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Sunday, April 10, 2011

क्या विकास के लिए मानवाधिकार को दरकिनार कर देना चाहिए

आज अन्ना ने गुजरात के मुख्य मंत्री का समर्थन किया. उनके द्वारा किये गये विकास की सहरना भी की. परन्तुी क्या विकास के लिए मानवाधिकार को दरकिनार कर देना चाहिए. जिस तरह से २७ फरवरी को हुए गोधरा कांड के बाद एक नरसंहार की घटना को अंजाम दिया गया, क्याए ये ही विकास है


मीडिया ने जब गुजरात दंगों की खबरों को प्रकाशित करना शुरू किया तो मुख्यमंत्री का कहना था कि संदेश और गुजराती समाचार पत्रों ने जो भी खबरें प्रकाशित की है वो सारी झूठी और खतरनाक अफवाहें फैलाने की है जिससे माहौल बिगड् गया हैा वही गुजरात सरकार ने उस सभी समाचार पत्रों की कतरन की हिस्टै लिस्ट बनाई जिन जिन समाचार पत्रों में दंगों से संबंधित खबरें प्रकाशित की गई थी. और तो और कुछ न्यूलज चैनल के प्रकाशन पर भी रोक लगा दी गई.

इससे एक बात तो साबित होती है कि गोधरा कांड के बाद हुए सम्प्रादायिक दंगों के पीछे किसी षडयंत्र का हाथ है तभी तो सरकार ने मीडिया पर पूर्ण रूप से रोक लगाने का प्रयास करती रही. दंगों में २००० से भी ज्यादा लोग मारे गये और सरकार विकास की बात करती हैा जन समूह का नरसंहार होता रहा. यानि मानव के अधिकारों का हनन होता रहा और सरकार विकास की बात कर रही है. वैसे कानूनी प्रक्रिया बहुत ही लंबी चलती है तभी तो २७ फरवरी २००२ से लंबित मामला १मार्च २०११ को समाप्त हुए. इस मामले में ९४ लोग अभियुक्तब थे जिसमेंसे ६३ को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया और ३१ लोगों को दोषी करार दिया. इन ३१ आरोपियोंमें से ११ को फांसी तथा २० को उम्रकैद की सजा दी गई्.

अन्ना हजारे के द्वारा मुख्योमंत्री का समर्थन करना यह साबित करता है कि सरकार आदिवासियों को अनके मानव अधिकार से वंचित रखना चाहती है तभी तो विकास के नाम पर मानव अधिकार का हनन होता चला आ रहा हैा विकास के नाम पर पूंजीवादी परंपरा का तो विकास हुआ है और पूंजीवाद सरकार पर हावी भी हो गया है पर मानवाधिकार को दरकिनार करके. मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि ऐसा कौन सा विकास है जो मानवाधिकार को दरकिनार करके हासिल किया जा सकता हैा

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