीविका में से काट-काट बनाया होता है। उसी घर के एक कौने में पडे़ रहते हैं। उनके द्वारा कमायी गयी संपत्ति उनके बेटों या उत्तराधिकारियों द्वारा आपस में बांट ली जाती है। और, वे लोग उनके यथाशीघ्र मरने का इंजतार करते हैं। ऐसे लोगों की स्थिति और भी दयनीय होती है जिनके आय का स्रोत समाप्त हो चुका होता है।

वृद्ध व्यक्तियों के प्रति ऐसी प्रवृत्ति का कारण समाज में बढ़ता भौतिकवाद है, आधुनिक परिवार में हर सदस्य प्रत्येक सदस्य से आय की अपेक्षा करता है, जिससे परिवारिक जीवन सुखद एवं आरामदेय हो। और यदि नहीं कमाते है तो परिवार पर बोझ माने जाते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि हम भी एक दिन वृद्ध होंगे और हमारे बच्चे भी हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे तो हमने अपने वृद्धों के प्रति किया। इसलिए हमें हमारी प्रवृत्ति को सकारात्मक बनाने की जरूरत है। नहीं तो जब हमारे बच्चे हमारे साथ करें तो हमें भी अपने मां-बाप के दिन याद आयें कि हमने क्या-क्या किया था अपने बुर्जुगों के साथ।

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