सरोकार की मीडिया

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Friday, April 30, 2010

जमीं पर "खुदा" है दोस्ती

फूलों सी नाजुक चीज है दोस्ती,

 सुर्ख गुलाब की महक है दोस्ती,

सदा हँसने हँसाने वाला पल है दोस्ती,

दुखों के सागर में एक कश्ती है दोस्ती,

काँटों के दामन में महकता फूल है दोस्ती,

 जिंदगी भर साथ निभाने वाला रिश्ता है दोस्ती ,

रिश्तों की नाजुकता समझाती है दोस्ती,

 रिश्तों में विश्वास दिलाती है दोस्ती,

तन्हाई में सहारा है दोस्ती,

मझधार में किनारा है दोस्ती,

जिंदगी भर जीवन में महकती है दोस्ती,

 किसी-किसी के नसीब में आती है दोस्ती,

हर खुशी हर गम का सहारा है दोस्ती,

हर आँख में बसने वाला नजारा है दोस्ती,

कमी है इस जमीं पर पूजने वालों की
 
वरना इस जमीं पर "खुदा" है दोस्ती

दोस्ती मरते दम तक निभाएंगे

खुदा से क्या मांगू तेरे वास्ते


सदा खुशियों से भरे हों तेरे रास्ते

हंसी तेरे चेहरे पे रहे इस तरह

खुशबू फूल का साथ निभाती है जिस तरह

सुख इतना मिले की तू दुःख को तरसे

पैसा शोहरत इज्ज़त रात दिन बरसे

आसमा हों या ज़मीन हर तरफ तेरा नाम हों

महकती हुई सुबह और लहलहाती शाम हो

तेरी कोशिश को कामयाबी की आदत हो जाये

सारा जग थम जाये तू जब भी जाये

कभी कोई परेशानी तुझे न सताए

रात के अँधेरे में भी तू सदा चमचमाए

दुआ ये मेरी कुबूल हो जाये

खुशियाँ तेरे दर से न जाये

इक छोटी सी अर्जी है मान लेना

हम भी तेरे दोस्त हैं ये जान लेना

खुशियों में चाहे हम याद आए न आए

पर जब भी ज़रूरत पड़े हमारा नाम लेना

इस जहाँ में होंगे तो ज़रूर आएंगे

दोस्ती मरते दम तक निभाएंगे

अपनी तो दुनिया ही दोस्तो से है

बहुत दिन हुए वो तूफ़ान नही आया,


उस हसीं दोस्त का कोई पैगाम नही आया,

सोचा में ही कलाम लिख देता हूँ,

उसे अपना हाल- ए- दिल तमाम लिख देता हूँ,

ज़माना हुआ मुस्कुराए हुए,

आपका हाल सुने... अपना हाल सुनाए हुए,

आज आपकी याद आई तो सोचा आवाज़ दे दूं,

अपने दोस्त की सलामती की कुछ ख़बर तो ले लूं

खुशी भी दोस्तो से है,

गम भी दोस्तो से है,

तकरार भी दोस्तो से है,

प्यार भी दोस्तो से है,

रुठना भी दोस्तो से है,

मनाना भी दोस्तो से है,

बात भी दोस्तो से है,

मिसाल भी दोस्तो से है,

नशा भी दोस्तो से है,

शाम भी दोस्तो से है,

जिन्दगी की शुरुआत भी दोस्तो से है,

जिन्दगी मे मुलाकात भी दोस्तो से है,

मौहब्बत भी दोस्तो से है,

इनायत भी दोस्तो से है,

काम भी दोस्तो से है,

नाम भी दोस्तो से है,

ख्याल भी दोस्तो से है,

अरमान भी दोस्तो से है,

ख्वाब भी दोस्तो से है,

माहौल भी दोस्तो से है,

यादे भी दोस्तो से है,

मुलाकाते भी दोस्तो से है,

सपने भी दोस्तो से है,

अपने भी दोस्तो से है,

या यूं कहो यारो,

अपनी तो दुनिया ही दोस्तो से है

Wednesday, April 28, 2010

इनको ही दोस्त कहते है

उन ही को दोस्त कहते है


जो मुश्किल आसान बनाते है

जो दुश्मन को गिराते है

जो हसते और ह्साते है

उन को ही दोस्त कह्ते है

जो जीत की खुशी मनाते है

जो हार मे साथ बैठ्ते है

जो फिर भी कहना जानते है

उन को भला क्या कह्ते है

उन्ही को दोस्त कह्ते है

जो होते है खजाने हमारे लिये

जो होते है सितारे हमारे लिये

जो प्यार देते है प्यार लेने के लिये

उनको भला क्या कह्ते है

इन्ही को दोस्त कहते है

जिन की कीमत पता चलती है बिछड जाने के बाद

नहीं खरीदा जा सकता उन को पैसे से यार

ये है हमारे लिए खुदा का प्या र

इनको भला क्या कहते है

इनको ही दोस्त कहते है

Tuesday, April 27, 2010

शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं...

जब मैं छोटा था,


शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी...

मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता,

क्या क्या नहीं था वहां,

छत के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,

अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं, फिर भी सब सूना है....

शायद अब दुनिया सिमट रही है......

जब मैं छोटा था,

शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी....

मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो उडा करता था,

वो लम्बी "साइकिल रेस", वो बचपन के खेल,

वो हर शाम थक के चूर हो जाना,

अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है..........

शायद वक्त सिमट रहा है........

जब मैं छोटा था,

शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,

दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना,

वो दोस्तों के घर का खाना, वो लड़किया, वो साथ रोना,

अब भी मेरे कई दोस्त हैं, पर दोस्ती जाने कहाँ है,

जब भी "ट्रेफिक सिग्नल" पे मिलते हैं "हाई" करते हैं,

और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,

शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं...


दोस्ती में..

दोस्ती नाम नहीं सिर्फ़ दोस्तों के साथ रेहने का..


बल्कि दोस्त ही जिन्दगी बन जाते हैं, दोस्ती में..


जरुरत नहीं पडती, दोस्त की तस्वीर की.

देखो जो आईना तो दोस्त नज़र आते हैं, दोस्ती में..


येह तो बहाना है कि मिल नहीं पाये दोस्तों से आज..

दिल पे हाथ रखते ही एहसास उनके हो जाते हैं, दोस्ती में..


नाम की तो जरूरत हई नहीं पडती इस रिश्ते मे कभी..

पूछे नाम अपना ओर, दोस्तॊं का बताते हैं, दोस्ती में..


कौन केहता है कि दोस्त हो सकते हैं जुदा कभी..

दूर रेह्कर भी दोस्त, बिल्कुल करीब नज़र आते हैं, दोस्ती में..


सिर्फ़ भ्रम हे कि दोस्त होते ह अलग-अलग..

दर्द हो इनको ओर, आंसू उनके आते हैं , दोस्ती में.


माना इश्क है खुदा, प्यार करने वालों के लिये "अभी"

पर हम तो अपना सिर झुकाते हैं, दोस्ती में.


ओर एक ही दवा है गम की दुनिया में क्युकि..

भूल के सारे गम, दोस्तों के साथ मुस्कुराते हैं, दोस्ती में

Monday, April 26, 2010

जिन्दगी पीछे छूट जाये


किसी के इतने पास न जा


के दूर जाना खौफ बन जाये

एक कदम पीछे देखने पर

सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये

किसी को इतना अपना न बना कि

उसे खोने का डर लगा रहे

इसी डर के बीच एक दिन ऐसा आये

तू पल-पल खुद को ही खोने लगे

किसी के इतने सपने न देख, के

काली रात भी रंगीली लगे

आंख खुले तो बर्दाशत न हो

जब सपना टूट-टूट कर बिखरने लगे

किसी को इतना प्यार न कर

के बैठे-बैठे आंख नम हो जाये

उसे गर मिले एक दर्द

इध जिन्दगी के दो पल कम हो जाये

किसी के बारे में इतना न सोच

कि सोच का मतलब ही वो बस जाये

भीड़ के बीच भी

लगें तन्हाई से जकड़े गये

किसी को इतना याद न कर

कि जहां देखों वो ही नज़र आये

राह देख-देख कर

कही ऐसा न हो

जिन्दगी पीछे छूट जाये

शहर की इस दौड़ में, दौड़ के करना क्या है

शहर की इस दौड़ में, दौड़ के करना क्या है


जब यहीं जीना है दोस्त, तो फिर मरना क्या है

पहली बारिश में ट्रेन लेट होनी की फि्रक है

भूल गये भीगते हुए टहलना क्या है

सीरियलों के किरदारों का सारा हाल है मालूम

पर मां का हाल पूछने की फुर्सत कहां है

अब रेत पे नंगे पांव टहलते क्यू नहींर्षोर्षो

108 है चैनल, फिर दिल बहलते क्यूं नहींर्षोर्षो

इंटरनेट से दुनियां के तो टच में है

लेकिन पड़ौस में कौन रहता है, जानते तक नहीं

मोबाइल, लैण्डलाइन सब की भरमार है

लेकिन जिगरी दोस्त तक पहुंचे, ऐसा तार कहां है

कब डूबते सूरज को देखा था याद है

कब जाना था, शाम का गुज़रना क्या है

तो दोस्तों शहर की इस दौड़ में, दौड़ के करना क्या है

जब यहीं जीना है, तो फिर मरना क्या है

मोहब्बत ही कोई

मुद्दतों से देखा उनकों, मगर नज़रें न मिला पाये


देखना तो बहुत चाहा, मगर दूर से ही लौट आये

जिन नज़रों को हमने चाहा, उनकी चाहत ही कोई और थी

हमसे था मनोरंजन उनका, मोहब्बत ही कोई और थी।

मुझे साज देती है

जाने किस बात की वो मुझे साज देती है


मेरी हंसती हुई आंखों को रूला देती है

कभी देखूंगा, मांगकर उससे एक दिन

लोग कहते है मांगों तो खुदा देता है

मुद्दतों से अब तो खबर भी नहीं आती उसकी

इस तरह क्या कोई अपनों को भुला देता है

किस तरह बात लिखूं, दिल की उसे

वो अक्सर दोस्तों को मेरे खत पढ़कर सुना देती है

सामने रख के वो चिरागों के, तस्वीर मेरी

अपने कमरों के चिरागों को बुझा देती है

सबसे अलग मेरा नसीब है

जब भी वे मिलती है, एक जख़्म और देती है।

कहीं इन नज़रों में

कहीं इन नज़रों में


तुम्हारा अक्स न देख ले जमाना

इसलिए हमने लोगों से

नज़रें मिलना छोड़ दिया

दिल की धड़कन में छिपे हो तुम

ये जान न ले कोई

इसलिए हमने दिल है हमारे सीने में

यह बताना छोड़ दिया

तुम्हारी याद तन्हाई में रूलाती है हमें

यह कह न सके कोई

इसलिए आंसु बहाना छोड़ दिया

दर्द-दे-मोहोब्बत के सिवा कोई और

दर्द छू सके न हमें

इसलिए हमने उन जख्मों को

दिखाना छोड़ दिया

तुम्हारे बगैर जीना क्या

तुम्हारे बगैर जीना क्या


जीने को ख्बाव भी नहीं देख सकता

सासों के बिना मैं, कुछ पल जी सकता हंू

लेकिन तुम्हारे बिना नहीं।

तुम हां तुम, वो पहली लड़की हो

जिसें मैं जिन्दगी से बढ़कर

चाहने लगा हूं , मेरा आज

मेरा कल, मेरे दिन, मेरे पल

सिर्फ तुम्हारे दम से है

मेरी पूजा में, मेरी दुआओं में

मेरी खामोिशयों में, मेरी सदाओं में

सिर्फ तुम हो, सिर्फ तुम

तारे टूट जायेंगे, चान्द बुझ जायेगा

वक्त यही ठहर जायेगा, लेकिन उम्मीद की

आख़री किरण तक मैं

तुम्हारा इन्तजार करूगां

हां इन्तजार करूगां।

मुझकों प्यार करेंगी

तेरी यादों के साए में दो पल यूं गुजार लू कि आप की याद कभी न मुझकों रूलायें। आप मुझें इस तरह मिलें जैसे कोई व्यक्ति अपने जीवन से प्रेम करता हैं, मैं उसी तरह आप से प्रेम करता हंू। मैं चाह कर भी आपको भून न सका। कोई भला अपने पहले प्यार को यूं भूला सकता है। मैं तो यह चाहता हंू, कि आप को मेरी याद आये या न आये, पर में इतना कर सकता हंू कि तेरी यादों को अपने सीने से लगाकर, दिन-रात बस आपको याद करू।


मैं सोचता हंू कभी तो आप, मुझकों प्यार करेंगी।

लिख के कागज़ पे मेरा नाम

लिख के कागज़ पे मेरा नाम


मिटाते क्यों हो

हम से इकरार करो

और प्यार छुपाते क्यो हो

क्या जरूरत थी

मेरी जिन्दगी में आने की

आ गये हो तो मुझें

छोड़ कर जाते क्यो हो

बाद मरने के

तुम साथ थे रहने वाले

फिर मेरे जीते जी

दामन को बचाते क्यो हो

लिख के कागज़ पे मेरा नाम

मैंने देखी है मौत

मैंने देखी है मौत,
 पाप और पंक की भी


मैं नहीं चाहता, कोई स्त्री

बिखर जाए टुकड़ों में

उसे फान्दना न पड़ें इतने कंटीले तार

और सिर्फ अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए

किसी और औरत को लांघना न पड़े

यह गहन अख्य

उसके पीछे न पड़ जाए, कोई अरना भैंसा

न निकलना पड़ें, उसे किसी

पुरूश की गुफा से लहुलुहान

लड़कियां मांओं जैसा मुकद्दर क्यूं रखती है

लड़कियां मांओं जैसा मुकद्दर क्यूं रखती है


तन सहारा और आंख समुन्दर क्यूं रखती है

औरतें अपने दु:ख की विरासत किसको देगी

सन्दूकां में बन्द यह जेवर क्यूं रखती हैं।

औरत एक धोखा अखण्ड सत्य


कोई लड़की किसी अंजान लड़के से इतना प्यार कैसे करने लगती है कि वह अपना सब कुछ प्यार पर लुटा देता है। क्या इसमें लड़कों का ही हाथ होता है, कि वह लड़की को प्यार के जाल में फसाकर उसके साथ शारीरिक सम्बंध स्िाापित कर या बना लेते हैं।

ये लड़कियां, लड़कों में ऐसा क्या देख लेती है कि वह अपनी व अपने मां-बाप की इज्जत ताक पर रखकर सब कुछ लुटा देती है, बाद में पछतावें के सिवाह कुछ नहीं बचता। ये लड़कियां समय के साथ मानसिक तौर पर असहाय महसूस करने लगती हैं। इन लड़कियों के शादी के बाद कुछ घर ही बच पाते हैं अधिकाश घर इसी वजह से टूट जाते हैं, कि मेरी पत्नी का शादी से पहले किसी दूसरे के साथ सम्बंध तो नहीं था, पता नहीं अब भी है के नहीं।

जो लड़के- लड़कियां घर से दूर पढ़ाई करते है वह किसी न किसी के संपर्क में जरूर आते हैं, और प्यार के बाद या प्यार के नाम पर सेक्सर्षोर्षो

शायद लड़कियां प्यार की भूखी होती है तभी लड़कों के स्नेहभाव, कामों में मदद व परेशारियों में साथ देने के चलते, उसे सब कुछ सौंफ देती हैं, क्योंकि लड़कियां उसे प्यार समझ लेती है। परन्तु वह प्यार नहीं होता, यह केवल एक विपरीत लिंग के प्रति झुकाव होता है।

कुछ भी कहें चाणक्य ने सही कहा है कि पुरूश की तुलना में औरत में आठ गुना सेक्स ज्यादा होता है। इस सेक्स के उवाल को कम करने के लिए शादी से पहले, और शादी के बाद ............. करती हैं।

नहीं तो कोई लड़की अपना सब कुछ किसी अल्पजान लड़के को कैसे सौप देती है। इस बारे में शोध करना पड़ेगा, तब कहीं इसका समाधान व प्रश्नों के उत्तर सूचारू रूप से सामने आ सकेंगे।

इनमें भी लड़कियों के मां-बाप कहीं न कहीं दोशी जरूर है जो वक्त रहते उनकी शादी नहीं करते। लड़कियों की शादी 18-20 साल की उम्र में कर ही देनी चाहिए, हर किसी को उम्र के साथ-साथ शारीरिक जरूरतों को भी पूरा करने की इच्छा जािग्रत होती है। वक्त रहते शादी हो जाए तो ठीक, नहीं तो ..........र्षोर्षो

आज बहुत-सी लड़कियां 18-20 साल की उम्र में शादी नहीं करना चाहती, वो अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है, इस कारण से इनके मां-बाप इन्हें पढ़ने से नहीं रोकते। पर यह लड़कियां पढ़ाई के नाम पर, पढ़ाई नहीं करती बल्कि, पढ़ाई के साथ अपनी शारीरिक जरूरतों को भी पूरा करती रहती है, तभी तो मां-बाप के कहने पर लड़कियां शादी करने से साफ मना या अभी पढ़ रही हंू कह कर टाल देती हैं। मां-बाप की बात को लड़कियों को तब एहसास होता है जब यह सब कुछ लुटा देती हैं, तब यह सोचती है कि माता-पिता की बात मान ली होती, तो यह दिन न देखना पड़ता। यहां एक कहावत ठीक बैठती है कि अब पछतायें होत क्या, जब चिड़ियां चुग गई खेत।

आज लड़कियां-लड़कों से कंधा मिलाकर जरूर चल रही है पर वह लड़कों के पद चिन्हों पर चलने लगी है तभी तो अपनी तरक्की व शारीरिक जरूरतों की पूर्ति के लिए कुछ भी करने लगी है।

अब शायद औरत विश्वास के पात्र नहीं रहीं, उसको पहले समझा जा सकता था, परन्तु अब नहीं, क्योंकि जब बाहमा जी औरत को बनाने के बाद नहीं समझ सकें तो हम इंसान किस खेत की मूली है। औरत अब सिर्फ और सिर्फ धोखा देने लगी है।

यह एक अखण्ड सत्य है।

मैं इतना टूटा हुआ हूं कि छूने से ही बिखर जाऊंगा


मैं इतना टूटा हुआ हूं कि छूने से ही बिखर जाऊंगा


ईश्वर ने मुझें मिट्टी का पुतला बनाया है

जो चल सकता है,

दौड़ सकता हैं,

वह खाता है,

पीता हैं

उसके अन्दर दिल भी बनाया है

जो हर सेकेण्ड में धड़कता रहता है

यदि दिल की धड़कन रूक गई तो वह मनुश्य उसी ईश्वर में समा जाता हैं

और, ईश्वर फिर उसे किसी न किसी रूप में धरती पर भेज देता हैं।

परमात्मा तक पहुंचाने में सहयोग

प्रेम को जिसने जाना, उसे फिर कुछ जानने की आवश्यकता नहीं हैं, क्योंकि प्रेम ही ऊंचाइयों में, प्रार्थना बन जाती है। प्रार्थना अन्तत: परमात्मा का रूप ले लेती है। प्रेम सीढ़ी का पहला पायदान है, प्रार्थना मध्य, परमात्मा अन्त।

जिसने प्रेम को परमात्मा से भिन्न समझा, वो चूक ही गये, रास्ते से भटक ही गए। जिसने प्रेम के बिना प्रार्थना की, उनकी प्रार्थना दो कौड़ी की हैं, क्योंकि प्रेम के बिना प्रार्थना में कोई रसधार नहीं रहता। उनकी प्रार्थना में उनके हदय का कोई भाग साथ नहीं होता, उनकी प्रार्थना गणित हैं, हिसाब है, तर्क है, और तर्क, हिसाब से, गणित से, कोई परमात्मा तक नहीं पहुंच सकता। उसको तो हदय की मस्ती और प्रार्थना में लीन होने की क्षमता चाहिए जो परमात्मा तक पहुंचाने में सहयोग देती हैं।

Saturday, April 24, 2010

औरत शरीर एक छलावा

औरत के शरीर में एक अजब-सी कसक होती हैं उसके शरीर की बनावट इस प्रकार होती है कि कोई भी पुरूश उसके यौवन को देखकर उसकी तरफ मोहित हो जाता है। वह उसकी चाह से प्रेम नहीं करता, उसके जिस्म से चाह करने लगता है। उसको, बस जिस्म की चाह रहती है। तो हर पुरूश के बस में होती है।

मैं औरत के शरीर की क्या कल्पना करूं वह एक पुश्प मात्र होती हैं, जो उगती, सालों में कली बनती, फिर इंसान के हाथों कली से फूल का रूप धारण कर लेती है यहीं और के साथ होता है जिसे हर इंसान भोगना चाहता है। पे्रम तो एक बहाना हैं एक धोखा हैं, एक छलावा हैं, एक अनजानी शुरूआत, जिसमें वह चलाता है चलता है चलता ही रहता हैं।

अकेला बस अकेला

अकसर ऐसा होता है कि जिससे आप प्रेम करते हैं उससे शादी नहीं हो पाती। मन में एक गांठ बांध लें, प्रेम किसी से, शादी किसी से, यह एक कड़वी सच्चाई है, जिसका सामना हर लड़के-लड़कियों को करना पड़ता हैं, जो प्यार करता है, प्यार के झूठें वादे करता है वह सफल हैं। जो सच्चा प्यार करता है उसे हर धड़ी, हर वक्त उसी की याद सताती रहती है वह यह सोचता रहता है कि मेरी शादी उससे नहीं हुई, जिससे मैंने प्यार किया, कसमें खाई और साथ जीने-मरने के वादें किये, अब तन्हा जी रहा हूं उसकी यादों के सहारे। मर जाऊगां उसके बिना, अकेला बस अकेला।

पुरूश को खिलौना समझती है

औरत, पुरूश को खिलौना समझती है वह खिलौना पुरूश का वह भाग होता है इसका गलत अर्थ मत समझें, खिलौना से मतलब दिल से है जिससे हर वह स्त्री खेलना चाहती है, जो प्यार का अर्थ तक नहीं जानती। वह पुरूश को अपने आगें-पीछे घुमाती रहती है और आदमी पागलों (कुत्ता) की भान्ति उसके पीछे दुम हिलाता रहता है। जब मन चाहा खेला, जब मन चाहा तोड़ दिया, फिर दूसरा ले लिया। यहीं औरत जात की फिदरत होती है। वह कभी एक से प्यार नहीं करती, उसे तो बन-बन के खिलौने चाहिए। पयर करने के लिए और बहुत कुछ। पुरूशों को औरतों से सदा दूरी बनानी चाहिए, उसकी छाया को भी अपने आस-पास मत भटकने देना चाहिए। तभी एक पुरूश सफलता की चोटी पर पहुंच सकता है यहां औरत का मतलब केवल और केवल, पर स्त्री से है न की मां, बहन, पित्न और पुत्री सें।

यौन उत्पीड़न

यौन उत्पीड़न एक ऐसा घृणित अपराध है जो किसी भी उम्र की महिला के मन को छलनी कर देता है घर हो या बाहर, हर उम्र की महिला ने कभी न कभी इस जिल्लत को झेला होगा, कभी शर्म, कभी लिहाज, तो कभी अनके कारणों से। महिलायें चुप-चाप रह जाती हैं, लेकिन उनके साथ रह जाता है घिनौना स्पशZ का लिजलिजा एहसास, जो कई बाद जिन्दगी भर उनका पीछा नहीं छोड़ता।

Thursday, April 15, 2010

mitueeksatya

gajendra_125@rediffmail.com
gajendra-shani.blogspot.com

कुछ कहती है यह तस्वीर

सेक्स की उम्र कौन तय करे

ये बात सही है कि प्यार करने की उम्र कौन तय करेगा। परिवार, हम, समाज या फिर कुदरतर्षोर्षो ये बहुत चिन्तन का विशय है। लड़के-लड़कियां 12 से 14 साल की आयु में ही प्यार को जानने, समझने लगते हैं। ये सोचे बिना कि क्या सही है और क्या गलत। होता तो प्यार ही है चाहे वो 18-20 वशZ की आयु में हो या कम आयु में, प्यार ही कहलाएगा। अमेरिका में 14, जापान में 15 और भारत में 16 साल की आयु में प्यार कर सकते हैं। ग्रामीण भारत में 12 साल की आयु में ही विवाह कर दिया जाता है, जिसके चलते कम उम्र में लड़की मां बन जाती है। यदि शहरों में 14 साल या 16 साल की उम्र में प्यार/सेक्स कर लिया जाए तो बलात्कार की श्रेणी में आता है। संविधान के तहत लड़की के साथ बलपूर्वक सेक्स करना या फिर लड़की बालिग न हो, तो बलात्कार की श्रेणी में आता है, चाहे लड़की की रज़ामन्दी ही क्यों न हो। क्योंकि, नाबालिग लड़के-लड़कियों में सोचने-समझने, हित-अहित का ज्ञान नहीं होता। ये कानून तय करता है कि समझ है या नहीं। पर समझ होती जरूर है। क्या सही है , क्या गलत- ये तो जानते ही हैं।

अपने आस-पास के माहौल व टेलीविजन में दिखाए जाने वाले सीरियल, फिल्मों आदि में देखकर इनमें भी प्यार करने की भावना इस कदर जागृत होने लगती है कि मैं भी किसी से प्यार करूं या फिर कोई मुझसे भी प्यार करे, इसका नजीता चाहे कुछ भी हो। बहुत हद तक पारिवारिक तनाव, घरवालों से प्यार न मिलना, हमेशा अकेले रहना, प्यार की कमी को पूरा करने के लिए लड़के-लड़कियां प्यार की ओर भागते हैं जिसके परिणाम बहुत ही भयानक भी होते हैं। प्यार के इस खेल में बहुत बार लड़की कम आयु में ही मां बन जाती है और उसे गर्भपात कराना पड़ता है, लड़के-लड़कियां अपनी जान तक भी दे देते हैं। प्यार पाने की चाह में ये अपने घरवालों से, समाज से, दोस्तों से, संगे-संबधियों से भी कट जाते हैं। रह जाते हैं -केवल और केवल अकेले। जो अभी नाबालिग है, वह अभी बच्चों की परवरिश क्या कर सकता है। जब उन्हें अपने भविश्य के बारे में नहीं पता तो वे अपने बच्चोेंेेे के भविश्य के बारे में क्या सोचेंगेर्षोर्षो

परन्तु ,प्यार तो होता ही है । इस पर लाख पहरे क्यों न बिठा दिये जाएं। प्यार तो हो ही जाता है । इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि भारत में प्यार करने पर अब भी पाबन्दी लगी हुई है। इसके बावजूद भी हर 4 में से 3 लड़के - लड़कियां प्यार करते हैं। विदेशों में 12 साल की उम्र में प्यार/सेक्स किया जा सकता है, यदि लड़का-लड़की राजी है तो। वहां प्यार करने की उम्र निर्धारित की जा चुकी है, जिससे वो पढ़ाई के साथ-साथ प्यार व सेक्स की कमी को भी पूरा करते हैं और मानसिक रोगों से मुक्त रहते हैं। भारत में अधिकांश युवा वर्ग मानसिक रोगों की चपेट में हैं। जब शारीरिक परिवर्तन होता है तो सेक्स करने की इच्छा प्रबल होने लगती है। अगर इच्छा की पूर्ति नहीं होती तो हिंसात्मक घटनाओं में वृद्धि होने लगती है। नाबालिग लड़के-लड़कियां मानसिक बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं जिसके कारण से वो आत्म हत्या भी कर लेते हैं।

प्यार करने या सेक्स करने की उम्र का निर्धारण कौन करेगार्षोर्षो इसे शोध का विशय बनाया जा सकता है कि किस उम्र में लड़के -लड़कियां आपस में प्यार/सेक्स बिना किसी रोकटोक के कर सकते हैं र्षोर्षो

आज तो 14 से 16 साल की उम्र में, 4 में से 3 लड़के-लड़कियां सेक्स कर चुके होते हैं, इसका किसी को पता नहीं चलता। यदि समाज की दृिश्ट में लड़की गर्भवती न हो, तब तक किसी को कोई पता नहीं होता। यदि लड़के- लड़कियां इस उम्र में सेक्स करते हैं तो हमें यह मान लेना चाहिए कि उनमें सोचने- समझने की शक्ति भी है।

भारत में पनप रही समलैगिंकता का एक कारण सेक्स पर लगा प्रतिबंध भी हो सकता है। समाज में लगातार फैल रही समलैगिंकता पर काबू पाने के लिए कानून में संशोधन की आवश्यकता है। एक ऐसा कानून पारित किया जाए, जिसमें 14 से 16 वशZ की उम्र में सेक्स करने की अनुमति प्रदान की जाए, जिससे समलैंगिकता, सामाजिक घृणा और संकीर्ण मानसिकता के चंगुल से बचा जा सके। और, युवा पीढ़ी भारत को विकासशील देश से विकसित देश में परिवर्तन करने में सहायक सिद्ध हो।

Tuesday, April 13, 2010

कल हो ना हो ....

कल हो ना हो ....


आज एक बार सबसे मुस्करा के बात करो

बिताये हुये पलों को साथ साथ याद करो

क्या पता कल चेहरे को मुस्कुराना

और दिमाग को पुराने पल याद हो ना हो

आज एक बार फ़िर पुरानी बातो मे खो जाओ

आज एक बार फ़िर पुरानी यादो मे डूब जाओ

क्या पता कल ये बाते

और ये यादें हो ना हो

आज एक बार मन्दिर हो आओ

पुजा कर के प्रसाद भी चढाओ

क्या पता कल के कलयुग मे

भगवान पर लोगों की श्रद्धा हो ना हो

बारीश मे आज खुब भीगो

झुम झुम के बचपन की तरह नाचो

क्या पता बीते हुये बचपन की तरह

कल ये बारीश भी हो ना हो

आज हर काम खूब दिल लगा कर करो

उसे तय समय से पहले पुरा करो

क्या पता आज की तरह

कल बाजुओं मे ताकत हो ना हो

आज एक बार चैन की नीन्द सो जाओ

आज कोई अच्छा सा सपना भी देखो

क्या पता कल जिन्दगी मे चैन

और आखों मे कोई सपना हो ना हो

क्या पता

कल हो ना हो ....

किसी और को दोस्त बनाने की ज़रूरत नही


बातें करके रुला ना दीजिएगा...


यू चुप रहके सज़ा ना दीजिएगा...

ना दे सके ख़ुशी, तो ग़म ही सही...

पर दोस्त बना के यूही भुला ना दीजिएगा...

खुदा ने दोस्त को दोस्त से मिलाया...

दोस्तो के लिए दोस्ती का रिस्ता बनाया...

पर कहते है दोस्ती रहेगी उसकी क़ायम...

जिसने दोस्ती को दिल से निभाया...

अब और मंज़िल पाने की हसरत नही...

किसी की याद मे मर जाने की फ़ितरत नही...

आप जैसे दोस्त जबसे मिले...

किसी और को दोस्त बनाने की ज़रूरत नही
gajendra_125@rediffmail.com

जो कोई उनसे करता है?

फिर शाम आये मेरे दर पर ले कर चाँद का पैगाम,

कर लो दोस्ती तुम हम से मेरी दोस्ती लिखी तेरे नाम.
हम ने कहा के जानते नही हम तुम को कैसे बना ले दोस्त हम,
कर ले कैसे दोस्ती तुम से क्यो दोस्ती लिखी मेरे नाम.
चाँद ने कहाँ के मै जानता तुम्हे,
तुम जानती नही मै देखता रहता तुम्हे,
तुम्हारे सुन्दर चेहरे पर मेरी रोशनी पडे सुबह शाम,
कर लो दोस्ती तुम हम से मेरी दोस्ती लिखी तेरे नाम.
दोस्त बनाने के लिये बहुत मिल जायेंगे,
पर समझ जाये अपने दोस्त को मन से ऐसा कोई मिलता नही,
तुम हम को समझोगे कैसे, जानोगे कैसे मेरे मन की बात,
कर लू कैसे दोस्ती तुमसे क्यों दोस्ती लिखी मेरे नाम.
चाँद ने कहा मै दूर हूं माना,
पास आ सकता नही ये है जाना,
दूर हो कर भी पास मै रहुंगा,
कभी भी तुम को यूं उदास ना देख सकुंगा,
कर लो दोस्ती तुम हम से मेरी दोस्ती लिखी तेरे नाम.
क्या इतनी ही दूर रहने वाले अपने दोस्त को समझ सकते है,
दोस्त के जज़्बात को ओर मन की बात को, किस हद तक जान सकते है,
क्या अपने दोस्त से इस तरहा ही दोस्ती निभा सकते है,
जो कोई उनसे करता है?

दोस्ती करना इतना आशान


दोस्ती करना इतना आशान है जैसे माटी पर माटी से माटी लीखना,लेकीन प्यार नीभाना इतना मुस्कील है जैसे पानी पर पानी से पानी लीखना ................


लोग कहते है हमे आदत है मुस्कुराने की ..........लेकिन वो नहीं जानते यह अदा है गम छुपाने की ...........................

लोगो ने तो फूलो से मोहबत की काँटों को कीस ने याद कीया,हमने तो काँटों से मोहबत की क्योंकी फूलो ने हमको बर्बाद कीया ...........................

लोग कहते है हमे आदत है मुस्कुराने की ..........लेकिन वो नहीं जानते यह अदा है गम छुपाने की ...........................

हम न होते तो ग़जल कोन कहता,तुम्हारे खीले चहरे को कमल कोन कहता,यह तो करीश्मा है मोहबत का वर्ना पत्थर को ताजमहल कोन कहता .................

हर दीन के बाद रात आती है,हर मौत के बाद बहार आती है ,जींदगी चली जाती है दुल्हन बनकर,जब मौत लेकर बारात आती है .......................

साथी हो तो आंशु भी मुस्कान होते है,अगर न हो तो महल भी सम्शान होते है,साथी का ही तो खेल है सारा,वर्ना डोली और अर्थी सामान होते

गुलाब की खुशबू में कांटे पला करते है,चंदन की महक में साँप पला करते है,हर हँसी को ख़ुशी मत समझो,हर ख़ुशी में आंशु भी पला करते है ............

मेरी रात तेरे दीन से अछा होगा ,मेरा इकरार तेरे इनकार से अछा होगा,अगर यकीं न आये तो डोली से झाककर देखना मेरा जनाजा तेरी बारात से अछा होगा ,

कीसी की जीदगी में आती है बहार,तो कीसी को चमन तक नहीं मीलता,कीसी की कब्र में बनता है ताजमहल,तो कीसी को कफ़न तक नहीं मीलता.......................

ख्वाब देखे भी नहीं और टूट गए,वो हमसे मीले भी नहीं और रूठ गए,में जागती रही और दुनीया सोती रही,बस बारीश थी जो रात भर रोती रही ................

सुना है वो जाते हुए कहे गए की अब तो हम सीरफ तुम्हारे सपनो में आयेगे,कोई कह दे उनसे की वोह वादा तो करे हम जीदगी भर के लीये सो जायेगे ........

किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा


किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा


एक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगा

कोई जहाँ मेरे लिए मोती भरी सीपियाँ चुनता होगा

वो किसी और दुनिया का किनारा होगा

काम मुश्किल है मगर जीत ही लूगाँ किसी दिल को

मेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगा

किसी के होने पर मेरी साँसे चलेगीं

कोई तो होगा जिसके बिना ना मेरा गुज़ारा होगा

देखो ये अचानक ऊजाला हो चला,

दिल कहता है कि शायद किसी ने धीमे से मेरा नाम पुकारा होगा

और यहाँ देखो पानी मे चलता एक अन्जान साया,

शायद किसी ने दूसरे किनारे पर अपना पैर उतारा होगा

कौन रो रहा है रात के सन्नाटे मे

शायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा

अब तो बस उसी किसी एक का इन्तज़ार है,

किसी और का ख्याल ना दिल को ग़वारा होगा

ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना मेरा नाम

ग़र ये खेल ही दोबारा होगा

जानता हूँ अकेला हूँ फिलहाल

पर उम्मीद है कि दूसरी ओर ज़िन्दगी का कोई और ही किनारा होगा

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gajendra_125@rediffmail.com

जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है

जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है ,


ना मा, बाप, बहन , ना यहा कोई भाई है .

हर लडकी का है Boy Friend, हर लडके ने Girl Friend पायी है ,

चंद दिनो के है ये रिश्ते , फिर वही रुसवायी है .

घर जाना Home Sickness कहलाता है ,

पर Girl Friend से मिलने को टाईम रोज मिल जाता है .

दो दिन से नही पुछा मां की तबीयत का हाल ,

Girl Friend से पल - पल की खबर पायी है,

जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है …..

कभी खुली हवा मे घुमते थे ,

अब AC की आदत लगायी है .

धुप हमसे सहन नही होती ,

हर कोई देता यही दुहाई है .

मेहनत के काम हम करते नही ,

इसीलिये Gym जाने की नौबत आयी है .

McDonalds, PizaaHut जाने लगे,

दाल- रोटी तो मुश्कील से खायी है .

जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है …..

Work Relation हमने बडाये ,

पर दोस्तो की संख्या घटायी है .

Professional ने की है तरक्की ,

Social ने मुंह की खायी है.

जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है

Monday, April 12, 2010

शर्म के बारे में पूछता है कोई जब हमसे


शर्म के बारे में पूछता है कोई जब हमसे



हां कह देते है हम कि हमें भी आती है कभी-कभी


रिश्ता हमारा टूट चूका है वैसे तो शर्म से


पुराने सम्बंधों के आधार पर आ जाती है बस कभी-कभी


भीड़ में रहें तो कह देते है कि आती है शर्म


बाकी नज़रें चुरा-चुरा कर देख लेते है कभी-कभी


चाहते तो नहीं पर समय जब पूछता है हिसाब और


जमाना कहता है तो झांक लेते है गिरेवां में कभी-कभी


Sunday, April 11, 2010

गूंगा नहीं था मैं

गूंगा नहीं था मैं कि बोल नहीं सकता था


जब मेरे स्कूल के मुझसे कई क्लास छोटे

बढे़गें से एक फार के लड़के ने मुझसे कहां

`` ओ-ओ मोरिय! ज्यादें विगडें मत ।

क्मीज कू पेंट में दवा के मत चल ´´

और मैनें चुपचाप अपनी कमीज

पैंट से बाहर निकाल ली थीं गूंगा नहीं था मैं

न अक्षम, अपाहिज था जड़ था

कि प्रतिवाद नहीं कर सकता थां उस लड़के को इस

अपमानजनक व्यवहार का लेकिन

अगर मैं बोल सकता जातीय अहं का सिहांसन डोल जाता

स्वर्ण छात्रों में जंगल की आग की तरह

यह बात फैल जाती कि ढे़ढ़ो का दिमाग चढ़ गया है

फिसल गया है कि एक चमार का लड़का

काफीपुरा के एक लड़के छोरे से अड़ गया है

आपसी मतभेदों को भुलाकर तुरन्त-फुरन्त स्कूल के

सारे स्वर्ण छात्र गोलबदं हो जाते और

ये ना अध्यापक ये होकिया ले -लेकर

दलित छात्रों पर हल्ला बोल देते

इस हल्ले में कई दलित छात्रों के

हाथ -पैर टुटते कई के सिर फूटते

और स्कूल परिसर के अन्दर

हगामा करने के जुर्म में

हम ही स्कूल से

रस्टीगेट कर दिये जाते।

अपना पता न अपनी खबर छोड़ जाऊंगा

अपना पता न अपनी खबर छोड़ जाऊंगा


बे सािम्तयों की गर्द-ए-सफर छोड़ जाऊंगा

तुझसें अगर बिछड़ भी गया तो याद रख

चेहरे पे तेरे अपनी नज़र छोड़ जाऊंगा

ग़म दूरियों का दूर न हो पायेगा कभी

वह अपनी कुर्वतों का असर छोड़ जाऊंगा

गुजरेगी रात - रात मेरे ही ख्याल में

तेरे लिए मैं सिर्फ सहर छोड़ जाऊंगा

जैसे कि शम्आदान में बुझ जाये कोई शम्आ

बस यूं ही अपने जिस्म का घर छोड़ जाऊंगा

मैं तुझकों जीत कर भी कहां जीत पाऊंगा

लेकिन मुहब्बतों का हुनर छोड़ जाऊंगा

आंसू मिलेगें मेरे न फिर तेरे कह कहें

सूनी हर एक राह गुजर छोड़ जाऊंगा

सफर में अकेला तुझे अगले जन्म तक

है छोड़ना मुहाल , मगर छोड़ जाऊंगा

उस पार जा सकेगी तो यादें ही जायेगी

जी कुछ इधर मिला है इधर छोड़ जाऊंगा

ग़म होगा सबकों और जुदा होगा सबका ग़म

क्या जाने कितने दीद-ए - दर (भीखी आंख) छोड़ जाऊंगा

बस तुम ही याद रहोगें,ं कुरेदोगें तुम अगर

मैं अपनी राख में जो शरर(चिनगारी) छोड़ जाऊंगा

कुछ देरे को निगाह ठहर जायेगी जरूर

अफसाने में एक ऐसा खण्डर छोड़ जाऊंगा

कोई ख्याल तक भी न छू पायेगा मुझें

मैं चारों तरफ आठों पहर छो

ऐसा कोई पेड़ नहीं जिसको यह हवा न लगी हो

यह बात सौलह आने सच है कि एक उम्र के बाद कोई भी अछूता नहीं रहता, कोई कम, कोई ज्यादा करता जरूर है क्योंकि शारीरिक परिर्वतन एवं आस-पास के माहौल को देखकर, मन भी उसी दिशा में भटकने लगता है। जिस प्रकार हवा चलने पर सभी पेड़ हवा की दिशा में हिलने लगते है वह लाख कोिशश करें अपने आपकों हिलने से नहीं रोक सकते, उनके हिलना ही पड़ता है। चाहे वो चाहे या न चाहे। हर इंसान को उसी दिशा में चलना पड़ता है जहां सभी जा रहे है, जैसा कर रहे है, करना पड़ता है, मन चाहे या न चाहे, पर मन कुछ समय बाद करने लगता है आखिर मन है जिस प्रकार खाना खाते हुए दिखने पर, मन भी खाना खाने का करने लगता है चाहे आपने खाना खाया हो या नहीं। उसी तरह जो एक व्यक्ति करता है वह काम दूसरा भी शुरू कर देता है। आजकल के पहनावे को ले तो समझ आ जाएगा कि एक व्यक्ति जिस प्रकार के वस्त्रों को पहनकर समाज के सामने आता हे धीरे-धीरे उसी तरह वस्त्रों को कई लोग पहनने लगते है और वह फैशन में आ जाता है।


ऐसी ही इंसान की फिदरत में है जिस तरह की प्रेम कहानी सुनायी जाती है लैला-मजंनू, हीर-राझां, सीरी -फरहाद, रोमियो-जूलियट, जो एक दूसरे के लिए अपनी जान कुरवान कर सकते थे और की भी। मैंने शायद शब्द का प्रयोग इसलिए किया, क्योंकि मेरे पास इसके कोई प्रमाण मौजूद नहीं है जिससे मैं यह साबित कर सकूं कि ये लोग भी थे, जिनकी प्रेम कहानी हम सभी को सुनायी जाती है, सुनायी जाती रहेंगी। उन्ही का अनुसरण करने की कोिशश युवा पीढ़ी भी कर रही है वह अपने नामों को इन नामों के साथ जोड़ने की भरकस कोिशश करते है कुछ कामयाब भी हो जाते है इस कोिशश के चलते यह अपनी गली-मोहल्ले में मशहूर हो जाते है, इसके अलावा और कुछ नहीं होता, केवल मोहल्ले मे बदनामी ही फैलती है कि फलां-फलां का लड़का उस लड़की के पीछे पड़ा है या उस लड़की का सम्बंध किसी लड़के के साथ है वह उससे मिलती है जब यह बात माता-पिता को पता चलती है तब वह यह सिद्ध करने के लिए की हमारा बच्चा सही है, हम अपने बच्चों पर प्रतिबंध लगा सकते है, अपने बच्चों को थोड़ा डांट/मार-पीट देते है या कुछ समय के लिए घर की चार दीवारी में बन्द कर देते है। इसके अलावा वो कुछ नहीं हो सकता। बच्चा करता अपनी मर्जी का ही है, और इन प्रेम कहानी की तरह वह अपने प्यार को परवान चढ़ाता रहता है एक समय के बाद वो अपना सब कुछ प्रेम/प्यार के नाम पर लुटा चुका होता है लड़का अपना समय, धन तथा लड़कियां अपनी इज्जत। इन प्रेम कहानियों का अन्त सबको पता होता है सब जानते है कि इन प्यार करने वालों का कभी मिलाप नहीं हो पाया, न ही इन को हो पाएगा।

लड़कों का क्या है वह कुछ भी कर सकते है लड़की को सीता की भान्ति अग्नि परीक्षा देनी ही पड़ती है, चाहे वो कुछ भी कर लें।

ऐसा ही होता है लड़के का लड़की के साथ सम्बंध क्यों न हो, उसे शादी के लिए लड़की कुंवारी ही चाहिए। जिस कारण से वो हमेशा ही शक करता रहता है कि मेरी पित्न का कहीं किसी के साथ सम्बंध तो नहीं है या था, वह यह नहीं सोचता की जब वो राम नहीं बन सकता, तो सीता की आश कैसे कर सकता है। आज न तो कोई राम है न ही सीता। सबका दामन दागदार है चाहे इसका पता चले या न चलें, यह तो उसकी अन्तर आत्मा ही बता सकती है कि वो कितने पवित्र है।

शादी की रात लड़का अपने जीवन की सारी दास्तान किताब के पन्नों की तरह धीरे-धीरे खोल देता है परन्तु लड़कियां कभी यह नहीं बताती कि उसकी किसी लड़के के साथ दोस्ती थी या सम्बंध। वह शादी के बाद पतिवत्रा बनने की भरकस कोिशश में लगी रहती है। अपनी पुरानी जिन्दगी को किसी कब्र में दफन कर देती है। जब उस प्यार की पूण्यतिथि आती है तो उसे याद कर लिया जाता है, वह उसे पूर्णत: नहीं भूलती। वो अपने पति में भी उसको तलाशती है चाहे साथ खाना हो या सम्बंध बनाते समय, उसकी याद आ ही जाती है कि वो ऐसा करता था वो वैसा करता था, पर उसे भूला नहीं पाती।

लड़कियां लाख कोिशश कर लें वो पहले प्यार को नहीं भूला पाती। प्यार हो या अपने जीवन में घटित कोई भी घटना, इंसान उसे कभी नहीं भूला पाता i

प्रत्येक मौत इंसान को एक ही सीख देती है कि मैं ही सत्य हंू और मैं ही अमर

ऐसे तो जिन्दगी को हम देखे तो हमको दिखाई पड़ जाएगी कि मैं कुछ भी नहीं हूं इसे दिखाई पड़ने में कौन सी कठिनाई है मृत्यु रोज इसकी खबर लाती है कि हम कुछ भी नहीं है लेकिन हम मृत्यु को कभी गौर से नहीं देखते कि वह क्या खबर लाती है मृत्यु को तो हमने छिपाकर रख दिया है मरघट गांव के बाहर बना देते है ताकि दिखाई न पडे़, किसी दिन इंसान समझदार होगा तो मरघट गांव, शहर के चौराहे पर बना होगा कि रोज दिन में दस दफा निकलते आते-जाते दिखाई पड़े मौत का ख्याल आए कि मौत है अभी कोई लाश निकलेगी, मुर्दा निकलेगा , जब कोई लाश निकलती है तो हम बच्चों को घर के भीतर बुला लेते है कि मुर्दा निकल रहा है अन्दर आ जाओ। मुर्दा निकले और हममें समझ हो , तो सब बच्चों को बाहर इक्ठठा कर लेना चाहिए कि देखो यह आदमी मर गया ठीक इसी प्रकार हम सबको मर जाना है। केवल यह एक हकीकत है इसके अलावा दुनियां में सब निरंकार है मेरी मानें तो दुनियां में मृत्यु ही एक सत्य है इसके परे और दुनियां में कुछ भी नहीं बचता। आज का इंसान समझदार होते हुए भी नसमझ बना हुआ है वह यह जानता है कि मौत एक दिन किसी न किसी प्रकार से आयेगी और उसको सब कुछ यह इसी नशवान संसार में छोड़कर जाना पडे़गा। बावजूद इसके वह जीवन से इस कदर मौह करने लगता है और अपने आप को पूरी तरह से मोह-माया के चंगुल में जकड़ जाता है जैसे उसे कभी यह संसार छोड़कर जाना ही न हो।


कहते है कि जीवन और मरण सब प्रभु के हाथ में है कब किसकों भेज दे कब बुला लें ये तो सिर्फ उसी की लीला है वैसे एक जन्म लेने वाले बच्चों को कोई नहीं रोक सकता वो तो जन्म लेगा ही। ठीक उसी प्रकार जाने वाले को तो भगवान भी नहीं रोक पाते , उसे तो जाना ही है, पर जाने का रास्ता तो एक ही है वह है मौत।

प्रत्येक मौत इंसान को एक ही सीख देती है कि मैं ही सत्य हंू और मैं ही अमर।

मृत्यु की सच्चाई

मृत्यु के अलग अलग प्रकार परन्तु रूप एक


मृत्यु इंसान को विभिन्न प्रकार से मारती है

• किसी बीमारी के चलते होने वाली मौत

• दुघटना से होने वाली मौत

• पैदा होते समय हुई मौत

• किसी के द्वारा किसी अस्त्र के प्रयोग से मौत

• स्वयं ही अपनी जीवन लीला समाप्त करना

• वृद्धावस्था से होने वाली मौत

आदि प्रकार से मनुश्यों को मौत आती है परन्तु विभिन्न प्रकार से होने वाली मौत का रूप एक ही है वह है मृत्यु।

मृत्यु की सच्चाई

मृत्यु एक ऐसा सत्य है जिसे आज तक दुनियां में कोई भी भगवान से लेकर जानवर तक नही झूठला सका है। वह किसी न किसी माघ्यम से उसे अपने आगोस में ले लेती है परन्तु कारण किसी न किसी को बनना पड़ता है।

किसी इंसान की मृत्यु के बाद इंसान ही चर्चा करते है वह इस प्रकार से मौत का ग्रास बन गया ,लेकिन वह यह नहीं समझते की कारण तो केबल एक ही है वह है मौत। जन्म को तो सब देखते है परन्तु मौत को केबल वहीं इंसान देख पाता है जिसकी मृत्यु हो रही होती है।

मृत्यु का आसान तरीका

मृत्यु का एक मात्र तरीका है वह है चिन्तन मन से मृत्यु की अराधना करना जिस व्यक्ति ने मृत्यु की सच्चे मन से अराधना कर ली हो उसकी मृत्यु या फिर यह कहों कि उसको अपने प्राण त्यागने में कोई भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता। वैसे देखा गया है कि जब मनुश्य अपने जीवन के अन्तिम छडों में होता है और वह कश्ट छेल रहा होता है तो उसे उतना ही प्यार मौत से ठीक उतनी ही नफरत जीवन से होने लगती है।

परिभाशा

जीवन को हर प्राणी परिभाशित कर सकता है परन्तु मौत को कोई भी परिभाशित नहीं कर सकता है। क्योंकि जीवन जीने की कला है क्या यह कहें की मृत्यु मरने की कला है। मृत्यु तो केवल प्रभू के चरणों में अपना स्थान पाने का तरीका है अब लोग यह भी कह सकते है कि एक आदमी 150 साल जीवन जीता है वहीं दूसरा जन्म लेने के बाद या फिर जन्म लेते वक्त ही मर जाता है इसे क्या कहेगे। यह सब मनुश्य के भाग्य के ऊपर नहीं है जिस मनुश्य की प्रभू को जिस समय अवश्यकता पड़ने लगती है वह उसे उसी अवस्था में बुला लेता है और उसे जाना ही पड़ता है वह किसी भी प्रकार से आग्रह नहीं कर सकता या फिर वह समय नहीं मांग सकता कि मैं कल आऊगा या 10-15 मिनट के बाद आऊगा , उसे तो जाना ही पड़ता है

लोगों ने देखा होगा कि जो इंसान जितने अच्छे कर्म करता है उसे ही प्रभु अपने पास बुला लेता है और जो जितने बुरे कर्म करता है उसे उतनी ही देर में बुलाते है क्योंकि उस प्रभु के दरवार में अच्छे लोगों की कमी है देखा जाये तो इस संसार में बुरे लोगों का जमघट लगा रहता है कोई आता है कोई आने की कोिशश करता है जाने का कोई नाम ही नहीं लेता चाहिता।

मृत्यु की परिभाशा मेरे अनुसार तो मृत + यु से बना है मृत का मतलब मरा हुआ यु का मतलब तुम ं।

जब कोई िशशु जन्म लेता है तो उसे हमें रोक सकते है उसका इस संसार में पैदा होना रोक सकते है या फिर यूं कहे उसका गर्भ पात करके उस बच्चें को जन्म नहीं लेने दे सकते हैं ठीक इसके विपरीत जब कोई इंसान या फिर कोई भी जीवित प्राणी हो अगर वह मरने वाला है तो कोई भी लाख कोिशश कर ले उसे इस संसार से जाने से नहीं रोक सकता , उसे तो जाना ही पडे़गा, कोई कुछ भी नहीं कर सकता।

Monday, April 5, 2010

Hai koi saath nahi

Hai koi saath nahi



Phir bhi koi hai aise



Saans mein jaise hawa hai



Dil mein dhadkan jaise.



Hum akele hain ye logon se



suna hai hum ne



saath hai jo use dekha nahi



khud bhi hum ne



Jaane kyon log bichhadne



ka gila karte hain



hum se woh aise mila ki



kabhi bichhada hi nahi



Fule the hum to raha saath



wah khusboo ki tarah



hum hue jhil to wah



aa basa paani ki tarah



Aakhaen kahti hai ki



hum ne dekha hi kahaan



dil yeh kahta hai ki



wah humse juda hai hi kahaan



Kaan kahte hain ki hum ne



na suni uski jubaan



dhadkane kahti hain hum hi



to hain uski jubaan



Jo nahi aata nazar



na hi kabhi milta hai



band aakhon ke jharokhon ne



use dekha hai.