सरोकार की मीडिया

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Monday, August 29, 2011

कैसी सरकार है, और एक और जंग का ऐलान करें

कैसी सरकार है जो अन्‍ना के अनशन पर गाहे बजाए आखिर मान गई. उसको इतना भी खयाल नहीं है उसे महिला का जो पिछले कई वर्षों से अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रही है. हां मैं बात ईराम शर्मिला की ही कर रहा हूं. न तो किसी को इस बात का ख्‍याल आया कि उसके बारे में भी सोचा जाए. एक भी की जमात के शामिल तो हो जाते हैं, नहीं सोचते उसके बारे में. सही बात है किसी को क्‍या फर्क पड़ता है, जब अपने पर बितेगी तब समझ में आएगी.


मैं तो अन्‍ना से भी एक बात कहना चाहूंगा कि किसी ने नहीं सोचा तो आप तो सोच सकते थे. पर आपने भी कभी नहीं सोचा कि पिछले कई सालों से अनशन पर बैठी ईरोम शर्मिल की बात भी सुनी जाए, उसको भी अधिकार मिले.

ये तो नइंसाफी है शायद शार्मिला अन्‍ना नहीं है एक आम महिला जो हक की लड़ाई लड़ रहीं है. वैसे तो सदियों से महिलाओं का शोषण, उनके अधिकारों को दोहन होता आया है; और आज के वर्तमान परिप्रेक्ष्‍य में भी हो रहा है. कितने भी कानून पारित कर लिए जाए, सभी कानून इस समाज के आगे बौने साबित हो चुके है. और मानवाधिकार व महिला आयोग चुप है सरकार के आगे.

मैं अपील कर रहा हूं भारत की जनता से कि जिस तरह आप सब ने अन्‍ना हजारे का साथ दिया, वैसे ही ईरोम शर्मिला का साथ दें, और सरकार को झुकने के लिए और उनको उनका अधिकार दिलाने के लिए आओं एक और जंग का ऐलान करें

शायद लोग अब अन्‍ना अन्‍ना चिल्‍लाना बंद कर देगें

बहुत दिनों से कुछ नहीं लिखा, क्‍यों‍कि सभी की जुबान पर, चाहे आम आदमी हो, मीडिया हो या फिर सरकार, सभी अन्‍ना अन्‍ना चिल्‍ला रहे थे; कोई पक्ष में था तो कोई विपक्ष में, पर नाम तो अन्‍ना का ही लिया जा रहा था. सभी अन्‍ना की जमात में अपने आपको शामिल करने की कोशिश में लगे पडे थे, अब शायद शांत हो चुके होगें. लोकपाल बिल पास होने की संभावना बनने लगी है. अन्‍ना की शर्तों को मान लिया गया है.


मेरी एक बात समझ में अभी तक नहीं आई कि लोकपाल बिल पास हो जाने से भ्रष्‍टाचार पूर्ण रूप से समाप्‍त हो जाएगा, जो अपनी जडें बरगद के पेड की तरह इस धरती में धसाये हुए बडी तेजी से बढता जा रहा है. क्‍या ये खत्‍म हो सकता है. यदि हम सब अपने गिरेवान में झांककर देखे तो कभी न कभी जीवन में हमने भी किसी न किसी रूप में भ्रष्‍टाचार किया है या उसे बढावा दिया है. सोचो कभी ट्रेन में सीट के लिए टीसी को रूपये देना, कभी अपने बच्‍चों के एडमीशन के लिए, कभी बिल कम करवाने केलिए, कभी केस जीतने या एफआईआर दर्ज न करने के लिए, साथ तो दिया है. फिर क्‍यों चिल्‍ला रहे है. आखिर लत तो हमने ही लगाई है इसे बढाने के लिये. यह भ्रष्‍टाचार हमारी रग रग में समा चुका है और इतनी आसानी से नहीं जाने वाला. चाहे लोकपाल बिल पास हो जाए या फिर अन्‍ना की तरह कई और अन्‍ना खडे हो जाए.

मेरी मानों तो सारे नेताओं को इस देश से निकाल दो, फिर देखों भ्रष्‍टाचार स्‍वयं ही खत्‍म हो जाएगा. क्‍योंकि सारे फसाद की जड ये नेता ही है