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Saturday, June 18, 2011

सार्वजनिक चुम्बन को मान्यता मिलनी चाहिए

चुम्बन को प्यार का प्रतीक माना जाता है. वैदिक काल से वर्तमान परिदृश्य में चुम्बन को विभिन्न रूपों में परिभाषित किया गया है.वहीं वात्स्‍लयान ने कामसूत्र में तीन तरह के चुम्बन की बात कही हैा जहां प्यार, मुहब्बत की बात होती है तो हम चुम्बन को कैसे भूल सकते हैं. चुम्बन प्यार की कोमल भावनाओं को प्रदर्शित करने का माध्यम ही नही बल्कि, रिश्तों में मजबूती और मधुरता भी लाता है. ऐसा नही है कि चुम्बन का नाम सुनते ही पति-पत्नी और प्रेमी-प्रेमिका का ही ख्याल मन में आये बल्कि, यह किसी भी रिश्ते में प्यार प्रदर्शित के लिए जरूरी है. मां और बच्चों के बीच प्रेम, भाई-बहन के बीच में प्रेम, सुरक्षा की भावना प्रदर्शित करने का काम करता है.

वैसे चुम्बन को हमारी संस्कृति स्वीकार्य नहीं करती. और सार्वजनिक चुम्बन को तो कतैयी नहीं. सदियों से लुका-छिपी की ही चूमा-चाटी चली आ रही है. सार्वजनिकता का इसमें कोई स्थान नहीं है. परन्तु पाश्चात्य संस्कृति ने इसे पूर्ण रूप से अपने परिवेश में अपना लिया है. एक-दूसरे को इज्जत देने, अलविदा कहने, शुभकामना देने और प्रेम दर्शन के लिए सार्वजनिक तौर पर प्रयोग किया जाता है. 28 अप्रैल के दिन ब्राजील कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में वकायदा चुम्बन समारोह का आयोजन होता है. इसमें शामिल होने वाले युगल एक-दूसरे को सार्वजनिक रूप से चूमकर अपने प्यार का इजहार करते है. वहीं भारत में इसे अपराध के रूप में देखा जाता है. इसके लिए संविधान में भारतीय दंड संहिता की धारा294 में कहा गया है कि व्यक्ति दूसरों को नजर अंदाज करते हुए सार्वजनिक स्थाडनों पर किसी अश्लीसल हरकत में लिप्ता पाया जाता है(इसमें चुम्बन भी शामिल है) सजा का हकदार होगा. इस पर वरिष्ठ् एडवोकेट के.पी.एस. तुलसी कहते हैं दो वयस्कों की परस्पर रजामंदी से लिया गया चुम्बन अपराध की श्रेणी में नही गि‍ना जा सकता. परन्तु ऐसा नहीं है. यदि आप सार्वजनिक रूप से चुम्बन करते पाये जाते है तो पुलिस या आम लोगों द्वारा सजा के भागीदार बनाये जा सकते हैं. जिससे व्येक्ति की स्वतंत्रता का हनन होता है. मानवाधिकार को संज्ञान में लाते हुए सार्वजनिक रूप से लगी पाबंदी पर रोक हटनी चाहिए. वयस्क लोगों की सहमति से लिया गया चुम्बलन को सही, रजामंदी के विपरीत हो तो गलत.

युवा पीढी द्वारा सार्वजनिक रूप से किए जाने वाले प्रेम इजहार का हमें अपना चाहिए और समाज में समानता लाने तथा सभ्ये समाज के निर्माण को ध्यान में रखते हुए बरसो से थोपी जा रही सभ्याता को तोडकर सार्वजनिक चुम्बोन को मान्यता मिलनी चाहिए. जिससे व्यकित की स्वतंत्रता बाधित न हो, और समाज में प्रेम की पृष्ठमभूमि तैयार की जा सकें, जो धीरे-धीरे हमारे समाज से खत्म होती जाती है.

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