सरोकार की मीडिया

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Friday, June 25, 2010

तो सारा हिंदुस्तान और पाकिस्तान एक कर जाउंगा

अरे दुश्मरनों जरा तो शर्म करो

हमारे भारत पर बुरी नजर ना डालो

यहां रहते है देश के दिवाने

जिनके खून से हम लिखते आजादी के अफसाने

सीमा पार लेके हाथ में बंदूक

हम ओ दुश्मरन को ढूंढ रहे है

अमेरिका, चीन और पाकिस्ता न दूर ही सही

जापान, रशिया इटली और जर्मनी भी नहीं

बिना किसी के मदद से हम जानते है करना हमारी रक्षा

अभी तो हमने हमारे दुश्मदनो को बक्शाी

अगर जान जाए हमारे देश का नशा

ऐसी देगे हम उनको शिक्षा

की मांगते फिरेगें गांव गांव भिक्षा

हमारे देश के सैनिको में उस सावरकर का खून है

जो अंग्रेजो का काला पानी तोड् कर भागा था

हमारे देश के सैनिको में नेताजी का खून है

जिस की ले¶ट राईट सुनक अंग्रेजो के कान के परदे फट गए थें

हमारे सैनिको में उस गांधी का खून है

जिस की सुखी अहिंसा की लकडी को डरकर

अंग्रेज भी देश छेडकर भागे थे

हमारे देश के सैनिको में उस अम्बेंडकर का खून है

जिसकी कलम शाही से इतिहास के पन्नेम रंगे थे

अरे ओ दुश्म नो जरा तो शर्म करे ये फुले और शाहु का देश है

यहा पर अहिंसा और शांति का संदेश देने वाला बुदध भी है

जिसने युदध को त्याशगा था

ये हमारे भारतवासियों की खून की शाही है

इससे कभी मत खेलना

और इतना जरूर जान ले की

इस लिखने वाला भीम का गदा भी इस देश में है

अगर देश के आजादी के लिए भगत सिंह फांसी पर लटक सकते है

गांधी की हत्या की जा सकती है और अम्बेसडकर को मौत आ सकती है

तो हम अपना सर इस लडाई में कटा भी दे

मगर दुश्म नो की सिरो की माला पहनकर दूसरा अगुंलीमाल भी आ सकता है

असे दुश्म्नो जरा तो शर्म करो अगर हमारा गरम खून यहा है

हमारे गरम खून का इम्तिहान ना लो वर्ना कश्मीूरतो दूर ही सही

और एकता चाहते है तो सारा हिंदुस्तान और पाकिस्तान एक कर जाउंगा


                                                                                             राजेश मून, वर्धा

कल ये बारीश भी हो ना हो

आज एक बार सबसे मुस्करा के बात करो


बिताये हुये पलों को साथ साथ याद करो

क्या पता कल चेहरे को मुस्कुराना

और दिमाग को पुराने पल याद हो ना हो

आज एक बार फ़िर पुरानी बातो मे खो जाओ

आज एक बार फ़िर पुरानी यादो मे डूब जाओ

क्या पता कल ये बाते

और ये यादें हो ना हो

आज एक बार मन्दिर हो आओ

पुजा कर के प्रसाद भी चढाओ

क्या पता कल के कलयुग मे

भगवान पर लोगों की श्रद्धा हो ना हो

बारीश मे आज खुब भीगो

झुम झुम के बचपन की तरह नाचो

क्या पता बीते हुये बचपन की तरह

कल ये बारीश भी हो ना हो

Tuesday, June 1, 2010

कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ

कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ

या दिल का सारा प्यार लिखूँ ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

कुछ अपनो के ज़ाज़बात लिखू या सापनो की सौगात लिखूँ ॰॰॰॰॰॰

मै खिलता सुरज आज लिखू या चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ ॰॰॰॰॰॰

वो डूबते सुरज को देखूँ या उगते फूल की सान्स लिखूँ

वो पल मे बीते साल लिखू या सादियो लम्बी रात लिखूँ

मै तुमको अपने पास लिखू या दूरी का ऐहसास लिखूँ

मै अन्धे के दिन मै झाँकू या आँन्खो की मै रात लिखूँ

मीरा की पायल को सुन लुँ या गौतम की मुस्कान लिखूँ

बचपन मे बच्चौ से खेलूँ या जीवन की ढलती शाम लिखूँ

सागर सा गहरा हो जाॐ या अम्बर का विस्तार लिखूँ

वो पहली -पाहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँ

सावन कि बारिश मेँ भीगूँ या आन्खो की मै बरसात लिखूँ

गीता का अॅजुन हो जाॐ या लकां रावन राम लिखूँ॰॰॰॰॰

मै हिन्दू मुस्लिम हो जाॐ या बेबस ईन्सान लिखूँ॰॰॰॰॰

मै ऎक ही मजहब को जी लुँ ॰॰॰या मजहब की आन्खे चार लिखूँ॰॰॰

कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ

या दिल का सारा प्यार लिखूँ